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जव -जसा
( सुपा २०२ ) । वकृ. जवंत (नाट) । कवकृ. जविज्जंत (सुर १३, १८६ ) ।
जब पुं [प] आप, पुनः पुनः मन्त्रोच्चारण, बार-बार मन ही मन देवता का नाम स्मरण (२१२० ) ।
वपुं [व] १ अन्न- विशेष, जव या जौ (गाया १.१ परह १-४ ) । २ परिमारण विशेष श्राठ की माप (डा ) "गाली श्री ['नाली] वह नाली जिसमें जौ बोए जाते हों (प्राचू १) मन [मव्य ] १ तप-विशेष ( पउम २२, २४) । २ आठ यूका का एक नाप (२५) मा श्री [["मध्या]
व्रत विशेष प्रतिमा विशेष (४१) राय ['राज] नृप-विशेष (बृह )
सा
स्त्री [" वंश ] वनस्पति- विशेष (पराग १) जब [जय] वेग दोशीम गति पुं (कुमा) ।
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जब पुंन [यव] एक देवविमान (देवेन्द्र १४०) नाल [नालक] कन्या का कंचुक (दि ८८) नन [न] यव - निष्पन्न परमान्न, भोज्य-विशेष, जव की खीर, जाउर (पव २५६ ) 1/ जवजव पुं [यवयव ] अन्न- विशेष, एक तरह का यव-धान्य (ठा ३, १)
जवण न [दे] हल की शिखा, हल की चोटी (दे ३, ४१) ।
जवण न [अपन] जाप, पुनः पुनः मन्त्र का उच्चारण; 'श्रहिणा दट्ठस्स जए को कालो मंस जवसम्म (पउम ६६०९) । जवण वि [जवन] १ वेग से जानेवाला (उप ७६८ पुं. वेग, ७२. शीघ्र गति (धावम) ।
पाइअसद्दमहणवो
जवणालिया स्त्री [यवनालिका ] कन्या का बुक (धाम) 1
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जवणिआ स्त्री [ यवनिका ] परदा (दे ४, १; सण कप्पू) जवणिज्ज देखो जव = यापय् जवणी स्त्री [यवनी] परदा, घाण्यादक पट (६२, २५) । २ संचारियर दूती (श्रमि ५७) - जवणी श्री [बावनी]१ यवन की श्री । २
यवन की लिपि (सम ३५; विसे ४६४ टी) 1 जवणीअ देखो जव = यापय्
जयपचमाण [दे] जायश्व का वायु-विशेष
प्रारण वायु (गउड) 1
जयण [यवन] १ ले देश-विशेष ( पउम ६८, ६४ ) । २ उस देश में रहनेवाली मनुष्य जाति ( प १ १ ३ यवन देश का राजा (कुमा)। जवण न [यापन ] निर्वाह, गुजारा, (उत्त ८) ।
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जवणा स्त्री [यापना ] ऊपर देखो ( पव २ ) । जवणानिया श्री [यवनानिफा ] लिपि-विशेष (राज) 1
जवय
पुं [दे] जव का अंकुर (दे ३, ४२ ) ।
जवरय जवली स्त्री [दे] जव, वेगः 'गच्छति गव्यनेहेण पवरतुरयाहिरूढ़ा जवलीए" (सुपा २७६)।
जववारय [दे] देखो जवरय (पंचा ८) जवस न [यवस] १. पास 'गिद्विव्य जवसम्म ' (उप ७२८ टी उप पृ ८४) । २ गेहूं वगैरह धान्य (मामा २३, २) - जब स्त्री [जपा] १ ली-विशेष, जवा-गुण्य
का वृक्ष । २ गुड़हल का फूल, अड़हुल का पुष्प (कुमा)
जवास पुं [वास] वृक्ष-विशेष, रक्त पुष्पवाला वृक्ष - विशेष; 'पाउसि जवासो (श्रा २३ पण १) जावा (प
१७) -
जवि
जविण
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वि [जमिन] १ गवाला वेग-युक्त सुपा ११२ ) । २ पु. अश्व, घोड़ा
(राज) 1
१
जबिअ वि [जपित] जिसका जाप किया गया हो वह ( मन्त्र आदि) (सिरि ३६६ ) । २५. अध्ययन प्रकरण आदि बंश (तुन ग्रंथांश २, १३) ।
जवि
[थापित] १ गमित गुजरा हुआ।
२ नाशित (कुमा) । जस पुं [ यशस् ]
कीर्ति, इज्जत, सुख्याति ( धौपः कुमा) । २ संयम, त्याग विरति (वव १ दस ५, २) । ३ विनय ( उत्त ३ ) । ४ भगवान् प्रनन्तनाथ का प्रथम शिष्य (सम १५२ ) । ५ भगवान् पार्श्वनाथ
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का आठवां प्रधान शिष्य (कप्प ) 1 कित्ति स्त्री [कीर्त्ति ] सुख्याति, सुप्रसिद्ध (सू
; श्राचू १) । भद्द पुं ['भद्र ] स्वनामख्यात एक जैन प्राचार्य (कप्पः सार्धं १३ ) । "म. मंत वि [वत्] १ यशस्वी, इतदार, कीत्तिवाला ( परह १, ४) । २ पुं. स्वनामप्रसिद्ध एक कुलकर पुरुष (सम १५० ) 1 'वई स्त्री ["वती ] १ द्वितीय चक्रवर्ती सगरराज की माता (सम १५२ ) २ तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी की रात्रि (चंद १०) । 'म्म पुं ['वर्मन ] स्वनाम - ख्यात नृप - विशेष (गउड) वाय पुं [वाद] साधुवाद, यशोगान, प्रशंसा (उप १८६ टी) । "विजय पुं ["विजय] विक्रम की बहारों शताब्दी का एक जैन सुप्रसिद्ध प्रकार न्यायाचार्य श्रीमान यशोविजय उपाध्याय (राज) हर [पर] १ भारतवर्ष का भूत कालिक अठारहवाँ जिन देव (पव ८) । २ भारतवर्ष के एक भावी जिन देव ( पव ४६ ) । ३ एक राजकुमार (धम्म) । ४ पक्ष का पाँचवाँ दिन (जं ७ ) । ५ वि. यश को धारण करनेवाला, यशस्वी ( जीव ३) । देखो जसो जसंसि पुं [यशस्विन् ] भगवान् महावीर के पिता का एक नाम (प्राचा २, १५, ३० कप्प ) 1
जसद पुं [जसद् ] धातु-विशेष, जस्ता (राज) । जसदेव पुं [यशोदेव] एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं ( प २७६ ) 1
जसभद्द पुं [ यशोभद्र ] १ पक्ष का चतुर्थ दिवस (सुज्ज १०, १४) । २ एक राजर्षि, जो वागड देश के रत्नपुर नगर का राजा था और जिसने जैनी दीक्षा ली थी. जो धाचार्य हेमचन्द्र के गुरु थे (मुत्र ७ १८) ३ न. उड्डुवाटिक गण का एक कुल (कप्प ) 1 जसवई श्री [यशोमती] भगवान् महावीर की दौहित्री का नाम ( आचा २१५, ३) जसस्सि वि [ यशस्विन् ] यशस्वी, कीर्तिमान् (सूत्र १६, श्रु १४३) । जसहर न [ यशोदर ] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४९) ।
जसा स्त्री [यशा ] कपिलमुनि की माता ( उत्त ८) ।
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