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खंडाहंड-खग्गाखग्गि पाइअसद्दमण्णवो
२६६ खंडाहंड वि [खण्डखण्ड] टुकड़ा-टुकड़ा स्त्री [°श्री] एक चोर-सेनापति की भार्या का खंधार देखो खंधावार (पउम ६६, २८ महाः किया हुपा (सुपा ३८५)। नाम (विपा १, ३)।
विसे २४४१)। खंडिअ ' [खण्डिक] छात्र, विद्यार्थी । खंदग) पुं[स्कन्दक] १-२ ऊपर देखो। ३ खंधाल वि[स्कन्धवत् ] स्कन्धवाला (सुपा (प्रौप)।
खंदय । एक जैन मुनि (उवः भगः अंतः सुपा । १२६)। खंडिअ वि [खण्डित छिन्न, विछिन्न (हे ४०८)। ४ एक परिव्राजक, जिसने भगवान् खंधावार पुं[स्कन्धावार छावनी, सैन्य का १, ५३; महा)।
महावीर के पास पीछे से जैन दीक्षा ली थी | पड़ाव, शिविर (गाया १, ८ स ६०३, खंडिअ ' [दे] १ मागध, भाट, विरुद-पाठक । (पुष्फ ८४)।
महा)। २ वि. अनिवार्य, निवारण करने को अशक्य
खंदरुद्द न [स्कन्दरुद्र] शास्त्र-विशेष (धर्मसं खंधि वि [स्कन्धिन् स्कन्धवाला (प्रौप)। (दे २, ७८)। ६३५)।
खंधिल्ल देखो खंधि (स ६६७) । खंदिल b [स्कन्दिल] एक प्रख्यात जैनाचार्य, खंडिआ स्त्री [खण्डिका] खण्ड, टुकड़ा |
खंधी स्त्री. देखो खंध (ौप)। जिसने मथुरा में जैनागमों को लिपि-बद्ध किया (अभि ६२)।
(गच्छ १)।
| खंधीधार ' [दे] बहुत गरम पानी की धारा खंडिआ खी[दे] नाप-विशेष, बीस मन की खंध पंस्किन्धी भित्ति. भीत. दीवार (प्राचा (द २,७२) । नाप (सं २४)। २, १, ७, १)।
खंप सक [सिच् ] सिञ्चना, छिड़कना । खंडी स्त्रो [दे] १ अपद्वार, छोटा गुप्त द्वार खंध पु [स्कन्ध] १ पुद्गल-प्रचय, पुद्गलों का खपइ (भाव) । (णाया १, १८–पत्र २३६)। २ किले का पिण्ड (कम्म ४, ६६)। २ समूह, निकर खंपणय न [दे] वन, कपड़ाः 'बहुसेयसिन्नछिद्र (गाया १, २-पत्र ७६)।
(विसे ६००)। ३ कन्धा, काँध (कुमा)। ४ मलमइलखपणयचिकणसरीरों (सुपा ११)। खंडु (अप) देखो खग्ग । गुजराती में 'खांडु'
पेड़ का धड़, जहाँ से शाखा निकलती है खंभ स्तिम्भ खंभा. थंभा (हे १, १८७; कहते हैं (प्राकृ १२१)।
(कुमा) । ५ छन्द विशेष (पिंग)। करणी स्त्री २, ४ भगः महा)। खंडुअ न [दे] बाहु-वलय, हाथ का आभूषण[करणी] साध्वियों को पहनने का उपकरण
खंभ सक [स्कम् ] क्षुब्ध होना, विचलित विशेष, बाजूबंद (मृच्छ १८१)। विशेष (मोघ ९७७)। मंत वि [मत् ]
होना। खंभेजा, खंभाएजा (ठा ५, १-पत्र खंडुय देखो खंडग (पव १४३)।
स्कन्धवाला (गाया १, १)। बीय पुं
")। बायपु २६२)। खंत पुं [दे] पिता, बाप (पिंड ४३२, सुख
['बीज स्कन्ध ही जिसका बीज होता है खंभतित्थ न स्तिम्भतीर्थ] एक जैन तीर्थ, २, ३,५८) ऐसा कदली वगैरह का गाछ (ठा ५, २)।
गुजरात का प्राचीन 'खंभणा' गाँव (कुप्र खंत देखो खा।
सालि पुं[शालिन् व्यन्तर देवों की एक ससा
जाति (राज)। खंत वि [क्षान्त क्षमा-शील, क्षमा-युक्त (उप
खंभल्लिअ वि [स्तम्भि] खंभे से बाँधा हुआ ३२० टो; कप्पू, भवि)।
खंधग्गि पुं [दे. स्कन्धाग्नि] स्थूल काष्ठों की | खधाग्ग पुद. स्कन्धाग्नि स्थूल काष्ठा की (से १,८५)।
| आग (दे २, ७०; पा)। खंतव्व वि [क्षन्तव्य] क्षमा-योग्य, माफ
खंभाइत्त न स्तम्भादित्य] गूर्जर देश का करने लायक (विक्र ३८; भवि)। खंधमंस पुंदे] हाथ, भुजा, बाहू (दे २, एक प्राचीन नगर, जो आजकल 'खंभात' नाम
से प्रसिद्ध है (ती २३)। खंति स्त्री [क्षान्ति] क्षमा, क्रोध का प्रभाव
खंधमसी स्त्री [दे] स्कन्ध-यष्टि, हाथ (षड)। खंभालण न [स्तम्भालगन] खम्भे से बांधना (कप्प; महा प्रासू ४८)।
खंधय देखो खंध (पिंग)। खंति देखो खा।
(पएह १, ३)। खंधयदि स्त्री [दे. स्कन्धयष्टि] हाथ, भुजा, खंतिया । स्त्री [दे] माता, जननी (पिंड
खक्खरग पुंन [दे] सूखी रोटी (धर्म २)। खंती ४३०० ४३१)। (दे २, ७१)।
खग्ग पुं [खड्ग] १ पशु विशेष, गेंडा (उप खंद पुं[स्कन्द] १ कात्तिकेय, महादेव का
खंधर पुंस्त्री [कन्धर] ग्रीवा, गला, गरदन (सण) । स्त्री. रा (महा)।
१४८; पएह १. १)। २ पुन. तलवार, असि एक पुत्र (हे २, ५, प्रातः पाया १, १-पत्र
(हे १, ३४; स ५३१)। घेणुआ स्त्री खंधलट्ठि स्त्री [दे. स्कन्धयष्टि] स्कन्ध-यष्टि, ३६)। २ राम का स्कन्द नाम का एक सुभट
["धेनु] छूरो, चाकू (दंस)। पुरा स्त्री (पउम ६७, ११)। कुमार पुं [कुमार] हाथ, भुजा ( षड्)।
[पुरा] विदेह वर्ष की स्वनाम-प्रसिद्ध नगरी एक जैन मुनि (उव)। 'गह 'ग्रह] खंधवार देखो खंधावार (महा)।
(ठा २, ३)। 'पुरी सी [पुरी] पूर्वोक्त ही स्कन्दकृत उपद्रव, स्कन्दावेश (जं २)। २ खंधाआर देखो खंधावार (प्राकृ ३०)।
अर्थ (इक)। ज्वर-विशेष (भाग ३, ६)। मह [मह] खंधार पृ. ब. [स्कन्धार] देश-विशेष (पउम खग्गाखग्गि न [खड़गाखड्गि] तलवार को स्कन्द का उत्सव (णाया १,१)। 'सिरी १८,६६)।
| लड़ाई (सिरि १०३२)।
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