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जुहिडिर-जेत्त
पाइअसद्दमण्णवो जुहिहिर ) देखो जहिटिल (पिंगः उप जूयय । पुं [युपक] शुक्ल पक्ष की द्वितीया । पूर्वोक्त ही अर्थ ( गा ५४८)। हिवइ जुहिट्ठिल ६४८ टी; गाया १, १६- जवय आदि तीन दिनों में होती चन्द्र की प्राधिपति यथ-नायक (उत्त ११)। जुहिटिल्ल ) पत्र २०८० २२६) ।
कला और संध्या के प्रकाश का मिश्रण (अणू जहन यूथ] युग्म, युगल, जोड़ा (पाचा २, जुहु सक [हु] १ देना, अर्पण करना । २ १२०; पव २६८)।
११, २) । काम न ["काम] लगातार चार हवन करना, होम करना । जुहुणामि (ठा | जूर सक [गह] निंदा करना। जूरंति (सूप दिनों का उपवास (संबोध ५८)। ७-पत्र ३८१; पि ५०१)। २, २,५५)।
जूहिय वि [यूथिक] यूथ में उत्पन्न (प्राचा जूअ न [यूत] जुमा, द्यूत (पास)। कर जूर अक[ ऋध् ] क्रोध करना, गुस्सा करना। २, २) । वि [°कर] जुआरी, जुए का खिलाड़ी (सुपा | जूरइ (हे ४, १३२ षड् )।
| जूहियठाण न [यूथिकस्थान] विवाह-मण्डप ५२२)। कार वि [कार] वही पूर्वोक्त जूर अक [खिद] खेद करना, अफसोस करना। वाली जगह (प्राचा २, ११, २)। अर्थ (णाया १,१८)। कारि वि [कारिन] जूरइ (हे ४, १३२; षड्)। जूर (कुमा)। जूहिया स्त्री [यूथिका] लता-विशेष, जूही जुपारी (महा)। केलि स्त्री [ केलि] द्यूत- ! भवि. जूरिहिइ (हे २, १९३) । वकृ. का पेड़ (पएण १पउम ५३, ७६)। क्रीड़ा (रयण ४८)। खलय न [खलक] | जूरंत (हे २, १९३)।
जूही स्त्री [यूथी] लता-विशेष, माधवी लता जुआ खेलने का स्थान (राज) । केलि | जूर अक [जूर] १ झरना, सूखना । २ (कुमा) । देखो केलि (रयण ४७)।
सक. वध करना, हिंसा करना (राज)। जे प्र. १ पाद-पूत्ति में प्रयुक्त किया जाता जूअ यूप] १ जुमा, धुर, गाड़ी का अवयव
जूरण न [जूरण] १ सूखना, झरना । २ अव्यय (हे २, २१७) । २ अवधारण-सूचक विशेष जो बैलों के कन्धे पर डाला जाता है, निन्दा, गर्हण (राज)।
अव्यय (उव)। जुअड़ ( अ पृ १३६ )। २ स्तम्भ-विशेष जूरव सक [वञ्च् ] ठगना, वंचना ।
जेअवि [जेय जीतने योग्य (रुक्मि ५०)। 'जूप्रसहस्सं मुसल सहस्सं च उस्सवेह' (कप्प)।
जूरवइ (हे ४, ६३)।
जेअ विजेतजीतनेवाला (सूत्र १, ३, १, ३ यज्ञ-स्तम्भ (जं ३)। ४ एक महापाताल- जूरवण वि [वश्चन्] ठगनेवाला (कुमा)। ११, ३, १, २)। कलश (पव २७२)।
जूरावण न [जूरण] झुराना, शोषण (भग जेउ वि [जेत] जीतनेवाला, विजेता (भग जूअअ पुंदे] चातक पक्षी (दे ३, ४७)। ३, २)।
२०, २)। जूअग पुं[यूपक] देखो जूअ यूप (सम | जूराविअ वि [क्रोधित] क्रुद्ध किया हुआ, जेउआण ! 'कोपित (कुमा)।
जेउं देखो जिण = जि । जूअग यूपक] सन्न्या की प्रभा और चन्द्र जूरिअ वि [खिन्न खेद-प्राप्त (पास)। जेऊण की प्रभा का मिश्रण (ठा १०)।
जूरुम्मिलय वि [दे] गहन, निबिड, सान्द्र जेक्कार पुं[जयकार] 'जय-जय' अावाज जूआ स्त्री [यूका] १ जूं, चीलड़, खटमल, क्षुद्र | (द ३, ४७) ।
। स्तुतिः 'हुति देवाण जेक्कारों (गा ३३२) । कीट-विशेष (जी १६)। २ परिमाण-विशेष,
शिष, जूल सा जूर कृष् । फूल (गा ३५४)। जेटू देखो जि? - ज्येष्ठ (हे २, १७२, महा: पाठ लिक्षा का एक नाप (ठा ६ इक)। जूव देखो जूअ = द्यूत (णाया १, २-पत्र उवा)। 'सेजायर वि [शय्यातर] यूकाओं को ७६)।
जेटु देखो जि? = ज्येष्ठ (महा)। स्थान देनेवाला (भग १५)।
जूव । देखो जूअ यूप (इक; ठा ४, जेट्ठा देखो जिट्ठा (सम ८ माचू ४) मुल जूआर वि [द्यूतकार] जुपारी, जुए का जूवय २)।
पुं[मूल] जेठ मास (ौपा गाया १, खेलाड़ी (रंभा; भवि, सुपा ४००)। जूस देखो झूस (ठा २, १: कप्प)।
१३)। मूली स्त्री [मूली] जेठ मास की जुआरि । वि [द्यूतकारिन् जुआ खेलनेजूस पुन [यूष] जूस, मूंग वगैरह का क्वाथ,
पूर्णिमा (सुज १०)। कढी (प्रोघ १४७ ठा ३, १)। जूआरिअ वाला, जुए का खेलाड़ी (द्र ४३, सुपा ४०० ४८८; स १५०)।
जेद्वामूली स्त्री [ज्येष्ठामूली] १ जेठ मास की जूसअ वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (षड् )। | जूसणा स्त्री [जोषणा] सेवा (कप्प)।
पूर्णिमा । २ जेठ मास की अमावस्या (सुज जूझ देखो जुज्झ=युध् । कृ.यूझियव्य(सिरि
जूसिय वि [जुष्ट] १ सेवित (ठा २, १)। १०२५)।
२ क्षपित, क्षीण (कप्प)।
| जेण देखो जइण = जैन (सम्मत्त ११७) । जूड पुं [जूट] कुन्तल, केश-कलाप (दे ४,
जूहन [यूथ] समूह, जत्था (ठा १०; गा जेण प्र[येन] लक्षण-सूचक अव्यय, भमररुमं २४ भवि)।
५४८)1°वइ पुं [पति समूह का अधि- जेण कमलवणं' (हे २, १८३; कुमा)। जूय न [यूप] लगातार छः दिनों का उपवास पति, यूथ का नायक (से ६, ६८ णाया १, जेत्त वि [यावत् ] जितना। स्त्री. °त्ती (संबोध ५८)।
। १; सुपा १३७) हिव पुं[धिप] (हास्य १३०) ।
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