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जयण-जल पाइअसद्दमण्णवो
३४६ पर्वत की एक वापी (ती २४)। ६ नवमी जर वि [ जरत् ] जीर्ण, पुराना, वृद्ध, बूढ़ा जरि वि [जरिन्] जरा-पुक्त, वृद्ध, बूढा (दे तिथि (ज ७)। १० जैन मुनियों की एक (कुमाः सुर २, ६६, १०४)। स्त्री. ई (कुमाः ३, ५७, उर ३, १)। शाखा (कप्प)।
गा ४७२ अ)। ग्गव पुं[गव] बूढा बैल जरिअ वि [ज्वरित] ज्वर-युक्त, बुखारवाला जयण न [यजन] १ याग, पूजा । २ अभय- (बृह, अनु ४)। "ग्गवी स्त्री [गवी (गा २५६; सुपा २८६)। दान (पएह २,१)। बूढी गाय (गा ४६२) 'ग्गु पुं[गु] १
जल अक [ज्वल् ] १ जलना, दग्ध होना। जयण न [यतन] १ यत्न, प्रयत्न, चेरा, बूढ़ा बैल । २ स्त्री. बूढी गाय; 'जिएणा य
२ चमकना । जलइ (महा)। वकृ. जलंत उद्यम; 'जयणघडण-जोग-चरितं' (अनु) । २ | जरग्गवो पडिया' (पउम ३३, १६)।
(उवा; गा २६४)। हेकृ. जलि (महा)। यतना, प्राणी की रक्षा (पग्रह २, १)। जर देखो जरा (कुमाः अंत १६ वव ७)। प्रयो., वकृ. जलिंत (महानि ७)। जयण वि[जवन] वेगवाला, वेग-युक्त (कप्प)।
जरंड वि [दे] वृद्ध, बूढा (दे ३, ४०)। जल देखो जड (श्रा १२ प्राव ४) । जयण न [जयन] १ जीत, विजय (मुद्रा २६८ कप्पू) । २ वि. जीतनेवाला (कप्प)। जरग्ग वि [जरत्क] जीर्ण, पुराना (मनु ५)। जल न [जाड्य] जड़ता, मन्दता; 'जलधोय-.
जललेवा (साधं ७३ से १, २४)।' जयण न [दे] घोड़े का बख्तर, हय-संनाह जरठ वि [जरठ] १ कठिन, पुरुष । २ जीणं,
जल पुं [ज्वल] देदीप्यमान, चमकीला (सूम (दे ३, ४०)। पुराना (णाया १,१-पत्र ५)। देखो
१, ५, १)। जयणा स्त्री [यतना] १ प्रयत्न, चेष्टा, कोशिश
जरढ।
जल न [जल] वीर्य (वजा १०२)। कंत (निचू १)। २ प्राणी की रक्षा, हिंसा का जरड वि [दे] वृद्ध, बूदा (दे ३, ४०)।
पुंन [कान्त] एक देवविमान (देवेन्द्र परित्याग (दस ४)। ३ उपयोग, किसी जीव जरढ देखो जरठ (पि १९८; से १०, ३८)।
१४४)। कारि पुंस्त्री ["कारिन्] चतुरिको दुःख न हो इस तरह प्रवृत्ति करने का ३ प्रौढ, मजबूत (से १, ४३)।
न्द्रिय जन्तु-विशेष (उत्त ३६, १४६)। 'य ख्याल (निचू १; सं ६७ औप)। जरण न [जरण] जीर्णता, प्राहार का हजम वि [ज] पानी में उत्पन्न (श्रु ६८)। जयद्दह [जयद्रथ सिन्धु देश का स्वनाम- | होना, हाजमा (धर्मसं ११३५)।
वारिअ पुं [वारिक] चतुरिन्द्रिय जन्तु प्रसिद्ध एक राजा, जो दुर्योधन का बहनोई जरय पु [जरक] रत्नप्रभा नामक नरक पृथिवी की एक जाति (सुख ३६, १४६)। था (णाया १, १६)।
का एक नरकावास (ठा ६–पत्र ३६५) । जल न [जल] १ पानी, उदक (सूम १, ५, जया प्र[यदा] जिस समय, जिस वक्त (कप्प; मज्भ पुं[मध्य] नरकावास-विशेष (ठा |
-विशेष (ठा २; जी २)। २ पुं. जलकान्त-नामक इन्द्र का काल)। ६) वित्त वर्त] नरकावास-विशेष
एक लोकपाल (ठा ४, १)। कंत पुं जया स्त्री [जया] १ विद्या-विशेष (पउम ७, (ठा ६) । विसिटू पुं [विशिष्ट] नर- ["कान्त १ मणि-विशेष, रत्न की एक जाति १४१) । २ चतुर्थ चक्रवर्ती राजा की अग्र- कावास-विशेष (ठा ६)।
(पएण १, कुम्मा १५)। २ इन्द्र-विशेष, महिषी (सम १५२) । ३ भगवान् वासुपूज्य जरलद्धि वि [दे] ग्रामीण, ग्राम्य (दे उदधिकुमार-नामक देव-जाति का दक्षिण दिशा की स्वनाम स्यात माता (सम १५१)। ४ जरलविअ, ३, ४४)।
का इन्द्र (ठा २, ३)। ३ जलकान्त इन्द्र का तिथि-विशेष-तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी
जरा स्त्री [जरा] बुढ़ापा, वृद्धत्व (प्राचा, कसः एक लोकपाल (ठा ४, १)1 करप्फाल j तिथि (सुज १०)। ५ भगवान् पार्श्वनाथ की
प्रासू १३४) । कुमार पूं [कुमार] [करास्फाल] हाथ से पाहत पानी (पाम)। शासनदेवी (ती ६)। ६ प्रोषधि-विशेष श्रीकृष्ण का एक भाई (अंत)। संध पुं. करि पुत्रो [करिन] पानी का हाथी, (राज)।
[सन्ध] राजगृह नगर का एक राजा, जल-जन्तु विशेष (महा)। कलंब पुं जयार ' [जकार] १ 'ज' अक्षर । २ जका- नववा प्रतिवासुदेव, जिसको श्री कृष्ण वासुदेव [कदम्ब] कदम्ब वृक्ष की एक जाति रादि अश्लील शब्दः 'जत्थ जयारमयारं समरणी ने मारा था (सम १५३) । "सिंध पुं (गउड)। कीडा, कोला स्त्री [क्रीडा] जंपइ गिहत्यपच्चर्ख (गच्छ ३, ४)। [सिन्ध] वही पूर्वोक्त अर्थ (पएह १,४- पानी में की जाती क्रीड़ा, जल-केलि (णाया जयिण देखो जइश = जयिन् (पएह १, ४)। पत्र ७२) सिंधु पुं [सिन्धु] वही १,२)। केलि स्त्री [ केलि] जल-क्रीड़ा जर अक[] जीर्ण होना, पुराना होना, बूढ़ा |
पूर्वोक अर्थ (णाया १, १६ पत्र २०६७ (कुमा)। 'चर देखो यर (कप्प; हे १, होना । जरइ (हे ४, २३४)। कर्म. जीरइ, पउम ५, १५६)।
१७७)। 'चार [चार] पानी में चलना जरिज्जइ (हे ४, २५०) । वकृ. जरंत जरा स्त्री [जरा] वसुदेव की एक पत्नी (कुप्र
(माचा २, ५, १)। 'चारण '[चारण] (अच्नु ७६) १६)।
जिसके प्रभाव से पानी में भी भूमि की तरह जर पु [ज्वर] रोग-विशेष, बुखार (कुमा)। जराहिरण (अप) देखो जल-हरण (पिंग)। चला जा सके ऐसी अलौकिक शक्ति रखनेजर पुं[जर] १ रावण का एक सुभट (पउम | जरि वि [ज्वरिन्] बुखारवाला, ज्वर से वाला मुनि (गच्छ २)। चारि पुंगरिन्] ५६, ३)। २ वि. जीणं, पुराना (दे ३,५९)। पीड़ित (सुपा २४३)।
पानी में रहनेवाला जेतु (जी २०)।
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