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पाइअसहमहण्णवो
चाउम्मासी-चारण
चाउम्मासी स्त्री [चातुर्मासी] देखो चाउ- । अल्ल-उपगोत्र या वर्ग: 'पउरचारग्वेज्जलोएण' चाय देखो चाव (सुपा ५३० से १४, १५, म्मासिअ (धर्म २; आव)। (महा)।
पिंग) चाउरंग देखो चउरंग (पउम २, ७५)। चाउस्साला स्त्री [चतुश्शाला] चारों तरफ चाय पुं [त्याग १ छोड़ना, परित्याग (प्रासू चाउरंगि देखो चउरंगि (भगः णाया १,
के कमरामों से युक्त घर (पव १३३ टी)। । ८ पंचव १)। २ दान (सुर १, ६५)। १-पत्र ३२) चाएंत देखो चाय = चय।
चायग] [चातक] पक्षि-विशेष, चातकचाउरांगज वि [चतुरङ्गीय] १ चार अंगों
चाँउंडा श्री [चामुण्डा] स्वनाम-ख्यात देवी चायव पक्षी (सण, पाम, दे ६, ६०)। से सम्बन्ध रखनेवाला । २ न. 'उत्तराध्ययन'
(हे १, १७४) । काउअ पुं [कामुक] चार सक [चारय ] चराना, खिलाना। सूत्र का एक अध्ययन (उत्त ४)।. महादेव, शिव (कुमा)।
चारेइ (धर्मवि १४३)। चाउरंत देखो चरंत (सम १, ठा ३, १;
चाग देखो चाय = त्याग (पंचव १)। चार पुं[चार१ गति, गमन; 'पायचारेण हे १, ४४)। चागि देखो चाइ (उप पृ १०५)।
(महा, उप पृ १२३ रयण १५) । २ भ्रमण, चाउरंत [चातरन्ता चक्रवर्ती राजा. चाड विदे] मायावी, कपटी (दे ३, ८)। परिभ्रमण (स १९)। ३ चर-पुरुष, जासस सम्राट् (परह १, ४) २ न. लग्न-मण्डप,
चाडु पुन [चाटु] १ प्रियवाक्य । २ खुशामद (विपा १, ३, महा; भवि)। ४ कारागार, चौरी (स ७८)
(हे १, ६७; प्राप्र) । यार वि [ कार] कैदखाना ( भवि)। ५ संचार, संचरण चाउरंत न [चातुरन्त] भरत-क्षेत्र, भारतवर्ष खुशामदी (पएह १, २)।
(प्रौप)। ६ अनुष्ठान, पाचरण (माचानि (चेइय ३४०, ३४१)।
चाडुअ न [चाटुक] ऊपर देखो कुमा)। ४५; महा) । ७ ज्योतिष-क्षेत्र, प्राकाश (ठा चाउरंत न [चतुरन्त] चक्र, पहिया (चेइय | चाणक पुं[चाणक्य १ राजा चन्द्रगुप्त का २, २)। (३४४) ।
स्वनाम-प्रसिद्ध मन्त्री (मुद्रा १४४)। २ एक चार पुं[दे] १ वृक्ष-विशेष, पियाल वृक्ष, चाउरक वि [चातुरक्य] चार बार परिणत। मनुष्य-जाति (भवि)।
चिरौंजी का पेड़ (द ३, २१; अणु; पएण गोखीर न ["गोक्षीर] चार बार परिणत चाणक्की स्त्रीचाणक्यी] लिपि-विशेष (विसे १६)। २ बन्धन-स्थान (दे ३, २१)। ३ किया हुआ गो-दूध, जैसे कतिपय गौत्रों का | ४६४ टी)।
इच्छा, अभिलाष (दे ३, २१, भविः सुण दूध दूसरी गौओं को पिलाया जाय, फिर | चाणिक्क देखो चाणक्क (आक)।
५११)। ४ न. फल-विशेष, मेवा-विशेष उनका अन्य गौनों को, इस तरह चार बार चाणर पु [चाणूर] मल्ल-विशेष, जिसको (परण १६) । वकय पु[क्रय बेचनेपरिणत किया हुआ गो-दुग्ध (जीव ३)। । श्रीकृष्ण ने मारा था (पएह १, ४, पिंग)। चाउल वि [दे] चावल का, 'तहेव चाउल चामर पुन [चामर] चँवर, बाल-व्यजन (हे | (सुपा ५११)। पिटुं' (दस ५, २, २२)।
१, ६७)। २ छन्द-विशेष (पिंग)। गाहि | चारए देखो चरचर् । चाउल पुं[दे] चावल, तण्डुल, (दे ३, ८ वि['प्राहिन् ] पर बीजनेवाला नौकर। चारग दे [चारक] देखो चार (पौपः णाया प्राचा २, १, ३, ६, ८ उप पृ २३१, स्त्री. णी (भवि)। छायण न [च्छायन] १,१७ परह १,३, उप ३५७ टी)। "पाल मोघ ३४४; सुपा ६३६, रयण ६० कप्प)। स्वाति नक्षत्र का गोत्र (इक) उझय पुं| [पाल] जेलखाना का अध्यक्ष (विपा १, चाउल्लग न [दे] पुरुष का पुतला-कृत्रिम [ध्वज] चामर-युक्त पताका (प्रौप)। ६-पत्र ६५) । पाला पुं [पालक] पुरुष (निचू १)। धार वि [ धार चामर बोजनेवाला (पउम
कैदखाना का अध्यक्ष; जेलर (उप पू ३३७)। चाउवण्य देखो चाउवन्न (सम्मत्त १६२)। ८०, ३८)।
भंड न [ भाण्ड] कैदी को शिक्षा करने चाउवन्न । वि [चातुर्वर्ण्य] १ चार वर्ण- चामरच्छ न [चामरध्य] गोत्र-विशेष (सुज्ज का उपकरण (विपा १, ६)। हिव पुं चाउठवण्ण विाला, चार प्रकार वाला। २ १०,१६)।
[धिप] कैदखाना का अध्यक्ष, जेलर (उप पुं. साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का चामरा ली. उपर देखो (प्रौपः वसुः भग ६, पृ३३७)। समुदाय (ठा ५, २–पत्र ३२१); 'चाउव्व
चारण [दे] ग्रंन्थि-च्छेदक, पाकेटमार, चोरएणस्स समरणसंघस्स (पउम २०,१२०)। | चामीअर न [चामीकर] सुवणं, सोना
विशेष (दे ३, ६)। ३ न. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये (पाम; सुपा ७७ णाया १, ४)।
चारण पु[चारण] १ आकाश में गमन करने चार मनुष्य-जाति (भग १५)।
चामुंडराय पुं [चामुण्डराज गुजरात का को शक्ति रखनेवाले जैन मुनियों की एक चाउव्विज्ज देखो चाउवेज (ती ७)। । एक चौलुक्य वंश का राजा (कुप्र ४)। जाति (प्रौप; सुर ३, १५; अजि १६)। २ चाउवेज्जन [चातुर्वैद्य] १ चार प्रकार | चामुंडा देखो चाँउंडा (विसे पि)। मनुष्य-जाति-विशेष, स्तुति करनेवाली जाति की विद्या-न्याय, व्याकरण, साहित्य और चाय देखो चय = शक्। वकृ. चायंत, भाट (उप ७६८ टी प्रामा)। ३ एक जैन धर्म-शास्त्र । २ पुं. चौबे, ब्राह्मणों का एक | चाएंत (सूम १, ३, १; वव १)। मुनि-गण (ठा)।
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