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जसो" देखो जस 'आ श्री ["दा] १ नन्द नामक गोप की पत्नी (गा ११२ ६५०)। २ भगवान् महावीर की पत्नी (कम्प) कामि वि ["कामिन] यश चाहते वाला (दस २) कित्तिनाम न [कीर्त्ति नामन] कर्म-विशेष, जिसके प्रभाव से सुयश फैलता है (सम ६७) 'घर [र] धरणेन्द्र के पश्य सैन्य का अभिपति देव (हा ५, १) । २ न. ग्रैवेयक देवलोक का प्रस्तर (एक) हरा श्री ["धरा] १ दक्षिण पर्वत पर रहनेवाली एक दिशाकुमारी देवी (ठा ८२ जम्बू-वृक्ष विशेष सुदर्शना ( जीव ३) । ३ पक्ष की चौथी रात्रि (जो ४ ) 1 जसोधर देखो जस-दर ( सुज १०, १४) । - जसोधरा देखो जसो हरा ( सुज १०, १४) 1 जसोया स्त्री [ यशोदा] भगवान् महावीर की
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पत्नी का नाम ( आचा २, १५, ३) । - जह सक [हा] त्याग देना, छोड़ देना । जहइ (पि ६७) । वकृ. जहंत ( वव ३) । कृ. जहणिज्ज (राज) । संकू. जहित्ता (पि १८२) ।
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जह [य] जहाँ, जिसमें ( हे २, १६१) । जह [ यथा ] जिस तरह से जैसे (ठा १ स्वप्न २०) कमन ["क्रम] क्रम के अनुसार, अनुक्रम (पंचा 8 ) 1 क्खाय देखो अक्खाय (श्रावम) 1ट्ठिय वि [स्थित ] वास्तविक, सत्य (सुर १, १६२३ सुपा ५७ ) । स्थवि [] वास्तविक सत्य (पंचा १५) स्थनामवि [र्थनामन् ] नाम के अनुसार गुणवाला (१६) | "थवा वि [र्थवादिन] सत्य-वक्ता (सुर १४, १६) पन [ याथात्म्य ] वास्त विकता, सत्यता (राज) । °रिह न [हें] उचितता के अनुसार (सुपा ११२ ) वट्टिय वि [" वृत्त] सत्य, यथार्थं (सुपा ५२९ ) + "विहित्री ["विधि] विधि के अनुसार 'नहगामिणिपमुहाम्रो जहविहिरगा साहियव्वानो' (सुर १, २८) खन[*संख्य] संख्या । के क्रम से, क्रमानुसार (नाट) । देखो जहा =
।
यथा ॥
जहण न [जघन] कमर के नीचे का भाग (गा १६६ : गाया १, ९ ) 1
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पाइअसमण्णवो
जहणरोद [] [अरु जंघा ( पुं जाँघ ३, -88)11
जहणा श्री [दान ] परित्याग (संबोध५१) जहणूसव न [दे] अर्धोरुक, जघनांशुक, जहणूसुअ 5 श्री को पहनने का यन-विशेष (दे ३, ४५६ षड् ) ।
जण वि [जघन्य] निकुष्ट, हीन, प्रथम } नाय (सम का मग का है है की जहन्न । १, ३८ दं ६) ।
= = । ।
जहा देखो जद्द हा (पि १५०) संह. जहाइता, जहाय ( सू १ २ १ प ५६१)
।
जहा देखो जह यथा ( हे १६७० कुमा) । जुत्त वि [युक्त ] यथोचित योग्य (सुर २. २०१) जेन [येष्ठ] ज्येष्ठता के क्रम से (म) नाम [नामक] । वि जिसका नाम न कहा गया हो, श्रनिर्दिष्ट- नामा, कोई जीव ३) तल ग ["वध्य] सध्य वास्तविक माला) तन ["तथ] सत्य वास्तविक (राज) वह न [याचाराच्य] वास्तविकता, सत्यता 'जाणासि णं भिक्खु जहास (१.६२
सूत्र का एक अध्ययन (सूत्र १, १३) । *पट्टकरण [["प्रवृत्तवरण] मारमा का परिणाम विशेष (धाचा) भूय वि ["भूत] सच्चा वास्तविक (खाया ११ राणिया स्त्री ["रात्निकता ] ज्येष्ठता के क्रम से, बड़प्पन के अनुसार ( कस) रुह देखो जहरिह (४६३) पिन ["वृत्त] जैसा हुआ हो वैसा यथार्थ ( २४) ५ सति नीत ['शक्ति ] शक्ति के अनुसार (पंचा
स
३) । जहाजाव वि [दे. यथाजात] जड़ मूर्ख बेवकूफ (दे १. ४१ प १.३) जहि देखो जह पत्र (हे २- १६१३ या । = जहिं ( १३१ ; प्रासू ५६) । जहिये देखो जहिं (पिट २८) 1
जदिन्छ न [यथेच्छ] इच्छा के अनुसार (सुपा १९ पिंग) 1
जहिच्छिय न [ यथेप्सित ] इच्छानुकूल, इच्छानुसार (पंचा १)
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जसो जाइ
हिच्छिया श्री [यहच्छा]] मरजी स्वेच्छा स्वच्छन्दता (गा ४५३३ विसे ३९९६ स ३३२) जदिट्ठिल
[युधिष्ठिर] पाराहु-राजा का ज्येष्ठ पुत्र, ज्येष्ठ पाण्डव (हे १, १०७ प्राप्र ) ।
जहिमा स्त्री [दे] विदग्ध पुरुष की बनाई गाथा (दे ३, ४२)
जगद्विल देखो जहिट्ठिल (हे १- १६
१०७) 1
1
जतन [यथोक्त] कनानुसार (ि जअ [यचैव] जैसे ही (से २०१९) IV च्छ देसी जद्दिच्या २
जहोइन [ यथोदित] कवितानुसार (धर्म ३) । जोइय [यथोचित ] योग्यता - न के जद्दोषिय सार (सेम सुवा ४७१) जा श्रक [जन्] उत्पन्न होना । जाइ (हे ४. १२६) वह जायंत (कुमा) संकृ 'एक्के च्चिय निव्विणा पुणो-पुणो जाइडं. च मरिउं च' ( स १३० ) ।
जा सक [या ] १ जाना, गमन करना । २ प्राप्त करना । ३ जानना । जाइ (सुपा ३०१ ) । जंति (महा) । वकृ. जंत (सुर ३,१४३ १०, ११७) । कवकृ. जाइजमाण ( परह १,४) । जा सक [य] सकता, समर्थ होना "किंतु मम एव न जाइ पव्य', 'हा कि जायइ प्रज्झाइउं' (सुख २, १३) । जा देखो जाब = यावत् (हे १, २७१ कुमाः सुर १५.१३८ ) ।
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जान देखो जायजाप (हास्य १३२ ) । (प्राकृ जाओ देखो जाया जाम (६६) १ जाअर देखो जागर (मुद्रा १८७ ) । जाओ श्री [यातृ] देवर-भार्या देव की पहनी, देवरानी (प्राकृ ४३) ।
जाइ स्त्री [जाति] १ पुष्प - विशेष, मालती (कुमा) । सामान्य नैयायिकों के मत से एक धर्मविशेष, जो व्यापक हो, जैसे मनुष्य का मनुष्यत्व, गो का गोत्व (विसे १६०१ ) । ३ जात, कुल, गोत्र, वंश, ज्ञाति (ठा ४ २ सून ६, १३० कुमा) । ४ उत्पत्ति, जन्म ( उत्त ३ पडि ) । ५ क्षत्रिया वैश्य आदि जाति (उत्त३)+ पुष्प-प्रधान जाई का पेड़ (पण १)।
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