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३१२ पाइअसद्दमण्णवो
चउवीस-चंडंसु चउवीस वि [चतुर्विंश] चौबीसवाँ (पव चंकम्म अक [चक्रम्य देखो चंकम । वकृ. चंचल्लिअ वि [चश्चलित] चञ्चल किया
चंकम्मत, चंकम्ममाण (गा ४६३; ६२३ हुआ, 'मणयारिणलचंचे (? च) ल्लिअकेसराई चउवीसिगा स्त्री [चतुर्विशिका] समय-मान- उप पृ २३:; परह २, ५, कप्प)
(विक २६)। विशेष, चौबीस तीर्थकर जितने समय में होते | चंकम्मण देखो चंकमण (णाया १,१- | चंचा स्त्री [चश्चा] १ नरकट की चटाई। हैं उतना काल-एक उत्सपिणी या एक अव- | पत्र ३८)।
२ चमरेन्द्र की राजधानी, स्वर्ग-नगरी-विशेष । सपिणी-काल (महानि ४)
कम्मिअ देखो चंक्रमिअ (से ११, ६६) ३ घास का पूतला (दीव)। चउवेद वि चतुर्वेद] चारों वेदों का चंकार पुंचकार] च वर्ण, 'च' अक्षर | चंचाल (अप) देखो चंचल (सण)। चउवेय ज्ञाता, चतुर्वेदी, चौबे (धर्मसं (ठा १०)।
चंचु स्त्री [चञ्चु] चोंच, पक्षी का ठोर (दे चउव्वेद १२३८, मोह १०) चंग वि [दे. चङ्ग] सुन्दर, मनोहर, रम्य
| ३, २३)। चउसट्रिआ स्त्री [चतुःषष्टिका] रसवाली (दे ३, १; उप पृ १२६, सुपा १०६; करु
चंचुच्चिय न [दे. चञ्चुरित, चचूञ्चित] चीज तौलने का एक नाप, चार पल का एक
३५; धम्म ६ टो, कप्पूः प्रातः सणः भवि)। माप (अणु १५१)।
कुटिल गमन, टेड़ी चाल (प्रौप)। चंग क्रिवि [दे] अच्छा, ठीक (२५)। चउसर वि[दे चौसर, चार सरा (लड़ी)वाला
चंगदेव पुं [चङ्गदेव] हेमाचार्य का गृहस्था- चंचुमालइय वि[दे] रोमाञ्चित, पुलकित वस्था का नाम (कुप्र २०)।
(कप्पा औप)। (हार आदि) (सुपा ५१०, ५१२)।
चंगवेर पुन [दे] काठ का तख्ता (नाचा २, | चंचुय पुं[चकचुक] १ अनार्य देश-विशेष । चउहत्य पु[चतुर्हस्त] श्रीकृष्ण (सुख ६, १)। ४, २, ३) ।
२ उस देश का निवासी मनुष्य (पएह १,१)। चउहार पु [चतुराहार] चार प्रकार का चंगवेर पुदे] काष्ठ-पात्री, काठ का बना चंचुर वि [चञ्चुर चपल, चंचल (कप्पू)। पाहार, प्रशन, पान, खादिम और स्वादिमः हा छोटा पात्र-विशेष; 'पीहए चंगवेरे ये'
चंछ सक [तक्ष ] छिलना । चंछइ (षड्)। 'कंतासिज्जंपि न संछवेमि चउहारपरिहारो' (दस ७)।
चंड सक [पि 1 पीसना । चंडइ (षड्)। (सुपा ५७३)।
चंगिम पुत्री [दे. चङ्गिमन्] सुन्दरता, चओर पुन [दे] पात्र-विशेष, “भुत्तावसारणे
चंड देखो चंद (इक)। सौन्दर्य, श्रेष्ठता, चारुपन (नाट)। स्त्री. मा य प्रायमणवेलाए प्रवणीएसु चोरेसु' (विबे १०० उप पृ १८१, सुपा ५, १२३;
चंड वि [चण्ड] १ प्रबल, उग्र, प्रखर, तीव्र (स २५२) २६३)।
(कप्प)। २ भयानक, डरावना (उत्त २६; चओर पुत्री [चकोर] पक्षि-विशेष चंगेरी स्त्री [दे] टोकरी, चंगेली, डलिया,
औप)। ३ अति क्रोधी, क्रोध-स्वभावी (उत्त चओरग (पएह १, १; सुपा ३७) ।
१,१० पिंगणाया १,१८)। ४ तेजस्वी, कठारी, तृण आदि का बना पात्र-विशेष चओवचइय वि [चयोपचयिक] वृद्धि- (विसे ७१०; परह १, १)।
तेजिल (उप पृ ३२१)। ५ पुं. राक्षस वंश के हानिवाला (उप २५८ टी प्राचा)।
एक राजा का नाम (पउम ५, २६४)। चंच देखो चंछ । चंचइ (प्राकृ ६५)।
६ क्रोध, कोप ( उत्त १)। किरण मुं चंकम अक [चक्रम् ] बार बार चलना।
चंच पु[चश्च] १ पङ्कप्रभा नरक-पृथिवी ! [किरण] सूर्य, रवि (उप पू ३२१) । २ इधर उधर घूमना। ३ बहुत भटकना ।
का एक नरकावास (इक)। २ न. देव- कोसिय पुं[कौशिक] एक सर्प, जिसने ४ टेढ़ा चलना। ५ चलना-फिरना। वकृ. विमान-विशेष (इक)।
भगवान् महावीर को सताया था (कप्प)। चंकमंत (उप १३० टी ९८६ टी)। हेकृ.
चंचपुड पुन [दे] प्राधात, अभिघातः 'खुर- दीव पुं[द्वीप] द्वीप-विशेष (इक )। चंक मिउं (स ३५६)। कृ. चंकमियव्व
| वलणचंचपुडेहि धरणिप्रलं अभिहणमाणं' पज्जोअ पुं [प्रद्योत] उज्जयिनी के एक (पि ५५६) ।
प्राचीन राजा का नाम (प्रावम)। भाणु चंकमण न [चक्रमण] १ इधर उधर चंचप्पर न [दे] असत्य, भूठ, अनृत; 'चंच- पुं[भानु] सूर्य, सूरज (कुम्मा १३) । रुद्द भ्रमण । २ बहुत चलना। ३ बार बार । परं न भरिणमो (दे ३, ४)।
पु[रुद्र] प्रकृति-क्रोधी एक जैन प्राचार्य चलना। ४ टेढ़ा चलना । ५ चलना-फिरना। चंचरीअ ' [चश्चरीक भ्रमर, भौंरा (दे | (भाव १७)। वडिंसय पुं गवतंसक] (सम १०६ णाया १, १)।
नृप-विशेष (महा) । वाल पु[पाल] नृपचंकमिय वि [चंक्रमित] १ जिसने चंक्रमण | चंचल वि [चञ्चल] १ चपल, चन्चल (कप्पः । विशेष (कप्पू)। सेण पु[सेन] एक या भ्रमण किया हो वह । २-६ ऊपर देखो। चारु १)। २ पुं. रावण के एक सुभट का राजा का नाम (कप्पू)। आलिय न [लीक] (उप ७२८ टी निचू १)। | नाम (पउम ५२, ३६)।
क्रोध-वश कहा हुमा भूठ (उत्त १)। - चंकमिर वि [चंक्रमित] चंक्रमण करनेवाला चंचला स्त्री [चश्चला] १ चन्चल स्त्री। २ चंडसु पु [चण्डांशु] सूर्य, सूरज, रवि छन्द-विशेष (पिंग)।
(कप्पू)।
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