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जोइस-जोणि पाइअसद्दमहण्णवो
३६३ जोइस पुंज्यौतिष १ देवों की एक जाति, जोग देखो जुग्ग-युग्मः 'सपाउयाजोग जोगो पुरण होइ अक्कूरो' (धम्म १२ सुर २, सूर्य, चन्द्र, ग्रह आदि (कप्प औपः दंड २७)। | समाजुत्त' (राय ४०) ।
२०५; महा: सुपा २०८)। २ न. सूर्य प्रादि का विमान (ति १२; जो
जोगि देखो जोइ = योगिन् (कुमा)।जोग पुं[योग] नक्षत्र-समूह का क्रम से चन्द्र १)।३ शास्त्र-विशेष, ज्योषिष-शास्त्र (उत्त
| जोगिंद पुं[योगीन्द्र] महान् योगी, योगोश्वर | और सूर्य के साथ संबंध (सुज १०,१) २)। ४ सूर्य प्रादि का चक्र । ५ सूर्य प्रादि
(रयण २६) का मार्ग, आकाशः 'जे गहा जाइसम्मि चारं | जोगायोग] १ व्यापार, मन, वचन और
जोगिणी देखो जो इणी (सुर ३, १८६) Iv चरंति' (पएण ३)। शरीर की चेटा (ठा ४, १; सम १० स
जोगिय वि यौगिक] दो पदों के सम्बन्ध जोइस पुंज्यौतिय] १ सूर्य, चन्द्र प्रादि ४७०)। २ चित्तनिरोध, मन:-प्रणिधान,
से बना हुअा शब्द, जैसे-उप-करोति, अभिदेवों की एक जाति (कप्प; पंचा २)। २ समाधि (पउम ६८, २३; उत्त १) । ३ वश
घेणयति (पएह २, २-पत्र ११४)। २ वि. ज्योतिष शास्त्र का जानकार, जोतिषी करने के लिए या पागल प्रादि बनाने के
यन्त्र-प्रयोग से बना हुमा (उप पृ९४)। लिए फेंका जाता चूर्ण-विशेष; जोगो मइमोह
जोगीसर देखो जोईसर (स २०१)। (सुपा १५६)।
करो सीसे खित्तो इमाण सुत्ताण' (सुर ८, जोइसिअ वि [ज्योतिषिक] १ ज्योतिष
जोगेसरी स्त्री [योगेश्वरी] देव-विशेष (सण)।
जोगेसी स्त्री [योगेशी] विद्या-विशेष (पउम शास्त्र का ज्ञाता, दैवज्ञ, जोतिषी (स २२; २०१)। ४ सम्बन्ध, संयोग, मेलन (ठा १०)।
५ ईप्सित वस्तु का लाभ (णाया १, ५)। सुर ४, १००८ सुपा २०३) । २ सूर्य, चन्द्र
७, १४२)।
जोग्ग वि [योग्य] योग्य, उचित, लायक आदि ज्योतिष्क देव (ोप; जी २४; परण ६ शब्द का अवयवार्थ-सम्बन्ध (भास २४)। २)
(ठा ३, १; सुपा २८)। २ प्रभु, समर्थ, | ७ बल, वीर्य, पराक्रम (कम्म ५) "क्खेम राय पुं[राज] १ सूर्य, रवि । २ न [°क्षेम] ईप्सित वस्तु का लाभ और
शक्तिमान् (निचू २०)। चन्द्रमा (पएण २)।
जोग्गा स्त्री [दे] चाटु, खुशामद, (दे ३,४८)।
उसका संरक्षण (णाया १, ५)। स्थ वि जोइसिंद ' [ज्योतिरिन्द्र] १ सूर्य, रवि । [स्थ] योग-निष्ठ, ध्यान-लीन (पउम ६८,
जोग्गा स्त्री [योग्या] १ शास्त्र का अभ्यास २ चन्द्र, चन्द्रमा (ठा ६) २३)।त्थ पुं [°ार्थ] शब्द के अवयवों
(भग ११, ११; जं ३)। २ गर्भधारण में जोइसिण पु [ज्योत्स्न] शुक्ल पक्ष (जो का अर्थ, व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द का अर्थ
समर्थ योनि (तंदु) (भास २४)। दिढि स्त्री [दृष्टि] चित्त
जोज देखो जोअ = योजय। भवि. जोजजोइसिणा स्त्री [ ज्योत्स्ना] चन्द्र की प्रभा, निरोध से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान-विशेष
इस्सामि (कुप्र १३०)। कृ. जोज (उत्त चन्द्रिका, चाँदनी (ठा २,४) पक्ख पुं[पक्ष (राज) 1 °धर वि [धर] समाधि में
२७,८) - शुक्ल पक्ष (चंद १५)भा स्त्री [भा] कुशल, योगी (पउम ११६, १७)। परि
जोड सक [ योजय ] जोड़ना, संयुक्त चन्द्र की एक अग्र-महिषी (भग १०, ५)।
व्वाइया स्त्री ["परिव्राजिका] समाधि- करना। वकृ. जोडत (सुर ४ १९)। जोइसिणी स्त्री [ज्यौतिषी] देवी-विशेष
प्रधान वतिनी-विशेष (णाया १) पिंड | संकृ. जोडिऊण (महा)। (परण १७–पत्र ४६६)
jr'पिण्ड] वशीकरण आदि के प्रयोग से जोड पुन [दे] १ नक्षत्र (दे ३, ४६ पिए)। जोई स्त्री [दे] विद्युत्, बिजली (दे ३, ४६;
प्राप्त की हुई भिक्षा (पंचा १३, निचू १३) २ रोग-विशेष (सण)।
मुद्दा स्त्री [मुद्रा] हाथ का विन्यास-विशेष जोड (अप) स्त्री [दे] जोड़ी, युगल; 'एरिस जोईरस देखो जोइ-रस (कप्प; जीव ३)। (पंचा ३)1 °व वि [°वत् ] १ शुभ जोड न जुत्त' (कुप्र ४५३)। जोईस पुं योगीश] योगीन्द्र, योगि-राज
प्रवृत्तिवाला (सूत्र १, २,१)। २ योगी, जोडिअ पू [दे] व्याध, बहेलिया, चिड़ीमार
समाधि करनेवाला (उत्त ११) वाहि वि जोईसर पुं [योगीश्वर] ऊपर देखो (सुपा
[वाहिन] १ शास्त्र ज्ञान की आराधना
| जोडिअ वि [योजित] जोड़ा हुआ. संयुक्त ८३, रयण ६)
के लिए शास्त्रोक्त तपश्चर्या को करनेवाला। किया हमा (सुपा १४६ ३५१) जोउकण्ण न [योगकर्ण] गोत्र-विशेष (सुज
२ समाधि में रहनेवाला (ठा ३, १-पत्र
जोण j [योन, यवन] म्लेच्छ देश-विशेष १२०) Y°विहि पुंस्त्री [विधि शास्त्रों की १०, १६ टी)।
(णाया १,१)।
आराधना के लिए शास्त्र-निर्दिष्ट अनुष्ठान, जोउकण्णिय न [योगकर्णिक] गोत्र-विशेष |
जोणि स्त्री योनि] १ उत्पत्ति-स्थान (भगः तपश्चर्या-विशेष; 'इय वुत्तो जोगविही', 'एसा (सुज्ज १०, १६)।
सं ८२, प्रासू ११५)। २ कारण, हेतु , जोकार देखो जेक्कार (गा ३३२ अ)। जोगविही (अंग) 1 सत्थ न [शास्त्र] चित्त
उपाय (ठा ३, ३, पंचा ४)। ३ जीव का जोक्ख वि [ दे] मलिन, अपवित्र (दे ३, निरोध का प्रतिपादक शास्त्र (उवर १६०)
उत्पत्ति-स्थान (ठा ७)। ४ स्त्री-चिन्ह, भग ४८)
जोग देखो जोग्गः 'इय सो न एत्थ जोगो, (अरण)1°विहाग न [विधान] उत्पत्ति
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