________________
३३०
पाइअसद्दमहण्णवो
चुल्लग-चेइ [पित] चाचा, पिता का छोटा भाई (विपा चूडा देखो चूला (सुर २, २४२, गउड; प्रयुत को चौरासी लाख से गुणने पर जो १,३)५°माउया स्त्री ['मातृ १ छोटी माँ, | गाया १, १, सुपा १०४)।
संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४ जीव ३)। माता की छोटी सपत्नी, विमाता, सौतेली माँ चूडल्लअ (अप) देखो घृड (हे ४. ३६५) चूलिया देखो चूला (सम ६६; सुर ३, १२, (उप २६४ टीः रणाया १,१; विपा १, ३)। चूर सक [चूरय , चूर्णेय ] खण्ड करना, | एंदि; निचू १; ठा ४, ४)।' २ चाची, पिता के छोटे भाई को स्त्री (विपा १,
तोड़ना, टुकड़ा-टुकड़ा करना। चूरेमि (धम्म चूव (अप) देखो चूअ (भवि)। ३–पत्र ४०)। सगय, सयय पुं. ६ टी)। भवि. चूरइस्सं (पि ५२८)। वकृ. चूह सक [क्षिप्] फेंकना, डालना, प्रेरणा। [°शतक] भगवान् महावीर के दश मुख्य चूरंत (सुपा २६१, ५६०)।
चूहइ (षड् ) उपासकों में से एक (उवा)। हमवंत पुं चूर (अप) पुन [चूर्ण] चूर, भुरभुरः 'जिह
चे प्र[चेत् ] यदि, जो, अगर (उत्त १६); [हिमवत् ] छोटा हिमवान् पर्वत, पर्वत.
गिरसिंगहु पडिअ सिल, अन्नुवि चूरु करेइ'
| ‘एवं च को तित्थं, न चेदचेलोत्ति को विशेष (ठा २, ३; सम १२; इक)। हिम(हे ४, ३३७)।
गाहो?' (विसे २५८६)। वंतकूड न [ हिमवत्कूट] १ क्षुद्र हिमवान्
चे देखो चय = यज्। चेइ, (भाचा)। संकृ. चूरण देखो चुन्नण (कुप्र २.३)। पर्वत का शिखर-विशेष । २ पुं. उसका
| चेचा (कप्पा मोप)। अधिपति देव-विशेष (जं ५)। हिमवंतचूरिअ वि [चूर्ण, चूर्णित] चूर-चूर किया
|चे । देखो चि। चेइ. चेअइ, ए, चेअए गिरिकुमार पुं [हिमवगिरिकुमार] हुआ, टुकड़ा-टुकड़ा किया हुग्रा (भवि)।
चेअ(षड्)। देव-विशेष, जो क्षुद्र हिमवत्कूट का अधिष्ठायक
| चूरिम पुन [दे] मिठाई विशेष, चूर्मा लड्डू चेअक [चित् ] १ चेतना, सावधान है (जं ४)/ (पव ४ टी)।
होना, ख्याल रखना। २ सुष पाना, स्मरण चुल्लग न [दे] संदूक (कुप्र २२७ २२८)। चूल' देखो चूला। मणि न [ मणि]| करना, याद पाना। चेयइ (स ५३८)। ३ चुल्लग [दे देखो चोल्लक (प्राक) विद्याधरों का एक नगर (इक)।
सक. जानना। ४ अनुभव करना। चेयए चुल्लिो
(पावम)। चूलअ [दे] देखो चूड (नाट)। स्त्री [चुल्लि, 'ल्ली] चूल्हा, जिसमें |
| चेअ सक [चेतय ] १ ऊपर देखो। २ चुल्ली आग रखकर रसोई की जाती है वह चूला श्री [चूडा] १ चोटी, सिर के बीच की
देना, अपरण करना, वितरण करना । ३ (दे १, ८७; सुर २, १०३)।।
केश-शिखा (पास)। २ शिखर, टोंचा 'प्रवि चुल्ली स्त्री [दे] शिला, पाषाण-खण्ड ( दे |
करना, बनाना; 'जो अंतराय चेएई (सम चलइ मेरुचूला (उप ७२८ टी)। ३ मयूर
५१) । चेराइ, चेएसि, चेएमि (प्राचा)। वकृ. शिखा। ४ कुक्कुट-शिखा। ५ शेर की चुल्लुच्छल प्रक [दे] छलकना, उछलना; केसरा। ६ कुंत वगैरह का अग्र भाग। ७
चेते[ए]माण (ठा ५, २-पत्र ३१४; 'चुल्लुच्छलेइ जे होइऊण्यं, रित्तयं कणकरणेइ।
सम ३६) विभूषण, अलंकार; भरियाई ण खुम्भंती सुपुरिसविन्नाणभंडाई ।' 'तिविहा य दव्वचूला,सञ्चित्ता मोसगा य प्रचित्ता।
चेअ अ [एव] अवधारण सूचक अव्यय, (सूअनि ६६ टी)।
निश्चय बतानेवाला अव्यय (हे २, १८४)। कुक्कुड सीह मोरसिहा, चूलामणि अग्गकुंतादी। चुल्लोडय पुं[दे] बड़ा भाई (दे ३, १७)।
चेअ न [चेतस्] १ चेत, चेतना, ज्ञान,
चूला विभूसणंति य, सिहरंति य होंति एगट्ठा चूअ [दे] स्तन-शिखा, थन का अग्न भाग,
चैतन्य (विसे १६६१; भग १६)। २ मन,
(निचू १)। चूची (दे ३, १८)।
चित्त, अन्तःकरण (दस ५, १, ठा ६, २)।' ८ अधिक मास । ६ अधिक वर्ष। १० ग्रन्थ
चेइ [चेदि] देश-विशेष (इक सत्त ६७ चूअ ' [चून] १ वृक्ष-विशेष, माम्र, प्राम का परिशिष्ट (दसचू १) । कम्म न ["कर्मन]
टी)Y वइ पुं [ पति] चेदि देश का राजा का गाछ (गउड; भगः सुर ३, ४८)। २ संस्कार-विशेष, मुण्डन (आवम)। मणि
(पिंग)V देव-विशेष (जीव ३) । वडिसगन [वतं- पुंस्त्री [मणि] १ सिर का सर्वोत्तम आभूषण
चेई पुन [चैत्य] १ चिता पर बनाया सक] सौधर्म विमान-विशेष (राय)। वडिंसा विशेष, मुकुट-रत्न. शिरो-मणि (प्रौपः ।
चेअ) हुआ स्मारक, स्तूप, कबर या कब्र वगैस्त्री [वतंसा] शक्रेन्द्र को एक अग्र-महिषी, राय)। २ सर्वोत्तम, सर्व-श्रेष्ठ; 'तिलायचूला
रह स्मृति चिह्न 'मडयदाहेसु वा मडयथूभियासु इन्द्राणी-विशेष (इका जीव ३)। मणि नमो ते' (घण १)।
वा मडयचेइएसु वा (माचा २, २, ३)। चूआ स्त्री [चूता शक्रेन्द्र की एक अग्र- चूलिय पुंचूलिक] १ अनार्य देश-विशेष । २ व्यन्तर का स्थान, व्यन्तरायतन (भगः
महिषी, इन्द्राणी-विशेष (इका ठा ४, २)। २ उस देश का निवासी (पएह १,१)। ३ उवाः राय; निर १, १; विपा १,१, २)। चूचुअ पुन [चूचुक] स्तन का अग्रभाग स्त्रीन. संख्या विशेष, चूलिकांग को चौरासी ३ जिन-मन्दिर, जिन-गृह, प्रहन्मन्दिर (ठा (प्राकृ ११)
लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह ४,२-पत्र ४३०, पंचभा, पंचा १२ चूड [दे] चूड़ा, बाहु-भूषण, वलयावली
(इका ठा २, ४)। स्त्री. या (राज)। महा द्र ४, २७); 'पडिमं कासी य चेइए (दे ३, १८७, ५२, ५६; पाप्र)। चूलियंग न [चूलिकाङ्ग] संख्या-विशेष, रम्मे' (पव ७६)। ४ इष्ट देव की मूर्ति,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org