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छाया-छिच्छय
पाइअसहमण्णवो छाया स्त्री [छाया] १ आतप का प्रभाव, और छः ७६ (पउम १०२, ८६; सम ८५)। छिदिऊण, हिंदित्ता, छिदित्त, छिंदिय, छाँह (पास)। २ कान्ति, प्रभा, दीप्ति (हे १, म वि [तम] छिहत्तरवाँ (भग)। छेत्तूण (पि ५८५; भग १४,८; पि ५०६ २४६ प्रौप; पात्र)। ३ शोभा (प्रौप)। ४ छावलिय वि [षडावलिक] छः प्रावलिका- ठा ३, २; महा)। कृ. छिंदियव्य (परह प्रतिबिम्ब, परछाई (प्रासू ११४; उत्त २)। परिमित समयवाला (विसे ५३१) । २, १)। हेकृ. छेत्तुं (भाषा) ५ धूप-रहित स्थान, अनातप देश (ठा २, | छास? वि [षट्पष्ट] छियासठवाँ (पउम | छिंदण न [छेदन] छेद, खण्डन, कर्तन ४) गइ स्त्री [गति] १ छाया के अनुसार
(प्रोघ १५४ भा)। गमन । २ छाया के अवलम्बन से गति (पएण छासी स्त्री [दे] छाछ, तक्र, मठ्ठा (दे ३, २६) छिदावण न [छेदन] कटवाना, दूसरे द्वारा १६)। पास पुं [पाच] हिमाचल पर छासीइ स्त्री [षडशीति] छियासी, अस्सी | छेदन कराना (महानि ७)।स्थित भगवान् पाश्र्वनाथ की मूत्ति (ती ४५)
और छः। म वि [तम] छियासीवाँ, ८६ छिंदाविय वि [छेदित] विछिन्न कराया छाया स्त्री दि] १ कीति, यश, ख्याति । २ वाँ (पउम ८६,७४)।
गया (स २२६) । भ्रमरी, भमरो, भौरी (दे ३, ३४) ।
छाहत्तरि (अप) देखो छावत्तरि (पि २४५)। छिपय पु[छिम्पक] कपड़ा छापने का काम छायाइत्तय वि [छायावत् ] छायावाला,
छाहत्तरि देखो छावत्तरि (पव २३६) . करनेवाला (दे १,९८ प्राप)। था / ० २०३)। छाहा स्त्री [छाया] १ छाह, पातपछिकन दे]क्षत छौंक (दे ३.३६: कूमा)। छायाला स्त्री [ षट्चत्वारिंशत् ] छियालीस, छाया का प्रभाव । २ प्रतिबिम्ब, परछाई | छाही
छिक्क वि [दे. छुप्त] स्पृष्ट, छूमा हुआ
)(षड् ; प्राप; सुर २, २४७) ६, चालीस और छः, ४६ (भग)। ६५ हे १, २४६ गा ३४)।
(दे ३, ३६. हे २, १३८२ से ३, ४६ स छायालीस स्त्रीन. ऊपर देखो (सम ६६ कप)
४४४)1 परोइया स्त्री [प्ररोदिका ] छाही स्त्री [दे] गगन, आकाश । 'मणि पुं छायालीस वि [षट्चत्वारिश] छियालीसवाँ, |
वनस्पति-विशेष (विसे १७५४)। | [मणि] सूर्य, सूरज (दे ३, २६)। ४६ वा (पउम ४६, ६६)
छिक्क वि [छीत्कृत] छी-छी आवाज से छार वि [क्षार] १ पिघलनेवाला, झरनेवाला। | छिअ देखो छीअ (दे ८, ७२; प्रामा)।
माहूत; 'पुविपि वीरसुणिमा छिक्काछिक्का २ खारा, लवण-रसवाला। ३. लवण, छिछई स्त्री [दे] असती, कुलटा (हे २,
पहावए तुरिय' (प्रोघ १२४ भा)। नोन, नमक । ४ सजी, सजीखार । ५ गुड़ । १७४; गा; ३०१, ३५०; पाम, धर्मरत्न
छिकंत वि [दे] छींक करता हुआ (सुपा (हे २, १७, प्राप्र)। ६ भस्म, भूति (विसे लघुवृत्तिपत्र ३१, १)।
। ११६)। १२५६ स ४४ प्रासू १४५; णाया १,२)। छिछटरमण न [दे] क्रीड़ा-विशेष, चक्षु-छिका स्त्री [दे] छिक्का, छींक (स ३२२) ।' ७ मात्सर्य, असहिष्णुता (जीव ३)। स्थगन की क्रीड़ा (दे ३, ३०)।
छिकारिअ वि [छीत्कारित] छी-छी आवाज छार पु[दे] अच्छभल्ल, भालूक (दे ३, २६)। छिछय पुं[दे] १ देह, शरीर । २ जार,
से आहूत, अव्यक्त आवाज से बुलाया हुआ उपपति। ३ न. फल-विशेष, शलाटु-फल छारय देखो छार (श्रा २७)।
| (मोघ १२४ भा टी)। छारय न [दे] १ इक्षु-शल्क, ऊख की छाल
छिकिय न [दे] छींकना, छींक करना (स छिछोलो स्त्री [दे छोटा जल-प्रवाह (द ३, (६, ३, ३४) । २ मुकुल, कली (दे३, ३४
३२४) २७; पा)। पाम)।
छिक्कोअण वि [दे] असहन, असहिष्ण छिंड न [दे] १ चूड़ा, चोटी (दे ३, ३५; | (दे ३, २६)। छारिय वि[छारिक क्षार-सम्बन्धी (दस ५,
पाम)। २ छत्र, छाता। ३ धूप-यन्त्र (देछिक्कोट्रली स्त्री [दे]१ पैर की अावाज ।
३, ३५) । छाल पुं[छाग प्रज, बकरा (हे १, १९१)।
२ पाँव से धान्य का मलना। ३ गोइठा का छिडिआ स्त्री [दे] १ बाड़ का छिद्र। २ | छालिया स्त्री [छागिका] प्रजा, छागी (सुर
टुकड़ा, गोबर-खण्ड (दे ३, ३७)। अपवादः 'छ छिडिप्रानो जिएणसासणम्मि छिक्कोलिअ विदे1 तनु, पतला, कृश ७, ३०; सण)। (पव १४८ श्रा६)।
(द ३, २५)। छाली स्त्री [छागी] ऊपर देखो (प्रामा)।
छिंडी स्त्री [दे] बाड़ का छिद्र (णाया १, छिक्कोवण [दे] देखो छिक्कोअण (ठा छाव [शाव] बालक, बच्चा, शिशु (हे १, २-पत्र ७९)।
६-पत्र ३७२)। २६५ प्राप्र; वव १)
छिंद सक [छिद् छेदना, विच्छेद करना। छिग्ग (शौ) सक [छुप्] छूना। छिग्गदि छावण देखो छायण (बृह १)।
छिदइ (प्राप्र महा)। भवि. छेन्छ (हे ३, (प्राकृ६३) छावद्वि स्त्री [षट्षष्टि] छाछठ, छियासठ, १७१)। कर्म, छिज्जा (महा)। वकृ. छिचोलय पु[दे] देखो छिव्वोल्ल (पाप) ६६ (सम ७८ विसे २७६१)।
छिंदमाण (णाया १,१) । कवकृ. छिज्जत, छिच्छई देखो छिछई (षड्) छावत्तरि स्त्री [षट्सप्तति] छिहत्तर, सत्तर छिज्जमाण (श्रा ६, विपा १, २)। संकृ. | छिच्छय देखो छिछय (षड्)।।
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