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जाल-जि पाइअसहमहण्णवो
३५५ जाल न [जाल] १ समूह, संघात (सुर ४, जालाब सक [ज्वालय् ] जलाना, दाह देना। जावं देखो जाव (पउम ६८, ५०)1 ताव १३५; स ४४३) । २ माला का समूह, दाम- वकृ. जालावंत (महानि ७)।
प्र[तावत्] १ गणित-विशेष । २ गुणाकार निकर (राय)। ३ कारीगरीवाले छिद्रों से युक्त जालाविअ वि [ज्वालित] जलाया हुआ (ठा १०)। गृहांश, गवाक्ष-विशेष, झरोखा (औपः रणाया १, (सुपा १८६)।
जावंत देखो जावइअ (भग १, १)। १)। ४ मछली वगैरह पकड़ने का जाल, पाश- जालि पुं [जालि] १ राजा श्रेणिक का एक
जावग देखो जावय = यापक (दसनि १) विशेष (पएह १,१)। ४ मछली वगैरह पकड़ने पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा की जाल, पाश-विशेष (पएह १,१,४)। ५ पैर
जावण न यापन] १ बिताना, गुजारना । ली थी (अनु १)।२ श्रीकृष्ण का एक पुत्र, का आभूषण-विशेष, कड़ा (प्रौप)५ कडग जिसने दीक्षा ले कर शत्रुञ्जय पर्वत पर मुक्ति
२ दूर करना, हटाना (उप ३२० टी)। पुं[कटक] १ सच्छिद्र गवाक्षों का समूह। पाई थी (अंत १४)।
जावणा स्त्री [यापना] ऊपर देखो (उप ७२८ २ सच्छिद्र गवाक्ष-समूह से अलंकृत प्रदेश जालिय पुं [जालिक जाल-जीवि, वागुरिक,
टी)। (जीव ३)। 'घरग न [गृहक] सच्छिद्र बहेलिया, चिड़ीमार (गउड)।
जावणिज वि [यापनीय] १ जो बीताया
जाय, गुजारने योग्य । २ शक्ति-युक्त; जावगवाक्षवाला मकान (राय; पाया १,२) जालिय वि [ज्वालित] जलाया हुआ, सुलपंजर न [°पञ्जर] गवाक्ष (जीव ३)। गाया हुआ (उवः उप ५६७ टी)।
गिजाए मिसीहिलाए' (पडि) । "तंतन हरग देखो घरग (प्रौप)। जालिया स्त्री [जालिका] १ कञ्चुक (पएह ।
[तन्त्र] ग्रन्थ-विशेष (धर्म २)।। जाल पुंज्याल] ज्वाला, अग्नि-शिखा, आग १, ३-पत्र ४४गउड) । २ वृन्त (राज)।
जावय वि [यापक] १ बीतानेवाला । २ पुं. की लपट (सुर ३, १८८० जी ६)। जालुग्गाल ( [जालोद्गाल] मछली पकड़ने
तर्क-शास्त्र-प्रसिद्ध काल-क्षेपक हेतु (ठा, ४, जालंतर न [जालान्तर] सच्छिद्र गवाक्ष का
का साधन-विशेष (अभि १८३)। मध्यभाग (सम १३७)। जाव देखो जावइअ (प्राचा २, २, ३, ३)।
जावय वि [जापक] जीतनेवाला, 'जिणाणं जालंधर पुं[जालन्धर] १ पंजाब का एक जाव सक [ यापय्] १ गमन करना, गुजा
जावयाणं' (पडि)। स्वनाम-ख्यात शहर (भवि) । २ न. गोत्र- रना । २ बरतना। ३ शरीर का प्रतिपालन
जावय पुं [यावक] अलक्तक, भलता, लाख विशेष (कप्प) करना । जावइ (प्राचा) । जावेइ (हे ४,
का रंग (गउड सुपा ६६)।। जालंधरायण न [जालन्धरायण गोत्र- ४०) जावए (सूत्र १, १, ३)
जाव सय वि [यावसिक १ धान्य से गुजारा विशेष (प्राचा २, १५)।
जाव अ [यावत् ] इन अर्थों का सूचक | करनेवाला (बृह १) । २ घास-वाहक (प्रोध जालग देखो जाल = जाल (पएह १, १,५ अव्यय-१ परिमाण । २ मर्यादा । ३ अव- | २३८) प्रौपः रणाया १, १)।
धारण, निश्चय; जावदयं परिमाणे मज्जाया- | जाविय वि [यापित] बीताया हुमा (णाय! जालग पुं[जालक] द्वीन्द्रिय जीव की एक
एवधारणे चेइ' (विसे ३५१६; गाया १, १,१७) । जाति, मकड़ी (उत्त ३६, १३० ) ७) जीव स्त्री न [ज्जीव जीवन पर्यन्त
जास पुं [जाप] पिशाच-विशेष (राज)।
(माचा)। स्त्री: °वा (विसे ३५१८ औप) । जालघडिआ स्त्री [दे] चन्द्रशाला, अट्टालिका,
जासुमग । [जपासुमनस्] १ जपा
जीविय वि [जीविक] यावज्जीव-संबन्धी अटारी (दे ३, ४६)।
जासुमिण का वृक्ष, पुष्पप्रधान (परण १, (स ४४१) । देखो जावं ।
जासुयण गाया १,१)।२ न. जपा का जालय देखो जाल = जाल (गउड)। जाव ( [जाप] मन ही मन बार बार देवता
फूल (गाया १,१; कप्प) जालवगी स्त्री [दे] संवाद, सम्हाल, खबरः |
का स्मरण, मन्त्र का उच्चारण (सुर ६,
जाग पं [जाहक] जन्तु-विशेष, जिसके गुजराती में 'जाळवण' (सिरि ३८५) । १७४ सुपा १७१)
शरीर में काटे होते हैं, साही या साहिल जाला स्त्री [ज्वाला] १ अग्नि की शिखा (प्राचा; जावइ द] वृक्ष-विशेष (पएण १-पत्र |
(पराह १, १; विसे १४५४)।सुर २, २४६)। २ नवम चक्रवर्ती की माता ३४।।
जाहत्व न [याथार्थ्य] सत्यपन, वास्तविकता (सम १५२)। ३ भगवान् चन्द्रप्रभ की जावइअ वि [यावत् ] जितना; 'जावइया
(विसे १२७६)। शासनदेवी (संति )।
वयरणपहा' (सम्म १४४ भत्त ६४)
| जाहासंख देखो जहा-संखः 'जाहासंखमिमीणं जाला प्रयदा] जिस समय जिस काल में; जावई स्त्री जातिपत्री7१कन्द-विशेष (उत्त | नियकज साहुवामा य' (उप १७६) 11 'ताला जाग्रंति गुणा, जाला ते सहिएहिं ३६, ६८ सुख ३६, ६८)। २ गुच्छ वनस्पति | जाहे अ[यदा] जिस समय, जब, (हे ३, घेप्पंति' (हे ३, ६५)
की एक जाति (पएण १--पत्र ३४)। ६५ महा: गा९८)। जालाउ पुं [जालायुष्] द्वीन्द्रिय जन्तु- जावईय पं [जातिपत्रीक] कन्द-विशेष | जि (प्रप) देखो एव-एव (हे ४, ४२०; कुमा; विशेष, मकड़ी (राज)
(उत्त ३६, ६८)
- वजा १४)
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