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पामा दर्जल छिन्न वि [छिन्न
त निश्चित
१, ५, २, १२)
छिजंत? देखो छिंद
३३८ पाइअसद्दमण्णवो
छिच्छिकार-छिवाडी छिच्छिकार पुं[छिच्छिकार] निवारण-सूचक छित्तर [दे] देखो छेत्तर (स ८ २२३ | छिप्पाल ([दे] सस्यासक्त बैल, खाने में लगा या घृणा-सूचक शब्द, छिः, छि (पिंड ४५१) उप पृ ११७; ५३० टी)।
हुमा बैल (दे ३, २८)। छिछि प्रदें घिधिक् छि छि, धिक्- | छित्ति स्त्री [छित्ति] छेद, विच्छेद, खएडन | छिप्पालुअन [] पूछ, लागूल (द २, धिक् , अनेक धिक्कार (हे २, १७४ षड्) (विसे १४५८ लहुम ५)।
२६) छिज्ज देखो छिद - छिद् । हेकृ. छिजिउ छित्तु वि [छेतृ] छेदनेवाला (पव १)। छिप्पिंडी श्री[दे] १ व्रत-विशेष । २ उत्सव(तंदु)।
छिद्द देखो छिड्ड (णाया १, २, ठा ५, १; |
डिणाया १२ ठा५.१ विशेष । ३ पिष्ट, पिसान (दें ३, ३७)। छिन्ज वि[छेद्य १ खण्डित किया जा सके। पउम ६४, ६)।
छिप्पिअ वि[दे] क्षरित, झरा हुआ, टपका २ छेदने योग्य (सूम २, ५)। ३ न. छेद, छिद्द पु[दे] छोटी मछली (दे ३, २६) ।
हुआ (पास)। विच्छेद, द्विधाकरण; 'पावंति बंधवहरोहछिज
छिप्पीर न [दे] पलाल, पुपाल, तृण (दे ३, छिद्दिय वि [छिद्रित] छिद्र-युक्त, छिद्रवाला मरणावसारणाई" (मोघ ४६ भा; पुप्फ
२८)। (गउड)।
छिप्पोल्ली स्त्री [दे] प्रजादि की विष्ठा (निच १)। छिजत वि [क्षीयमाण] क्षय पाता, दुर्बल
छिन्नविछिन्न] १ खण्डित, त्रुटित, छेद-युक्त | छिब्भ सकr क्षिप्] फेंकना । छिभंति होता, 'छिजतेहिं अणुदिणं, पञ्चक्खम्मिवि (भगः प्रासू १४६)। २ निर्धारित, निश्चित तुमम्मि अंगेहि' (गा ३४७)। (बृह १)। ३ न. छेद, खण्डन (उत्त १५)।
छिमिछिमिछिम अक [छिमिछिमाय] 'ग्गंथ वि [ग्रन्थ] स्नेह-रहित, स्नेह-मुक्त
| 'छिम-छिम' आवाज करना। वकृ. छिमि
(पण्ह २, ५)। २ पुं. त्यागी, साधु, मुनि, छिज्जमाण
छिमिछिमंत (पउम २६, ४८)। छिड्ड न [छिद्र] १ छिद्र, विवर (पउम २०,
निर्ग्रन्थ (ठा )।च्छेय [च्छेद] नय
छिरा स्त्री [शिरा] नस, नाड़ी, रग (ठा २, विशेष, प्रत्येक सूत्र को दूसरे सूत्र की अपेक्षा १६२; अनु ६; उप पृ १३८)। २ अवकाश, से रहित माननेवाला मत (एंदि)। द्वाणतरहिरि
१; हे १,२६६)। अवसर (पएह १, ३) । ३ दूषण, दोष (सुपा
भालू की आवाज (पउम ९४, वि [ध्वान्तर] मार्ग-विशेष, जहाँ गाँव, ३६०)। पाणि पुं[पाणि] एक प्रकार
४५)। नगर वगैरह कुछ भी न हो ऐसा रास्ता (बृह का जैन साधु (प्राचा २, १, ३)। "
छिल्ल न [दे] १ छिद्र, विवर (दं ३, ३५;
१)। मडंब वि [ मडम्ब] जिस गाँव या छिड्ड पुंन [छिद्र] प्राकाश, गगन (भग २०.
षड्)। २ कुटी, कुटिया, छोटा घर । ३ शहर के समीप में दूसरा गाँव वगैरह न हो २-पत्र ७७५)।
बाड़ का छिद्र (दे ३, ३५)। ४ पलाश का (निचू १०)। रुह वि [रुह] काट कर छिण्ण देखो छिन्न (णाया १, १८ सूत्र
पेड़ (तो )। बोने पर भी पैदा होनेवाली वनस्पति (जीव
| छिल्लर न [दे] पल्वल, छोटा तलाव (दे ३,
१० परण ३६)। छिण्ण पुं [दे] जार, उपपति (दे ३, २७;
२८ सुर ४, २२६)। छिन्नाल वि[दे हल की जात का बेल आदि षड् )।
छिल्लर वि[दे] असार, छिछरु, खालीं।
(उत्त २७, ७)। छिण्णच्छोडण न [दे] शीघ्र, तुरन्त, जल्दी
छिल्ली स्त्री [दे] शिखा, चोटी (दे ३, २७)। छिन्नालिंगा । स्त्री [दे] स्थलचर पक्षि-विशेष (दे ३, २६)।
छिण्णालिंगा (अंग वि. प्र०५८)। देखो | छिध सक [स्पृश्] स्पर्श करना, छूना । छिण्णयड विदे] टंक से छिन्न (पास)। छिण्णालिआ।
छिवइ (हे ४, १८२) । कर्म. छिप्पइ, छिविछिण्णा स्त्री [दे] असती, कुलटा (दे ३, २७)।
छिप्पन [क्षिप्र] जल्दी, शीघ्र । तूर न जइ (हे ४, २५७)। वकृ. छिवंत (गा छिण्णाल पुं[दे] जार, यार, उपपति, छिनाला | [तूर्य शीघ्र । २ बजाया जाता एक बाजा,
२६६)। कवकृ. छिप्पंत, छिक्जिमाण या छिनरा (द ३, २७ षड्) तुरही (विपा १, ३, रणाया १,१८)।
(कुमाः गा ४४३, स ६३२ श्रा १२)। छिण्णालिआ। स्त्री [दे] असती, कुलटा,
छिवट्ठ [दे] देखो छेवट्ठ (कम्म २, ४)। छिण्णाली पुंश्चली, छिनारी, छिनाल, छिप्पन [दे] १ भिक्षा, भीख (दे ३, ३६;
छिवण न [स्पर्शन] स्पर्श, छूना (उप १८७ व्यभिचारिणी। (मृच्छ ५५; दे ३, २७)। सुपा ११५) । २ पुच्छ, लांगूल (दे ६, ३६;
टीः ६७७)। छिण्णोव्भवा स्त्री [दे] दूर्वा, दूब (घास), .
पाप्र)
छिया स्त्री [दे] श्लक्षण कष, चीकना चाबुक; - दाभ (दे ३, २६)। छिप्पंत देखो छिव = स्पृश् ।
'छिवापहारे ये (पाया १, २-पत्र ८६ छित्त देखो खित्त क्षेत्र (औप; उप ८३३ छिप्पंती स्त्री [दे] १ व्रत-विशेष । २ उत्सव
पएह १, ३; विपा १, ६)। टी; हेका ३०)। | विशेष (दे ३, ३७)
छिवाडिआ। स्त्री [दे] १ वल्लि वगैरह की छित्त वि [दे] स्पष्ट, छूमा हुआ (दे ३, २७ छिप्पंदूर न [दे] १ गोमय-खण्ड, गोबर- छिवाडी फली, सीम या सेम (जं १)।२ गा १३; सुपा ५०४ पाम)।
खण्ड । २ वि. विषम, कठिन (दे ३, ३८) पुस्तक-विशेष, पतले पन्नेवाली ऊँची पुस्तक,
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