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चारणिआ-चि पाइअसहमहण्णवो
३२३ चारणिआ श्री [चारणिका] गणित-विशेष चारुणय पुं [चारुनक] ऊपर देखो (प्रौप)। चावल्ल न [चापल्य] ऊपर देखो (स ५२९)। (प्रोष २१ टी)।
स्त्री. "णिया (प्रौपः णाया १,१)। चावाली स्त्री [चावाली] ग्राम-विशेष, इस चारभड पुं[चारभट] शूर पुरुष, लड़वैया, चारुर्वाच्छ पुं. ब. [चारुवसि] देश-विशेष नाम का एक गाँव (भावम)। सैनिक (पएह १, २, १, ३, बृह १)। (पउम ९८, ६४)।
चाविय वि [चर्वित] चबाया हुमा (धर्मवि चारभड ' [चारभट] लुटेरा (पिंड ५७६)। चारुसेणी स्त्री [चारुसेनी ] छन्द-विशेष |
४६; १४६)। चारय देखो चारग (सुपा २०७; ल १५)। (पिंग)।
चाविय वि [च्यावित] मरवाया हुमा (पएह चारवाय पुं[दे] ग्रीष्म ऋतु का पवन (दे चाल सक [चालय ] १ चलाना, हिलाना, २,१)।
कंपाना । २ विनाश करना। चालेइ (उवाचावेडी स्त्री [चापेटी विद्या-विशेष, जिससे
स ४७४। महा) । कम. चालिज्जइ (उव)। दूसरे को तमाचा मारने पर बीमार आदमी का चारहडी श्री [चारभटी] शौर्यवृत्ति, सैनिक- | वकृ. चालंत, चालेमाण (सुपा २२४; जीव रोग चला जाता है (वव ५)।
वृत्ति (सुपा ४४१, ४४२; हे ४, ३६६)। ३)। कवकृ. चालिजमाण (णाया १, १)। चारागार न [चारागार कैदखाना, जेलखाना हेकृ. चालित्तए (उवा)।
चावोण्णय न [चापोन्नत] विमान-विशेष, (सुर १६, १७)।
| चालण न [चालन] १ चलाना, हिलाना एक देव-विमान (सम ३६)। चारि स्त्री [चारि] चारा, पशुओं के खाने (रंभा)। २ विचार (विसे १००७)। चास पुं [चाप पक्षि-विशेष, स्वर्ण-चातक, की चीज, पास आदि (मोघ २३८)। चालण न [चालन] शंका, प्रश्न, पूर्वपक्ष
पपीहा, लहटोरवा (पएह १, १; पएण १७; चारि वि [चारिन्] १ प्रवृत्ति करनेवाला। (चेइय २७१)।
पाया १, १ मोघ ८४ भाः उर १, १४)। (विसे २४३ टीः उव; पाचा)। २ चलने चालणा स्त्री [चालना] शंका, पूर्वपक्ष, आक्षेप
चास [दे] चास, हल-विदारित भूमि-रेखा, वाला, गमन-शील (प्रौप; कप्पू)। (अणु; बृह १)।
खेती (दे ३, १)। चारिअ वि [चारित] १ जिसको खिलाया चार्लाणया स्त्री [चालनिका] नीचे देखो (उप
चाह सक [वाञ्छ.] १ चाहना, वाछना । गया हो वह (से २, २७)। २ विज्ञापित, । १३४ टी)।
२ अपेक्षा करना । ३ याचना । चाहइ, चाहसि जताया हुआ (पएण १७–पत्र ४६७)। चालणी स्त्री [चालनी] पाखा, छानने का
(भविः पिंग)। चारिअ [चारिक] १ चर पुरुष, जासूस पात्र चलनी या छलनी (प्रावम)।
चाहिणी स्त्री [चाहिनी] हेमाचार्य की माता (परह १, २, पउम २६, ६५); 'चोरुत्ति चालवास पुं [दे] सिर का भूषण-विशेष
का नाम (कुप्र २०)। चोरिवत्ति य होइ जो परदारगामित्ति' (विसे
चाहिय वि [वाञ्छित] १ वाञ्छित, अभि२३७३) । २ पंचायत का मुखिया पुरुष, चालिय वि [चालित चलाया हुमा, हिलाया
लषित । २ अपेक्षित । ३ याचित (भवि)। समुदाय का अगुमा (स ४०६)। हुमा; 'पुष्फवईए चालियाए सियसंकेयपडागाए'
चाहुआग पुं [चाहुयान] १ एक प्रसिद्ध चारित्त देखो चरित्त-चारित्र (मोघ ६ भाः (महा)।
क्षत्रिय-वंश, चौहान वंश। २ पुंस्त्री. चौहान उप ६७७ टी)। |चालिर वि [चालयितु] १ चलानेवाला ।
___वंश में उत्पन्न (सुपा ५५९)। चारित्ति देखो चरित्ति (पुप्फ १५.)। २ चलनेवालाः 'खरपवणचाडुचालिरददग्गिस
चि देखो चिण। कर्म.चिव्वइ,चिम्मइ, चिज्जति चारियव्व देखो चर = चर् । रिसेण पेम्मेण' (वज्जा ७०)।
(हे ४, २४३; भग)। चारिया स्त्री [चर्या] १ आचरण, इधर-उधर | चाली स्त्री [चत्वारिंशत् ] चालीस, ४०
चिअ अ [एव] निश्चय को बतलानेवाला गमन, जीविका । २ चेष्टा (उत्त १६, ८१; | (उवा)।
अव्ययः 'अणुबद्धं तं चिन कामिणीणं' (हे २, ८२ ८४८५)। चालीस स्त्रीन [चत्वारिंशत् ] चालीस, ४०
१८४; कुमाः गा १६, ४६ दं १)। चारी स्त्री [चारी] देखो चारि = चारि (स (महाः पिंग) स्त्री. °सा (ति ५)।
चिअप [इव] १-२ उपमा और उत्प्रेक्षा ४८७, प्रोध २३८ टी)। चालुक्क पुंस्त्री [चौलुक्य] १ चालुक्य वंश
का सूचक अव्यय (प्राप्र)। चारु वि [चारु] १ सुन्दर, शोभन, प्रवर में उत्पन्न । २ पुं. गुजरात का प्रसिद्ध राजा (उवाः प्रौप)। २ पुं. तीसरे जिनदेव का कुमारपाल (कुमा)।
चिअ वि[चित] १ इकट्ठा किया हुमा प्रथम शिष्य (सम १५२)। ३ न. प्रहरण- | चाव सक [चर्व ] चबाना । कृ. चावयव्व
(भग) । २ व्याप्त (सुपा २४१) । ३ पुष्ट, विशेष, शस्त्र-विशेष (जीव १; राय)। (उत्त १६, ३८)
मांसल (उप ८७५ टी)। चारुइणय ( [चारकिनक] १ देश-विशेष । चाव पुं[चाप धनुष, कामुक (स्वप्न ५५) चिअन [चित] ईंट मादि का ढेर (अरण २ वि. उस देश का निवासी (पीप; अंत)। चावल न [चापल चपलता, चंचलता (अभि १५४)। स्त्री. "णिया (प्रौप)।
२४१)।
चिअ देखो चित्त = चित्त प्राकृ २६)।
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