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३२६ पाइअसहमहण्णवो
चित्तंग-चिर (प्रजि २५)। 'गर पुं[कर] चित्रकार, चितकबरा (पान)। २'. जंगली पशु-विशेष, चिप्पिअ ' [दे] नपुंसक-विशेष, जन्म के चितेरा (सुर १, १०४ रणाया १, ८) हरिण के प्राकारवाला द्विखुरा पशु-विशेष | समय में अंगूठे से मर्दन कर जिसका अंडकोश 'गुत्ता स्त्री [गुप्ता] १ देवी-विशेष, सोम- (जीव १, पएह १, १)।
दबा दिया गया हो वह (पव १०६ टी)। नामक लोकपाल की एक अग्र-महिषी (ठा ४, | चित्तलि पुंस्त्री [चित्रलिन] साँप की एक चिप्पिडय पुं[दे] अन्न-विशेष (दसा ६)। १)। २ दक्षिण रुचक पर्वत पर बसनेवाली जाति (पएण १)।
चिबुअन [चिबुक] होठ के नीचे का अवएक दिक्कुमारी, देवी-विशेष (ठा ८)। पक्ख | चित्तलिअ वि [चित्रलित, चित्रित] चित्र- यव, ठोढ़ी (कुमा)।
["पक्ष १ वेणु-देव नामक इन्द्र का एक युक्त किया हुआ, 'पढम विप्र दिअद्धे कुड्डो | चिन्भड न [चिर्भिट] खीरा, ककड़ी, फललोकपाल, देव-विशेष (ठा ४, १)। २ क्षुद्र रेहाहि चित्तलिओं' (गा २०८)।
विशेष, गुजराती में 'चीभडु' (दे ६, १४८)। जन्तु-विशेष, चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष (जीव चित्तविअअ वि [दे] परितोषित (षड्) चिब्भडिया स्त्री [चिभिटिका] १ वल्ली१)। फल, फला, फलय न [फलक चित्तवीणा स्त्री चित्रवीणा वाद्य-विशेष विशेष, ककड़ी का गाछ । २ मत्स्य की एक तसवीरवाला तख्ता (महा: भग १५ पि (राय ४६)।
जाति (जीव १) ५१९)। 'भित्ति स्त्री [भित्ति] १ चित्र-चित्ता स्त्रीचित्रा १ नक्षत्र-विशेष (सम २)। चिब्भिड देखो चिब्भड (सुपा ६३०; पाम)। वाली भीत। २ स्त्री की तसवीर (दस)। २ देवी-विशेष, एक विद्यत्कुमारी देवी (ठा | चिमिट्ट वि[चिपिट] चिपटा, बैठा हुआ, "यर देखो गर (गाया १,८)1 रस ४.१)। ३ शक्रेन्द्र के एक लोकपाल की चिमिढ, दबा हुमा (नाक) (गाया १,८; [स] भोजन देनेवाली कल्पवृक्षों की एक ३ शक्रेन्द्र ने
स्त्री, देवी-विशेष (ठा ४, १-पत्र २०४)। पि २०७; २४८) । जाति (सम १७ पउम १०२, १२२)।
४ पौषधि-विशेष(सुर १०,२२३; पएण १७) चिमिण वि[दे] रोमश, रोमाञ्चित, पुलकित, "लेहा स्त्री [ लेखा] छन्द-विशेष (पजि
चित्ताचिल्लडय। [दे] जंगली पशु-विशेष गद्गद (दे ३, ११ षड् ) । १३)°संभूइय न ["संभूतीय चित्र
चित्ताचेल्लरय । (माचा २,१, ५, ३, ४) चिय देखो चेइअ = चैत्या 'सो अन्नया कयाइ मौर संभूत नामक चाण्डाल-विशेष के वृत्तान्त
चित्तावडी स्त्री [चित्रपटी] वस्त्र-विशेष, छींट चियपरिवाडि कुणंतमो नयरे' (सम्मत्त १५६)। वाला 'उत्तराध्ययनसूत्र' का एक अध्ययन (उत्त
(बूटीदार) मादि कपड़ा; 'उवविट्ठा "चित्ता- चियका) स्त्री [चिता] मुर्दे को फेंकने के १२)। सभा स्त्री [°सभा] तसवीरवाला
वडिमसूरयम्मि विन्भमवई कमलया 2 (स चियगा) लिए चुनी हुई लकड़ियों का ढेर गृह (णाया १,८)1°साला स्त्री [शाला
७३८)।
| (पएह १, ३–पत्र ४५; सुपा ६५७; स चित्र-गृह (हेका ३३२)।
|चित्ति पुं[चित्रिन] चित्रकार, चितेरा (कम्म | ४१६)। चित्तंग पुं[चित्राङ्ग] पुष्प देनेवाले कल्प
१, २३)।
चियत्त देखो चत्त (भग २, ५; १०, २; वृक्षों की एक जाति (सम १७) )
चित्तिअ वि [चित्रित चित्र-युक्त किया । कप्प, निचू १) । चित्तग देखो चित्त=चित्र (उपपू ३०)
हमा (मौपा कप्प, उप ३६१ टी दे १,७५)। चियत्त विदे] १ अभिमत, सम्मत (ठा ३, चित्तजाणुअ देखो चित्त-ण्णु (प्राकृ १८)।
चित्तिया स्त्री [चित्रिका] स्त्री-चीता, श्वापद- | ३)। प्रीतिकर, राग-जनक (औप)। ३ चित्तठिअ वि [दे] परितोषित, खुश किया विशेष की मादा (पएण ११)।
प्रीति, रुचि । ४ अप्रोति का प्रभाव (ठा ३, हुप्रा (दे ३, १२)।
चित्ती देखो चेत्ती (सुन १०, ७)। ३-पत्र १४७)। चित्तण न [चित्रण] चित्र-कर्म (धर्मवि ३४) चित्ती स्त्री चैत्री] चैत्र मास की पूर्णिमा चियया देखो चियगा (पउम ६२, २३)। चित्तदाउ पुं[दे] मधु-पटल, मधपुड़ा (दे | (इक)।
चियाग ) देखो चाय = त्याग (ठा ५, १; ३, १२)।
चिहविअ) विदे] निर्णाशित, विनाशित | चियाय , सम १६)। चित्तपत्तय ' [चित्रपत्रक] चतुरिन्द्रिय | चिहाविअ (दे ३, १३; पापः भवि)
चिर न [चिर] १ दीर्घ काल, बहुत काल जीव की एक जाति (स्त ३६, १४६)।। चिन्न देखो चिण्ण (सुपा ४ सणः भवि)। (स्वप्न ८३; गा १४७)। २ विलम्ब, देरी चित्तपरिच्छेय वि[दे] लघु, छोटा (भग, | चिप्प सक [दे] १ कूटना । २ दबाना । कर्म.. (गा ३४) । ३ वि.दीर्घ काल तक रहनेवाला: 'वि (? चि)-प्पिजसि जं तस्सिं केरणवि गोमद्द
"हियइच्छियपियलंभा चिरा सया कस्स जायंति चित्तय देखो चित्त = चित्र (पाम)। वसहेण' (दे २,९६ ट)। संकृ. चिप्पित्ता | (वजा ५२) आरअ वि [कारक] चित्तयलया स्त्री [चित्रकलता] वल्ली-विशेष (बृह २)।
विलम्ब करनेवाला (गा ३४)1 जीवि वि (हम्मीर २८)।
चिप्पग पुन [दे] कूटी हुई छाला गुजराती में [जीविन्] दीर्घ काल तक जीनेवाला (पि चित्तल वि [दे] १ मण्डित, विभूषित । 'चेपो' (कस २, ३० टि)।
५६७)। जीविअ वि [जीवित दीर्घ २ रमणीय, सुन्दर (दे ३, ४)। | चिप्पड देखो चिविड (धर्मवि २७)।'
काल तक जीया हुमा, वृद्ध (वाघ २, ३४)। चित्तल वि [चित्रल] १ चितला, कबरा, चिप्पय देखो चिप्पग (कस २, ३० टि)। । "ट्टिइ, हिइय, द्विईय वि ["स्थितिक]
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