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घेउर-घोसिअ पाइअसहमहण्णवो
३०४ धेच्छं (विसे ११२७)। कर्म. घेप्पइ (हे ४, घोणा स्त्री [घोणा] १ नाक, नासिका (पान)। घोलिर वि [घूर्णित] घूमनेवाला, चक्राकार २५६)। कवकृ. घेप्पंत, घेप्पमाग (गा २ घोड़े की नाक । ३ सूअर का मुख-प्रदेश फिरनेवाला (गा ३३८ स ५७८; गउड)।' ५८१; भगः स १५२)। संकृ. घेऊण, (से २, ६४ गउड)।
घोस सक [घोषय ] १ घोषणा करना, ऊँची घक्कूण, घेक्कूग, घेत्तुआण, घेत्तुआणं, घोर अक [घुर् ] निद्रा में 'घुर-घुर' आवाज आवाज से जाहिर करना । २ घोखना, ऊँची घेत्तूण, घेत्तूणं (नाट-मालती ७१; पि | करना। घोरंति (गा ८००)। वकृ. घोरंत आवाज से अध्ययन करना, जोर-जोर से बोल ५८४ हे ४, २१०; पि; उवः प्राप्र)। हेकृ. (स ४२४ उप १०३१ टी)।
कर पढ़ना या रटना। घोसइ (हे १, २६०; घेतं , घेत्तूण (हे ४, २१; पउम; ११८, घोर विदे] १ नाशित, विनाशित । २ पुं. प्रामा)। प्रयो. घोसावेइ (भग) ।। २४) । कृ. घेत्तव्व (हे ४, २१०० प्राप्र)। गीध, पक्षि-विशेष (दे २, ११२)।
घोस पु[घोष] १ ऊँची आवाज (स १०७; घेउर पुन [दे] घेवर, घृतपूर, मिटान-विशेष; घोर वि [घोर] भयंकर, भयानक, विकट (सून
कुमा; गा ५४) । २ आभीर-पल्ली, अहीरों का 'सा भणइ नियगेहेवि हु घयघेउरभोयणं समा। १, ५, १; सुपा ३४५सुर २, २४३ प्रासू
महल्ला, अहीर टोली (हे १,२६०)। ३ गोष्ठ, कुणई' (सुपा १३)। १३६) । २ निर्दय, निष्ठुर (पान)।
गौत्रों का बाड़ा (ठा २,४-पत्र ८६ पास)। ४ घेक्कूण देखो घे। घोरि पु[दे] शलभ-पशु की एक जाति (दे
स्तनितकुमार देवों को दक्षिण दिशा का इन्द्र घेत्तमण वि [ग्रहीतुमनस् ] ग्रहणकरने २, १११) ।
(ठा २, ३)। ५ उदात्त प्रादि स्वर-विशेष की इच्छावाला (पउम १११, १६)। घोल देखो घुम्भ । घोलइ (हे ४, ११७)।
(वव १०)। ६ अनुनाद (भग ६, १) । ७ न घेप्प । वकृ. घोलंत (कप्प; गा ३७१, कुमा)।
देव-विमान-विशेष (सम १२, १७)। सेण घेप्पंत देखो घे। घोल सक [घोलय ] १ घिसना, रगड़ना। २
पुं[सेन] सातवें वासुदेव का पूर्वजन्म का घेप्पमाण मिलाना (विसे २०४४ से ४, ५२)।
धर्म-गुरू, एक जैन मुनि (पउम २०, १७६) । घेवर दे] देखो घेउर (दे २, १०८)। घोल न [दे] कपड़े से छाना हुआ दही (पमा घोस न [घोष] लगातार ग्यारह दिनों का घोट्ट । सक [पा] पीना, पान करना।
उपवास (संबोध ५८) । घोट्टय । घोट्टइ (हे ४,१०)। वकृ. घोट्ट- घोलण न [घोलन घर्षण, रगड़ (विसे
। घोसण न [घोषण] १ ऊँची आवाज (निचू यंत (स २५७)। हेकृ. घोट्टि (कुमा)। २०४४) ।
१)। २ घोषणा, ढिंढोरा पिटवाकर जाहिर घोड देखो घुम्म । घोडइ (से ५, १०)। । घोलणा स्त्री [घोलना] पत्थर वगैरह का पानी ) घोड । पुंस्त्री [घोट, क] घोड़ा, अश्व,
करना (राय)। की रगड़ से गोलाकार होना (स ४७)। घोढग हय (दे २, १११; पंच ५२; घोलवड न द] एक प्रकार का खाद्य |
घोसणा स्त्री [घोषणा] ऊपर देखो (णाया घोडय ) उवा; उप २०८)। २ पुं. कायो- घोलवडय द्रव्य, दहीबड़ा (पभा ३३ श्रा १,१३; गा ५२४) ।। त्सर्ग का एक दोष (पव ५)। रक्खग पुं २०; सुपा ४६५) ।
घोसय न दे] दर्पण का घरा, दर्पण रखने घोलाविअ वि[घोलित] मिश्रित किया हुआ, का उपकरण-विशेष (अंत)। ग्गीव [ग्रीव अश्वग्रीव-नामक प्रतिवासुदेव, मिलाया हुआ (से ४, ५२) ।
घोसाडई स्त्री [घोषातकी] लता-विशेष नविशेष(माविमा मह न मिखघोलिअन [दे] १ शिलातल। २ हठ-कृत,
(पएण १७-पत्र ५३०) । जैनेतर शास्त्र-विशेष (अणु)। बलात्कार (दे २, ११२)।
घोसाडिया देखो घोसाडई (राय ३१)। घोडिय पु[दे] मित्र, वयस्य (बृह ५)।
| घोलिअ वि [घुर्णित] घुमाया हुआ (पास)। घोलिअ वि [घूर्णित] अत्यन्त लीन, 'अज
घोसालई । स्त्री [दे] शरद् ऋतु में होनेघोडी स्त्री [घोटी] १ घोड़ी। २ वृक्ष-विशेषः
घोसाली वाली लता-विशेष (दे २, १११; रक्खिनो जविएसु भईव घोलियो' (सुख २, 'सीयल्लिघोडिवच्चूलकयरखइराइसकिरणे' (स
परण १-पत्र ३३)। २५६)। घोलिअ वि [घोलित] आम को तरह घोला
घोसावग न [घोषण] घोषणा, डोंडी या डुग्गी घोण न [घोग] घोड़े की नाक (सण)। हुमा (सूम २, २, ६३)।
पिटवा कर जाहिर करना (उप २११ टी)। घोणस पु [घोनस] एक प्रकार का साँप घोलिअ वि [घोलित] रगड़ा हुआ, मर्दित घोसिअ वि [घोषित] जाहिर किया हुमा (पउम ३६, १७)। | (प्रौप)।
(उव)।
॥ इन सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि घमाराइसहसंकलणो
तेरहमो तरंगो समतो॥
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