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चडुला श्री [ दे ] रत्न - तिलक, सोने की मेखला में लटकता हुआ रत्न-निर्मित तिलक (दे ३, ८) । चडुलातिलय न [ दे ] ऊपर देखो (दे ३, ८) । चडुलिया स्त्री [ दे ] अन्त भाग में जला हुआ पास का पूला पास की घाँटी (रादि)। चड सक [मृद्] मर्दन करना, मसलना । (हे ४, १२६) प्रयो. चाव (सुपा ३३१) । चड्ड सक [ पिष्] पीसना । चहुइ (हे ४, १८५) ।
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चड्ड सक [ भुज् ] भोजन करना, खाना । चहुइ (हे ४, ११० ) 1
चडून [दे] तेल-या, जिसमें दीपक किया जाता है गुजराती में 'बाई' (सुपा ६२० बृह १) ।
चण [भोजन] १ भोजन खाना। २ खाने की वस्तु, खाद्य सामग्री (कुमा) । चङ्गावी श्री [चट्टावली ] इस नाम की एक नगरी, जहाँ श्रीघनेश्वर मुनि ने विक्रम की ग्यारहवीं सदी में सुरसुंदरी-चरिष' नामक प्राकृत काव्य रचा था (सुर १६, २४९ ) । ड्ड वि [ मृदित] मसला हुआ, जिसका मर्दन किया गया हो वह (कुमा) । चड्डि वि [पिष्ट] पीसा हुमा (कुमा) । चढ देखो चड = श्रा + रुह । संकृ. चढिऊण ( सम्मत्त १५९ ) । ~
चढण देखो चडण (संबोध २८ ) ।
चण पुं [ चणक ] चना, अन्न- विशेष चणअ ) ( जं ३: कुमा; गा ५५७; दे १,२१) । चणइया स्त्री [चणकिका] मसूर, अन्न- विशेष (ठा ५, ३)
चणग देखी चणअ (बुपा ६३१ सुर है, १४८) गाम पुं [ग्राम ] ग्राम- विशेष, गौड़ देश का एक ग्राम (राज) | पुर न [" पुर] नगर- विशेष, राजगृह नगर का असली नाम (राज) । चणयग्गाम देखो चणग-गाम (धर्मवि ३८ ) । चोट्टिया स्त्री [दे] गु ंजा । गु० 'चगोट्टी', देखो कोणेट्ठिया ( अनु० वृ० हारि० पत्र ७६) ।
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पाइअसद्दमहण्नयो
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तनुचा सूत बनाने का यन्त्र, तकली (दे ३, १ धर्मं २) चत्तवि [ त्यक्त] छोड़ा हुआ, परित्यक्त (परह २, १ कुमा १, १६ ) । २ सूत की टी ( नव्या० ८०, १) । चत्तर देखो चश्चर (पि २६६; नाट) । चत्ता देखो चत्तालीसा (उवा ) 1चत्ता स्त्री [चर्चा] १ शरीर पर सुगन्धी वस्तु काविलेपन २ विचार, वर्षा (प्राह ३०) / चत्ताल वि [ चत्वारिंश ] चालीसवाँ (पउम ४०, १७) ।
चत्तालीस न [ चत्वारिंशत् ] १ पालीस ४० 'बत्तालीस विमानस् (सम ६६ कप्प ) । २ वि. चालीस वर्ष की 'चत्तालीसत्स विना (तंदु) IV चत्तालीसा श्री [चत्वारिंशत् ] जालीस ४०; 'तीसा चत्तालीसा (पराग २ ) । चत्थरि पुंस्त्री [दे. चस्तरि] हास, हास्य (दे ३, २) चपेटा श्री [दे तमाचा (षड् )
चपेटा] कराघात, वप्पड़,
चप्पक [ आ + क्रम् ] श्राक्रमण करना, दबाना । संकृ. चप्पिवि (भवि) 1 चप्पक [ चर्च_] १ श्रध्ययन करना । २ कहना । ३ भत्र्सना करना । ४ चन्दन आदि से विलेपन करना । चप्पइ ( प्राकृ. ७५ संक्षि ३५) |
चप्पडग न [दे] काष्ठ यन्त्र - विशेष ( परह १, ३ - पत्र ५३ ) |
चप्परण न [दे] तिरस्कार, निरास ( 8 ) चप्पलअवि [दे] १ असत्य, झूठा (कुमा८, ७१) २ बहुनियावाद बोल वाला (षड् ) । V चप्पिय वि [आक्रान्त ] ग्रामान्त दबाया (भवि
चप्पुडिया ) स्त्री [ चप्पुटिका ] चपटी, चुटकी चप्पुडी के साथ ली की ताली ( णाया १, ३ - पत्र १५; दे ८, ४३ ) 1 चफल न [दे] शेखर-विशेष, एक तरह चप्फलय का शिरोभूषरण । २ वि. असत्य, } भूठा, मिध्याभाषी (दे २, २०१ हे २, ३ कुमा ८,२५) ।
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चडुला - चमर चमक पुं [ चमत्कार ] विस्मय, आश्चर्यः 'संजयचक्क पम्मी उप ७६) *रवि ["कर] विस्मयजनक (सण) 1
चमक सक [ चमत् + कृ ] विस्मित चमक्कर करना, आश्चर्यान्वित करना । चमस्के, चमति (विये ४२४८) चमकरंत विक्र ९६ )
चमकार
[ चमत्कार ] धारचर्य, विस्मय (सुर १०, ८ वजा २४) । चमकिन वि[चमत्कृत] विस्मित पाश्च र्यान्वित (सुपा १२२)
चमड ) सक [भुज् ] भोजन करना, खाना । }
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चढ सक [दे] १ मर्दन करना, मसलना । २ प्रहार करना । ३ कदर्थन करना, पीड़ना । ४ निन्दा करना । ५ आक्रमण करना । ६ उद्विग्न करना, खिन्न करना। कवक चमजिन (घोष १२०१) चढण न [भोजन ] भोजन, खाना (कुमा) । चमडण न [दे] १ मन मोष १८७ भा स २२ ) । २ आक्रमण ( स २०६३ पीड़न ४ प्रहार १९३५.नन्दघोष ७६) । ६ वि. जिसकी कदर्थना की जाय वह (प्रोघ २३७ ) । V
[ चढणा को [दे] ऊपर देखो (१) । चमढिअवि [दे] मदत, विनाशित (वव २)
चमर [चमर ] पशु - विशेष, जिसके बालों का चामर या चँवर बनता है; 'वराहरुरुचमरसेलिएर म १४, १०५ प ११ । २ पुं. पांचवें जिनदेव का प्रथम शिष्य ( सम १५२) । ३ दक्षिण दिशा के असुरकुमारों का इन्द्र (ठा २, ३ ) । चंच पुं [च] चमरेन्द्र का भावास पर्वत (भग ११६) चंच स्त्री ['चवा] चमरेन्द्र की राजधानी, स्वर्गपुरी - विशेष (गाया २ ) । पुर न ['पुर] विद्याधरों का नगर - विशेष (इक) । - चमर पुन [चामर] पंवर पामर, बालजन (हे १,६०) धारी, दारी श्री
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