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चेइअ-चोअअ
पाइअसहमहण्णवो
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अभीष्ट देवता की प्रतिमाः 'कल्लारणं मंगलं । अगारीहिं प्रगाराई चेइमाई भवंति (माचा २, 'ईसादासेण प्राविठे, कलुपाविलवेयसे ।। चेइयं पज्जुवासामो' (प्रौपः भग)। ५ अहं- १, २, २), 'चेइमं कइमेग?' (बृह २, कस) जे अंतरायं चेएइ, महामोहं पकुव्वई प्रतिमा, जिन-देव की मूत्ति (ठा ३, १; उवाः चेंध देखो चिंध (प्राप्र)।
(सम ५१)। परह २, ३, आव २; पडि); 'बिइएवं चेच्चा देखो चे = त्यज् ।
चेया देखो चेयणाः 'पत्तेयमभावाप्रो, न रेणुउप्पाएणं नंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेइ, | चे? अक [चेष्ट्] प्रयत्न करना, आचरण । तेल्लं व समुदए चेया' (विसे १६५२) तहिं चेइयाई वंदइ' (भग २०, ६); "जिण- करना । वकृ. चेटुमाण (काल)।
चेल नाचेला वस्त्र, कपड़ा (प्राचा बिबे मंगलचेश्यंति सययन्नुणो बिति' (पव चेटू देखो चिट्ठ = स्था (दे १, १७४)। चेलय । औप) । कण्ण न [कर्ण] ७६)। ६ उद्यान, बगीचा; 'मिहिलाए चेइए चेट्टण न [स्थान स्थिति, अवस्थान (वव ४)। व्यजन-विशेष, एक तरह का पंखा (स ५४६)वच्छे सीअच्छाए मणोरमे (उत्त ६.६)। ७ चेटण देखो चिठ्ठण = चेष्टन (उपपं ११)। गोल न [गोल] वस्त्र का गेंद कन्दुक सभा-वृक्ष, सभा-गृह के पास का वृक्ष । ८ चबूतरा- चेट्ठा स्त्री [चेष्टा] प्रयत्न, पाचरण (ठा ३, (सूम १, ४, २)। "हर न [गृह] तम्बू, वाला वृक्ष । ६ देवों का चिह्न-भूत वृक्ष। १० | १, सुर २, १०६)।
| पट-मण्डप, रावटी (स ५३७)।वह वृक्ष जहाँ जिनदेव को केवल ज्ञान उत्पन्न चेट्रिय देखो चिट्रिय = चेष्टित (प्रौपः महा) चेलय न [दे] तुला-पात्र; "दिलीतूलाए भुवणं, होता है (ठा ८ सम १३:१५६)। ११ वृक्ष, चेड दे] बाल, कुमार, शिशु (दे ३,१०० तुलंति जे चित्तचेलए निहियं' (वजा ५६)। पेड़; 'वारण हीरमाणम्मि चेइयम्मि मणोरमे पाया १, २; बृह १)।
चेलिय देखो चेल: 'रयणकंचरणचेलियबहुधन्नचेड (उत्त ६, १०)। १२ यज्ञ स्थान । १३
| भरभरिया' (पउम ६६, २५; आचा)।
पुं [चेट, क] १ दास, नौकर मनुष्यों का विश्राम-स्थान ( षड्; हे २,
चेडग (औप; कप्प) । २ नृप-विशेष, चेल्प न [दे] मुसल, मूषल (दे ३, ११)।'
चेडय) वैशालिका नगरी का एक स्वनाम चेल्ल) [दे] देखो चिल्ल (द) (पउम ६७, १०७)। खंभ पुं[स्तम्भ] स्तूप, थूभ,
प्रसिद्ध राजा (पाचू १, भग ७,६ महा)। चेल्लअ १३, १६ स ४६६ दसनि १ (सम ६३, राय; सुज्ज १८)। 'घर न
३ मैला देवता, देव की एक जघन्य जाति | उप २६८)। [गृह जिन-मन्दिरः अहंन्मन्दिर (पउम २, | (सुपा २१७)।
चेल्लग ) [दे] देखो चिल्लग (पएह १, १२; ६४, २६)1 जत्ता स्त्री [ यात्रा चेडिआ स्त्री [चेटिका] दासी, नौकरानी
चेल्लय। ४-पत्र ६८ ती ३३)। जिन-प्रतिमा-सम्बन्धी महोत्सव-विशेष (धर्म (भग ६, ३३; कप्पू)।
चेव प्र [एव, चैव] १ अवधारण सूचक ३)। थूभ [स्तूप] जिन-मन्दिर के
चेडी स्त्री चेटी] ऊपर देखो (प्रावम)। अव्यय, निश्चयदर्शक शब्द; 'जो कुणइ परस्स समीप का स्तूप (ठा ४, २ ज १)। दव्व चेडी
स्पीमारी. बाला. लडकी (पान दुहं पावइ तं चेव सो प्रणंत-गुणं (प्रासू २६: न ["द्रव्य देव-द्रव्य, जिन-मन्दिर-संबंधी
चेत्त न [चैत्य] चैत्य-विशेष (षड् ) । महा); 'अवहारणे चेवसद्दो यं' (विसे स्थावर या जंगम मिल्कत (वव ; पञ्चभाः
चेत्त चैत्र १ मास-विशेष, चैत मास ३५६५)। २ पाद-पूरक अव्यय (पउम ८, उप ४०७; द्र ४)1 परिवाडी स्त्री [ परि
(सम २६; हे १, . १५२)। २ जैन मुनियों ८८)। पाटी] क्रम से जिन मन्दिरों की यात्रा (धर्म का एक गच्छ (बृह ६)।
चेव प्र[इव] सादृश्य-द्योतक अव्यय, 'पेच्छइ २)1 'मह पुं[मह] चैत्य-सम्बन्धी उत्सव
चेत्ती स्त्री [चैत्री] १ चैत मास की पूरिणमा। गरणहरवसह सरयरवि चेव तेएणं' (पउम ३, (आचा २, १, २) । रुक्ख पुं[वृक्ष] २ चैत मास की अमावस (सुज १०, ६)।
४; उत्त १६, ३)। १ चबूतरावाला वृक्ष, जिसके नीचे चौतरा चेदि देखो चेइ (सण)।
चो देखो चउ (हे १, १७१, कुमाः सम ६०; बांधा हो ऐसा वृक्ष । २ जिन-देव को जिसके | चेदीस पुं[चेदीश] चेदि देश का राजा औपः भग; रणाया १,१; १४; विपा १, १; नीचे केवल ज्ञान उत्पन्न होता है वह वृक्ष । (सण)।
__ सुर १४, ६७)। आला स्त्री [°चत्वारिं३ देवताओं का चिह्न भूत वृक्ष । ४ देव-सभा चेयग वि[चेतक] दाता, देनेवाला ( उप | शत् ] चालीस और चार, ४४ (वसे २३०४)। के पास का वृक्ष (सम १३, १५६ ठा८)। ९५७)।
वट्रि स्त्री [°षष्टि] चौसठ, ६४ (कप्प) । 'वन्दण न ["वन्दन] जिन-प्रतिमा की चेयण चेतन] १ आत्मा, जीव, प्राणी | वत्तरि स्त्री [°सप्तति] सत्तर और चार, ७४ मन, वचन और काया से स्तुति (पव १; (ठा ४,४)।२ वि. चेतनावाला, ज्ञानवाला (सम ८४)। संघ १; ३)। वंदणा स्त्री [°वन्दना] | भुवि चेयणं च किमरूवं' (विसे १८४५)। चोअ सक [चोदय] १ प्रेरणा करना। वही पूर्वोक्त अर्थ (संघ १)। वास पु चेयणा स्त्री [चेतना ज्ञान, चेत, चैतन्य, सुध, | २ कहना। चोएइ (उवः स १५) । कवकृ. [°वास जिन-मन्दिर में यतियों का निवास | ख्याल (प्राव ६ सुर ४, २४५)।
चोइज्जत, चोइजमाण (सुर २,१० पाया (दस)। हर देखो "घर (जीव १, पउम चेयण नचैतन्य] ऊपर देखो (विसे १, १६) । संकृ. चोइऊण (महा)। ९५, ६२, सुपा १३, द्र ६५, उवर १६०)। चेयन्न । ४७५, सुपा २०सुर १४, ८)। चोअअ वि [चोदक] प्रेरक, प्रश्न-कर्ता, पूर्वचेइअ वि [चेतित] कृत, विहितः 'तत्थ २ चेयस देखो चेअ = चेतस् ।
पक्षी (अणु)।
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