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जच्च - जण
पाइअसद्दमहणव
जच्च पुं [दे] पुरुष, मरद, श्रादमी (दे ३, जजरिय वि [जर्जरित ] जीर्णं किया गया, ४०) । खोलता किया हुआ, पुराना (डा ४, ४ गुर ३, १६५; कस) । जजिंग नाम ( ती १५) । जज्जियन [ यावज्जीव] जीवनपर्यन्त जज्जीव) जिन्दगी भर 'जज्जीव प्रहिगरणं (पिड ५०६ : ५१२ ) ।
[जबिक] एक जैन प्राचार्य का
जश्च वि [जात्य ] १ उत्तम जातवाला, कुलीन, उत्तम, सुन्दर (खाया १, १ मा १२० सुपा ७७ कप्प ) । २ स्वाभाविक, अकृत्रिम (दु) ३ सजातीय, विजाति-मिश्रण से रहित, शुद्ध ( जीव ३ ) 1
जञ्चजण न [ जात्याअन] १ श्रेष्ठ प्रजन, सुन्दर भजन ( खाया १, १ ) । २ मर्दित भजन, तैल वगैरह से मदित श्रव्जन (कप्प ) । जयंदण [] ग सुगन्धि इव्य न १ विशेष, जो धूप के काम में आता है । २ कुंकुम, केसर (दे ३, ५२ ) ।
उत्तम
जबंध वि [जात्यन्ध] जन्म से धन्या जन्मांध (सुपा ३९५) । जच्चण्णिय ) वि [जात्यम्वित] सुकुल में जयन्निय उत्पन्न जाति का सूप, १०; बृह ३) । जच्चास पुं [जात्यश्व, जात्याश्व ] जाति का घोड़ा ( प ४, २९) । जश्चिय ( प ) वि [जातीय] समान जाति का (सरण) । जथिर न [ चिर] तक (वव ७) । [जच्छ सक [ यम् ] १ उपरम करना, विराम करना । २ देना, दान करना। जच्छइ (हे ४, २१५; कुमा) ।
जहाँ तक जितने समय
जच्छ पुं [ यक्ष्मन् ] रोग विशेष, यक्ष्मा, क्षयरोग (प्रा २२) ।
[] स्वन्द, स्वेर (दे ३, ४३,
छेद षड् ) ।
जज देखो जय = यज् । वकृ. जजमाण (नाट-राह ७२)।
जजु देखो जउ = यजुष् ( णाया १, ५; भग) जन वि [जय्य] जो जीता जा सके वह जीतने को शक्य (हे २, २४) । जवर वि[जर्जर] जी, सच्छिद्र, खोखला, जाँजर, झाँझरा या झाँझर (गा १०१ सुर ३, १३९) ।
जज्जर सक [जर्जरय् ] जीर्णं करना, खोखला करना। यह जज्जरित, जजरिजमाण (नाटचैत २३ सुपा १४) ।
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जट्ट पुं [ज] १ देश-विशेष (भव ) । २ उस देश का निवासी ( है २, ३०)
जटु वि [इ] यजन किया हुआ, याद किया हुना ( स ५५) ।
जन [इट] वजन, याग, यज्ञ (उत्त १२, ४०; २५, ३०) ।
जट्ठि स्त्री [ यष्टि ] लकड़ी, 'जट्टिमुट्ठिलउडपहारेहिं (महाः प्राप्त)।
जब
[ज] १ घचेतन, जीव. रहित पदार्थ २ मूर्ख, श्रालसी, विवेक शून्य (पाश्रः प्रासू ७१) । ३ शिशिर, जाड़े से ठंढा होकर चलने को अशक (पान) ।
जड देखो जढ ( षड् ) । as 7 श्री [जा] सटे हुए बाल मिले हुए If I ( २५७ सुपा २५१ ) । "धर वि [धर ] १ जटा को धारण करनेवाला । २ पुं. जटाधारी तापस, संन्यासी । पुं (पउम ३१, ७५) धारि [धारिन्] देखो पूर्वोक्त अर्थ (पउम ३३, १) । ~ जडहारि देखो जड-धारि ( कुप्र २६३ ) । - जहा [जटायु] स्वनाम-प्रसिद्ध बुद्ध 9 जहा } -- (स्व-प्रा
४०) ।
जहागि] [जटाकिन ] ऊपर देखो (प ४१, ६५) ।
जलवि[ जटावत् ] जटायुक्त, जटाधारी (हे २, १४९) । जडासुर १७७)।
[जटासुर] धनुर-विशेष (देखी
जडि वि [जटिन् ] १ जटावाला, जटायुक्त । २. जटाधारी तापस (भीक मत १०० ) । जदिअ व [जटिक] देखो जडि (कुत्र वि
२६३) ।
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जडिअ वि [जटित ] पिहित, ढका हुभा ( सिरि ५१९) । [डिअ
[. जटित] जहि जड़ा हुआ, (२४१ महा पाओ
,
जडिम पुंस्त्री [जडिमन ] जड़ता, जड़पन, जाय (सुपा ९ ) जडियाइलग पुं [दे. जटिकादिलक] ग्रहजहिमालय विशेष महाधिहायक देव-विशेष (ठा २, ३ चन्द २० ) । जडिल व [जटिल] १ जटावाला, जटायुक्त ( उवा कुमा २, ३५ ) । २ व्याप्त, खचितः 'उल्लसियवहलजालो लिजडिले जलणे पवेसो वा' (सुपा ४६५) । ३ पुं. सिंह, केसरी । ४ जटाधारी तापस (हे १, १६४; भग १५; पत्र ६४ ) ।
जडिलय ! [दे. जटिलक] राहू, ग्रह-विशेष
( सुज २० ) । -
जडिलिय वि [जटिलित ] जटिल किया 7 जडिलिला, जटायुक्त किया हुआ (मुपा
१२५२६९) ।
जडित वि [जटिन ] गटावाला, जटाधारी (चंड ) ।
जगुळ देवो जडि (भाग १४ – पत्र ६०० ) । जड्ड वि [दे] अशक्त, असमर्थ ( पव १०७) । जड्डु न [जाड्य ] जड़ता, जड़पन (उप ३२० टी; सार्धं १३० ) । -- जड्डू देखो जड ( १०७ पंचा जड्डू [२] हामी हस्ती (घोष २३० बृह १) । स्त्री जड्डा जी [दे] वाहा, शीत (सुर १३, २१४० पिग ) ।
।
जढ वि[स्थत] परित्यक्त मुक्त बजित (हे ४, २५८, प्रोघ १० ); 'जइवि न सम्मत्तजढों' सत्त ७१ टी) |
जडल जठर पेट उदर हे १,२२४०
जढर न ] जढल ) प्राः षड् ) ।
जण तक [ जनयू] उत्पन्न करना, पैदा करना जो जति (प्रासू १५० १०८० महा) जयति ( माचा) व जणंत, जमाण (सुर १३, २१; द्र ३६६ उव) 1 जण [जन] १ मनुष्य, मानव, ग्रादमी, पु लोग, व्यक्ति (श्रौप; श्राचाः कुमाः प्रासू
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