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भाम-झूस
पाइअसद्दमहण्णवो
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झाम वि [ध्याम] अनुज्ज्वल (पएह १, २- झिमिय । न [दे] शरीर के अवयवों की झुट्ठ वि [दे] झूठ, अलीक, असत्य (दे ३, पत्र ४०)।
झिम्मिय जड़ता (प्राचा) भामण न [दे] जलाना, प्राग लगाना प्रदीप- झिया देखो मा । झियाइ, झियायइ (उवाः भुण सक [जुगुप्स् ] घृणा करना, निन्दा नक (वव २) भगः कस; पि ४७६)। वकृ. मियायमाण
करना । झुणइ (हे ४, ४; सुपा ३१८) । झामर वि [दे] वृद्ध, बूढ़ा (दे ३, ५७)। (णाया १,१-पत्र २८६०)
झुणि पुं[ध्वनि] शब्द, आवाज (हे १, ५२ भामल न [दे] १ आँख का एक प्रकार का झिरिड न [दे] जीणं कूप, पुराना इनारा (दे
षड् ; कुमा)। रोग, गुजराती में 'झामरों'। २ वि. झामर ३, ५७)।
झुणिअ वि [जुगुप्सित] निन्दित, घृणित रोगवाला (उप ७६८ टी श्रा १२) । झिलिअ वि [दे] झोला हुआ, पकड़ी हुई
(कुमा) । झामल वि [ध्यामल] श्याम, काला (धर्मसं
__ वह वस्तु जो ऊपर से गिरती हो (सुपा १७८)।
हो (सुपा १७८)। मुत्ती स्त्री [दे] छेद, विच्छेद (दे ३, ५८)। ८०७)। झिल्ल अक [स्ना] झीलना, स्नान करना।
झुमुसुमुसय न [दे] मन का दुःख (दे ३ झामलिय वि [ध्यामलित] काला किया झिल्लइ (कुमा) IV
५८) । हुना (कुप्र ५८)। झिल्लिआ स्त्री [झिल्लिका कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय
झुलुक्क पुं[दे] अकस्मात् प्रकाश (प्रात्मानु झामिअ वि [दे] दग्ध, प्रज्वलित (दे ३,
जीव की एक जाति, झिल्ली(पाना परण १) ५६ वव ७ प्रावम)। २ श्यामलित, काला :
झिल्लिरिआ स्त्री [दे] १ चीही-नामक तृण। झुल्ल अक [अन्दोल] झूलना, डोलना, किया हुआ । ३ कलंकित: 'घणदड्ढपयंगाएवि २ मशक, मच्छड़ (दे ३, ६२)।।
लटकना । वकृ. मुलंत (सुपा ३१७)। जीए जा झामिनो नेय' (सार्थ १६)10 झिल्लिरी स्त्री [दे] मछली पकड़ने की एक झुल्लण स्त्रीन [दे] छन्द-विशेष । स्त्री. °णा काय वि [ध्मात] भस्मीकृत, दग्ध, जला तरह की जाल (विपा १, ८-पत्र ८५) (पिंग)। हुपा (एंदि)।
झिल्ली स्त्री [दे] लहरी, तरंग (गउड) मुल्लुरी स्त्री [दे] गुल्म, लता, गाछ (दे ६, झायव्य देखो झा।
झिल्ली स्त्री [झिल्ली] १ वनस्पति-विशेष भारुआ स्त्री [दे] चीरी, क्षुद्र जन्तु-विशेष | (पएण १: उप १०३१ टी)।२ कीट-विशेष, झुस देखो झूस । संकृ. झूसित्ता (पि २०६)। (दे ३, ५७)।
झींगूर (गा ४६४)
| असणा देखो झूसणा (राज)। झावण न [ध्मापन] देखो झाम ग (राज) Mझीण वि क्षीण] दुर्बल, कृश (हे २, ३; झुसिय देखो भूसिय (बृह २)। झावणा न [धमापना] दाह, जलाना, अग्नि- पात्र)।
झुसिर न [शुषिर] १ रन्ध्र, विवर, पोल, संस्कार (आवम) मीण न [दे] १ अंग, शरीर । २ कोट, |
खाली जगह (गाया १, ८, सुपा ६२०)। भाषणा देखो अझावणा (संबोध २४) । कीड़ा (दे ३, ६२) ।
२ वि. पोला, झूछा (ठा २, ३; पाया १, भिखग न दे गुस्सा करना (उप १४२ टा) झीरा स्त्री [दे] लजा, शरम (दे ३, ५७) । २; परह १,२)। झिखिअ न [दे] वचनीय, लोकापवाद, लोक-..
झंख पुं[दे] तुणय-नामक वाद्य (दे ३,५८) निन्दा (दे ३, ५५) ।
झूझ देखो जूझ । झूझंति (संबोध १८) । झिगिर ) पंक्षिद्र कीट-विशेष. त्रोन्द्रिय झुझिय विदे] १ बुभुक्षित, भूखा (पएह | झर सकस्मि याद करना, चिन्तन करना । झिगिरड) जीव की एक जाति, झींगूर या १,३-पत्र ४६) । २ झुरा हुमा, मुरझा भूरइ (हे ४, ७४)। वकृ. झूरंत (कुमा)। झिल्ली (जीव १) हुआ (भग १६, ४)।
झूर सक [जुगुप्स् ] निन्दा करना, घृणा झिझिअ वि [दे] बुभुक्षित, भूखा (बृह ६) झुझुमुसयन [दे] मन का दुःख (दे ३,
करना झिंझिणी) स्त्री [दे] एक प्रकार का पेड़, ५८)।
'निरुवमसोहग्गमई, दिळूणं तस्स रूवगुणरिद्धि । झिझिरी लता-विशेष (उप १०३१ टी:
मुंटण न [दे] १ प्रवाह (दे ३, ५८)। २ इंदो वि देवराया, भूरइ नियमेण नियरूवं' प्राचा २, १,८ बृह १) पशु-विशेष, जो मनुष्य के शरीर की गरमीसे
(रयण ४)। झिजंत 1 विक्षीयमाण] जो क्षय को
जीता है और जिसका रोम कपड़े के लिये झूर अक [धि भुरना, क्षीण होना, सूखना । झिजमाण प्राप्त होता हो, कृश होता हुआ
बहुमूल्य है (उप ५५१)। (से ५, ५८; ७२८ टीः कुमा)।
वकृ. झूरंत, भूरमाण (सण; उप पृ. २७)। झिज्झ अक [क्षि] क्षीण होना। झिझड
झुपडा स्त्री [दे] झोपड़ी, तृण कुटीर, तुण- | झूर वि [दे] कुटिल, वक्र, टेढ़ा (दे ३, ५६)। (प्राकृ ६३)।
निर्मित घर (हे ४, ४१६ ४१८) | झरिय वि [स्मृत चिन्तित, याद किया हुआ मिज्झिरी स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (माचा २, मुंबणग नदे] प्रालम्ब (णाया १,१)। (भवि) १,८, ३)
झुज्झ देखो जुझ = युध् । मुज्झइ (पि | झूस सक [जुष ] १ सेवा करना । २ प्रीति भिण्ण देखो झीण (से १, ३५ कुमा)। २१४)। वकृ. भुज्झत (हे ४, ३७६)। | करना । ३ क्षीण करना, खपाना । वकृ.
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