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मेघ, अभ्र (सपा)। हर पुजल्सग पुं दी
पाइअसहमहण्णवो
जलइय-जव 'चारिया स्त्री [चारिका] क्षुद्र जन्तु-विशेष, | [वीर्य] १ इक्ष्वाकु वंश का एक स्वनाम- जलिअ वि [ज्वलित] १ जला हुआ, प्रदीप्त चतुरिन्द्रिय जीव की एक जाति (राज)। ख्यात राजा (ठा ८)। २ क्षुद्र कीट-विशेष, | (सूत्र १, ५, १)। २ उज्वल, कान्ति-युक्त "जंत न [यन्त्र] पानी का यन्त्र, पानी का चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (जीव १)। (पएह २, ५)। फवारा (कुमा)णाह पुं[ नाथ समुद्र, सय न [°शय] कमल, पद्म (उप १०३१ | जलिर वि [ज्वलित] जलता, सुलगता सागर (उप ७२८ टी)५ °णिहि पुं["निधि] | टी)५ साला स्त्री [शाला] प्रपा, पानी (धर्मवि ३५; कुप्र ३७६)। समुद्र, सागर (गउड) °णीली स्त्री ['नीली]. पिलाने का स्थान, याऊ (श्रा १२)। सूग न जलूगा । स्त्री [जलौकस् ] १ जन्तु
शैवाल (दे ३, ४२)। तुसार पुं [तुषार] [शूक] १ शैवाल । २ जलकान्त-नामक जलूया विशेष, जोंक, जलिका, जल पानी का विन्दु (पाप) थंभिगी श्री | इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)। °सेल ___ का कीड़ा (पउम १: २४; पण्ह १, १)। [स्तम्भिनी] विद्या-विशेष (पउम ७, [शैल] समुद्र के भीतर का पर्वत (उप २ पक्षि-विशेष (जीव १)। १३६) । 'द पुं [द] मेघ, प्रभ्र (मुद्रा ५६७ टी)। हत्थि पु[ हस्तिन] जल-जलूसग ' [दे] रोग-विशेष (उप पृ ३३२)। २६२, पव.१८)। द्दा स्त्री [द्रिा] पानी हस्ती, पानी का एक जन्तु (पाप)। हर पु जलोयर न [जलोदर] रोग-विशेष, जलन्धर, से भीजाया हुआ पंखा (सुपा ४१३)। [धर] १ मेघ, अभ्र (सुर २, १०४७ से १, जठराम (सण)। "निहि देखो "णिहि (प्रासू १२७)। "पभ ५६)। २ एक विद्याधर सुभट (पउम १२, जलोयरि वि [जलोदरिन्] जलन्धर रोग से पुं [प्रभ] १ इन्द्र-विशेष, उदधिकुमार- ६५)। हर पु[भर] जल-समूह (गउड)। पीड़ित (राज)। नामक देव-जाति का उत्तर दिशा का इन्द्र हर न [गृह] समुद्र, सागर (से १, ५६)। जलोया देखो जलूथा (जी १५)। (ठा २, ३)। २ जलकान्त नामक इन्द्र का हरण न [हरण] १ पानी की क्यारी
जल्ल पुं [दे. जल्ल] १ शरीर का मैल, सुखा एक लोकपाल (ठा ४, १)। य न [ज] (पान)। २ छन्द-विशेष (पिंग)। "हि ।
पसीना (सम १०, ४०; प्रौप)। २ नट की कमल, पद्म (पउम १२, ३७; प्रौप; पएण [धि] १ समुद्र, सागर (महा सुपा २२३)।
एक जाति, रस्सी पर खेल करनेवाला नट १) य देखो 'द (कालः गउड से १, २ चार की संख्या (विवे १४४)। "सय पुन |
(पएह २, ४० प्रौपः णाया १,१)। ३ २४)। यर पुंस्त्री [°चर] जल में रहने- [शय सरोवर, तलाव (सुर ३, १)।
बन्दी, दिरुद-पाठक (गाया १,१)। ४ एक वाला ग्राहादि जन्तु (जी २०)। स्त्री.री जलइय पु[जलकित] जलकान्त-नामक इन्द्र
म्लेच्छ देश। ५ उस देश में रहनेवाली म्लेच्छ (जीव २)। रंकु पुं[रङ्क] पक्षि-विशेष, का एक लोकपाल (ठा ४.१-पत्र १९८)।।
जाति (पएह १, १-पत्र १४)। वेंक पक्षी (गा ५७८ गउड)। रक्खस '
जलंजलि [जलाञ्जलि] तर्पण, दोनों हाथों
| जल्लार पुं [जल्लार] १ स्वनाम-प्रसिद्ध एक [ राक्षसराक्षस की जाति (पएण १)। | में लिया हुआ जल (सुर ३, ५१, कप्पु)।।
अनार्य देश । २ जल्लार देश का निवासी 'रमण न [रमण] जल-क्रीड़ा, जल-केलि | जलग [ज्वलक] अग्नि, प्राग (पिंड)। (णाया १, १३)। 'रय [रय] जलप्रभ- | जलजलिअ वि [जलजलित] 'जल-जल जल्लिय न [दे. जल्लक शरीर का मैल (उत्त नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)। शब्द से युक्त (सिरि ६६४)।
२४)। 'रासि पुं[ राशि] समुद्र, सागर (सुपा
जलजलिंत वि [जाज्वल्यमान] देदीप्यमान | जल्लोसहि स्त्री [दे. जल्लौषधि एक तरह १९५; उप २६४ टी)। रुह पुन [रुह] चमकता (कप्प)।
की आध्यात्मिक शक्ति, जिसके प्रभाव से शरीर पानी में पैदा होनेवाली वनस्पति (पएण १)।
जलण पुं [ज्वलन] १ अग्नि, वति (उप | के मैल से रोग का नाश होता है (पएह २, रूव पुं [ रूप] जलकान्त-नामक इन्द्र का
६४८ टी)। २ देवों की एक जाति, अग्नि- १, विसे ७७६)। एक लोकपाल (भग ३,८)। लल्लिर न
कुमार-नामक देव-जाति (पएह १, ४)। ३ जव सक [यापय ] १ गमन करवाना, [लिल्लिर] पानी में उत्पन्न होनेवाली वस्तु
वि. जलता हुआ। ४ चमकता, देदीप्यमानः | भेजना। २ व्यवस्था करना। जवइ (हे ४, विशेष (दंस १) । वायस पुंस्त्री ["वायस] 'एईए जलजलपोवमाएं (उव ६४८ टी। ४०)। हेकृ. जवित्तए (सूम १, ३, २)। जलकौआ, पक्षि-विशेष (कुमा)। वासि वि ५ जलानेवाला (सूत्र १, १, ४)। ६ न. कु जवणिज्ज, जवणीय (णाया १, ५; हे [वासिन्] १ पानी में रहनेवाला। २ पुं. अग्नि सुलगाना (पण्ह १, ३)। ७ जलाना,
१, २४८)। तापसों की एक जाति, जो पानी में ही निमग्न
भस्म करना (गच्छ २)1 जडि पं जव सक [यापय ] काल-यापन करना, रहते हैं (औप)। 'वाह पुं[वाह] १ मेघ, [जटिन्] विद्याधर वंश का एक राजा पसार करना । जति (पिंड ६१६)। अभ्र (उप पू ३२ सुपा ८९)। २ जन्तु- । (पउम ५, ४६)। "मित्त पं ["मित्र] | जव सक [जप्] जाप करना, बार-बार विशेष (पउम ८८, ७) 'विच्छय पु स्वनाम-ख्यात एक प्राचीन कवि (गउड)। मन ही मन देवता का नाम स्मरण करना, [वृश्चिक] पानी का बिच्छू, चतुरिन्द्रिय जलावण न [ज्वालन] जलाना, दग्ध करना | पुनः पुनः मन्त्रोच्चारण करना । जवइ (रंभा); जन्तु-विशेष (पएण १) वीरिय पुं (पएह १, १)।
'तप्पंति तवमणेगे जवंति मंते तहा सुविनाओं
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