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किलीण देखो किलिग (भवि ) । किलीव देखो कीव ( स ६० ) । किलेस अक [ क्लिश् ] क्लेश पाना, हैरान होना । किलेस (प्राकृ २७ ) । फिलेस [] [१] दाव (श्रीप २ दुःख, पीड़ा, बाधा (पउम २२, ७५ सुज २०)। ३ दुःखकारण कर्म शुभा । ४ शुभ कर्म (बृह १) । र वि [कर] क्लेशजनक ( पउम २२, ७५ ) । किलेसिय वि [लेशित ] दुःखी किया हुआ (मुर ४, १६७ १६९ ) ।
किव्हा देखो किडा (६१) । किस [कृप] इस नाम का एक ऋषि पुं १ कृपाचार्य ( हे १, १२८ ); भाइसयसमग्गं गंगेयं सउणी कीवं विदुरं दो जप की ( ? सरंग किवं ) श्रासत्या' (पाया १, १६- २०८ ) । देखो (मा)
किविडी श्री [दे] १ किवाड़, पारद्वार
२ घर का पिछला आँगन (दे, २, ६० ) । किविण देखो किवण (हे १, ४६० १२८० गा १३६: सुर ३, ४४ प्रासू ५१; परह १, १ ) । किवीडोणि[कृपीटयोनि] धनि (सम्मत २२६) । किस सक[] हसित करना, श्रपचित करना सिए (सू १, २, १, १४) । किस वि [कुश] १ (उपर दुर्बल, निर्बल ११३) । २ पतला ( हे १, १२८ ठा ४, २) ।
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किसर पुं [कृशर ] १ पक्वान्न विशेष, तिल, चावल और दूध की बनी हुई एक खाद्य चीज । २ खिचड़ी, चावल और दाल का मिश्रित भोजन-विशेष (हे १. १२० ) । किसर देवी केसर 'महमहिषदससि (हे १, १४६) ।
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किसरा स्त्री [ रा ] खिचड़ी, चावल दाल का मिश्रित भोजन विशेष (हे १, १२८ दे १,८८ ) ।
फिसल देखो किसलय हे १, २६९ कुमा) | किसलय व [सिल]ि मंकुरित नये अंकुरवाला (सुर ३, ३६) । किसलयन [[फसलब] [मून अंकुर १ ( २० ) । २ कोमल पत्ता ( जी 8 ) ; 'सोसियममाणतो भरण' ( पण १ ) । माला स्त्री [माला ] किवण वि [कृपण] १ गरीब रंक, दीन विशेष पनि १६ ) । (१,११७) २ दरिद्र, किसा देखो कासा (हे १, १२७) । निर्धन (राह १, २) कंजूस, दाता किसाणु [कृशानु] नि पछि बाग । ३ १ अग्नि, वह्नि, | (दे २, ३१) । ४ क्लीब, कायर ( सू २,२ ) । २ वृक्ष - विशेष, चित्रक वृक्ष । ३ तीन की किंवा स्त्री [कृपा ] दया, मेहरवानी ( हे १, संख्या (हे १, १२८; षड् ) । १२) ["पन्न] कृपा प्राप्त, फिसि श्री [कृप] ती पास बिले १६१५० । चन्नवि दयालु ( पउम ६५, ४७ ) । सुर १५, २००३ प्राप्र ) । किमाण न [कृपाण] तलवार (सुपा फिसिअ वि [कुशित] दुर्बलता-यात कुशवा खड्ग, १५८ हे १, १२८; गउड) । युक्त (गा ४० वजा ४० ) । किसिवि [कृषित] १ लिखित रेखा किया हुआ । २ जोता हुमा, कृष्ट । ३ खींचा ( १, १२० ) ।
किवा [कृपालु] दयालु दया करनेवाला ( पउम ३४, ५०, ९७, २० ) । किविड न [दे] लहान, अन्न साफ करने का स्थान । २ वि. खलिहान में जो हुम्रा हो वह (दे २,६०) ।
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पाइअसद्दमणको
किसंग वि [कृशाङ्ग] दुर्बल शरीर वाला (गा ६५७) ।
किसीवल पुं [कृषीवल ] कर्षक, किसान; 'पायं परस्स धन्नं भक्खति किसीवला पुब्वि (१५)।
किसोर पुं [किशोर] बाल्यावस्था के बाद की वालावालका 'सीकिसोरोग्य हाम्रो निग्ग' (सुपा ५४१) । किसोरी श्री [किशोरी] कुमारी, अविवाहिता युवती (छाया १, २ ) । फिस्स देखो फिलिस सिंह किस्स इत्ता (सूत्र १, ३, २ ) ।
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कि देखो (धाचा कुमाभाग ३, २० ) कहूं किहं गाया १, १७) ।
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किलीणकीय
कीअ देखो कीव ( षड् ; प्रात्र) । फीइस वि] [कीरा]] कैसा, किस तरह का (१४०) ।
कीक्स
[कीकश] १ कृमि- जन्तु- विशेष ।
२ न हड्डी, हाड़ । ३ वि. कठिन, कठोर (राज)।
कीचन देखो कीग (देशी १७७)। कीड देखो किड्ड = क्रीड् । भवि की डिस्सं (पि २२६) ।
की
[कीट] १ कीड़ा, क्षुद्र जन्तु ( उव ) । २ की विशेष परिन्द्रियजन्तु की एक जाति (उत्तर) ।
-
कीडइड वि [ कीटव.] कीड़ावाला क युक्त (गउड)।
कोण न [कीडन] सेन, कीड़ा (सुर १, ११०)।
कीडय [कटक] देखो कीड फीट (नाट = सुपा ३७० ) ।
[कीज] कीड़े के तन्तु से उत्पन्न होनेवला वस्त्र, वस्त्र-विशेष (अणु) । कीटा देखो किड्डा (गुर १११६ कीडाविया देखो किड्डाविया (राज) । कीडिया त्री [कीटिका ] पिपीलिका, चींटी (सुर १०, १७९ ) ।
[कीटी] ऊपर देखो (उप १४७ टी दे २, ३) ।
कीण तक [कीं] खरीदना, मोल लेना। कीद कील (प) भनि कीत्सि (पि ५११५३४) ।
कणा [कीनाश ] यम, जम (पान सुपा १८३ ) । गिद्द [ "गृह ] मृत्यु, मौत (उप १३६ टी) ।
कीदिस (शौ) देखो कीरिस (प्राकृ ८३)। कीय वि [कीत]] १ खरीदा या मोल लिया हुआ (सम ३६ परह २, १; सुपा ३४५) । २ जैन साधुनों
के
लिए भिक्षा का एक दोष
(ठा ३, ४ ) । सूम १, २)
३ न क्रय, खरीद (दस ३; कड, गड वि [कृत]
मूल्य देकर लिया हुआ (१२ सा के लिए मोल से कीना हुआ, जैन साधु के लिए भिक्षा दोष युक्त वस्तु (पि ३३० ) ।
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