________________
३५७
जिणंद-जिम्ह
पाइअसहमहण्णवो ५)। पहु [प्रभु] जिन-देव, अहंन देव जिणंद देखो जिणिंदः 'सचे जिणंदा सुरविंद- जित्त देखो जिअ % जित (महा; सुपा ३६५; (उप ३२० टी) । पाडिहेर न [प्रातिहार्य] वंदा' (पडि; जी ४८)। जिन-देव को अर्हता-सूचक देव-कृत अशोक जिणकप्पि पुं[जिनकल्पिन्] जैन मुनि का जित्ति) वि[यावत् ] जितना (हे २, वृक्ष प्रादि पाठ बाह्य विभूतियां, वे ये हैं-१ | एक भेद (पंचा १८, ६)।
जित्तिल । १५६ षड्)। अशोक वृक्ष, २ सुर-कृत पुष्प-वृष्टि, ३ दिव्य- जिणग न [जयन] जय, जीत (सण)। जित्तुल (अप) ऊपर देखो (कुमा)। ध्वनि, ४ चामर, ५ सिंहासन, ६ भामण्डल, जिणपह पुं [जिनप्रभ] एक जैन प्राचार्य जिध (अप) अ [यथा] जैसे, जिस तरह से ७ दुन्दुभि-नाद, ८ छत्र (दंस १)। पालिय (ती ५)। पुं[पालित] चम्पा नगरी का निवासी एक | जिणिंद पुं [जिनेन्द्र] जिन भगवान्, अहंन् जसको श्रेष्ठि-पुत्र (णाया १, ६) बिब न देव (प्रासू ५२)। "गिह न [गृह] जिन
जिन्नासिय वि [जिज्ञासित जानने के लिए ["बिम्ब] जिन-मूत्ति, जिन-देव की प्रतिमा मन्दिर (सुर ३, ७२)। चंद पुं[°चन्द्र] जिन-देव (पउम १५, ३६) ।
इष्ट, जानने के लिए चाहा हुआ (भास ७५) । (पडि पंचा ७) । भड [भट] स्वनामप्रसिद्ध एक जैन प्राचार्य, जो सुप्रसिद्ध जैन जिणिय वि [जित] पराभूत, वशीकृत (सुपा
जिन्नुद्धार पुं. [जीर्णोद्धार ] पुराने और टूटेग्रन्थकार श्रीहरिभद्र सूरि के गुरु थे (सार्थ | ५२२, रयण २७)।
फूटे मन्दिर आदि को सुधारना (सुपा ३०६). ५८)। भद पु[भद्र] स्वनाम-प्रसिद्ध जिणिसर देखो जिणेसर (सम्मत्त ७६७७)।
जिब्भ पुं. [जिह्व] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र जैन प्राचार्य और ग्रन्थकार (प्राव ४)। जिणिस्सर देखो जिणेसर (पंचा १६)।
६; २६)। भवण न [ भवन] अहंन मन्दिर (पंचव जिणुत्तम [जिनोत्तम] जिन-देव (अजि
जिब्मा स्त्री [जिहवा] जीभ, रसना (पग्रह ४)1°मय न [ मत] जैन दर्शन (पंचा ४)
२, ५, उप १८६ टी)। ४) माया स्त्री [°मात] जिन-देव की जिणेद देखो जिणिंद (चेइय ६०)।
जिभिंदिय न [जिहवेन्द्रिय रसनेन्द्रिय, जननी (सम १५१) । मुद्दा स्त्री [मुद्रा] जिणेस पुं [जिनेश] जिन भगवान्, महंन्
जीभ (ठा ४, २)। जिनदेव जिस तरह से कायोत्सर्ग में रहते |
जिब्भिया स्त्री [जिहिवका १ जीभ । २ देव (सुपा २६०)। हैं उस तरह शरीर का विन्यास, पासन
जीभ के प्राकारवाली चीज (जं ४)। जिणेसर पुं[जिनेश्वर] १ जिन देव, महन विशेष (पंचा ३) । यंद देखो 'चंद (सुर
जिम सक [जिम् , भुज] जोमना, भोजन देव (पउम २,२३)। २ विक्रम की ग्यारहवीं १,१०, सुपा ७६) । रक्खिय पुं[रक्षित]
करना, खाना । जिमइ (हे ४, ११०; षड्)।. शताब्दी के स्वनाम-ख्यात एक प्रसिद्ध जैन स्वनाम-ख्यात एक सार्थवाह-पुत्र (णाया १, माचार्य और ग्रन्थकार (सुर १६, २३
जिम (अप) देखो जिध (षड् ; भवि)।९) व पुं[पति जिन-देव, महंन्-देव | सार्घ ७६; गु ११)।
जिमण न [जेमन, भोजन] जीमन, भोजन (सुपा ८६)। 'वई स्त्री [वाच् ] जिनजिण्ण वि [जीर्ण] १ पुराना, जर्जर (हे १,
(श्रा १६, चैत्य ५६) देव की वाणी (बृह १) वयण न [°वचन] १०२; चारु ४६ प्रासू ७६) । २ पचा हुआ।
जिमण न [जेमन] जिमाना, भोज (धर्मवि जिन-देव की वाणी (हा ६)- वयण न
_ 'जिएणे भोमरणमत्ते' (हे १, १०२) । ३ ["वदन] जिनदेव का मुख (प्रौप) । वर पुं
वृद्ध बूढा (बृह १)। सेट्टि [श्रेष्ठिन्]
जिमिअ वि [जिमित, भुक्त] १ जिसने ["वर] अहंन देव (पउम ११, ४, अजि १) १ पुराना सेठ । २ घोष्ठि पद से च्युत (आव
भोजन किया हुआ हो वह (पठम २०, १२७; 'वरिंद पुं[वरेन्द्र महन् देव (उप ७७६)
पुष्प ३५७ महा)। २ जो साया गया हो वह, 'वल्लह वल्लभ] स्वनाम-हयात एक जैन जिण्ण (अप) देखो जिअ = जित (पिंग) ।
भक्षित (दे ३, ४६) माचार्य और प्रसिद्ध स्तोत्र-कार (लहुम १७)।जिण्णासा स्त्री [जिज्ञासा] जानने की इच्छा जिम्म देखो जिम % जिम् । जिम्मइ (हे ४, वसह पुं[वृषभ] महंन देव (राज) (पंचा ३)।
२३०)। 'सकहा स्त्री [ सक्थि] जिन-देव की अस्थि जिणि),
जिम्ह पुं [जिझ] १ मेघ-विशेष, जिसके (भग १०, ५) । सासण न [शासन] जिण्णी (अप) दखा जिाणय (पिग)।
बरसने से प्रायः एक वर्ष तक जमीन में चिकजैन दर्शन (उत्त १८ सूम १, ३, ४) जिण्णोब्भवा स्त्री [दे] दूर्वा, दूब (घास) (दे | नापन रहती है (ठा ४, ४-पत्र २७०)। 'हंस पु[हंस] एक जैन प्राचार्य (६ ४७)। ३, ४६)।
२ वि. कुटिल, कपटी, मायावी (सम ७१)। हर देखो 'घर (पउम ११, ३, सुपा ३६१ जिण्ड वि [जिष्णु] १ जित्वर, जीतनेवाला, ३ मन्द, मलस (जं २)। ४ न. माया, कपट महा)। हरिस पुगहषे] एक जैन मुनि विजयी (प्रामा)।२j. अर्जुन, मध्यम पांडव | (वव ३) । (रयण ६४) ययण न [यतन] जिन- (गउड)। ३ विष्णु, श्रीकृष्ण । ४ सूर्य, रवि। जिम्ह न [जैम्ह] कुटिलता, वक्रता, माया, देव का मन्दिर (पंचव ४)।५ इन्द्र, देव-नायक (हे २, ७५)।
कपट (सम ७१)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org