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श्रीयमाणमुड
४) । २ न. बारहवाँ गुण - स्थानक (सम २६ ) । "राग व ["राग] [१] वीतराग राग-रहित। २. देव
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खीयमाण वि [क्षीयमाण ] जिसका क्षय होता जाता हो वह (१८६ टी खीर न [क्षीर] बेला, दो दिन का उपवास (संबोध ५८)। "डिंडिर' ["डिण्डीर]] देव - विशेष ( कुप्र ७६)। 'डिंडिरा स्त्री [डिण्डीरा ] देवी विशेष ( कुप्र ७६) । वर
[व] १ समुद्र-विशेष । २ द्वीप - विशेष ( युग्म १६) |
खीर न [क्षीर ] १ दुग्ध, दूध (हे २, १७ प्रासू १३ : १६८ ) । २ पानी, जल (हे २, १७) पु. सीरवर समुद्र का अधिायक देव ( जीव ३ ) । ४ समुद्र विशेष, क्षीर-समुद्र
(उम ६६, १०) कथंच
['कदम्ब]
खीर व [क्षीरकित ] संजात-क्षीर, जिसमें दूध उत्पन्न हुआ हो वह; 'तए गं साली पत्तिया वत्तिश्रा गब्भिया पसूया श्रागयगन्धा
पाइअसमण्णवो
खीरा (? र) इया बद्धफला' (गाया १, ७) । खीरि वि [क्षीरिन्] १ दूधवाला । २ पुं जिसमें दूध निकलता है ऐसे वृक्ष की जाति ( उप १०३१ टी ) । रिमाण [ क्षीर्यवाण ] जिसका वि दोहन किया जाता हो वह ( श्राचा २, १, ४) ।
खीरिणी श्री [क्षीरिणी] दूधवाली (याचा
?
२, १४) २ वृक्ष-विशेष (पण १ - पत्र ३१) ।
खीरी श्री [क्षैरेयी] खीर, पक्कान्त- विशेष (सुपा ६३६ पाच)।
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इस नाम का एक ब्राह्मण उपाध्याय (पउम २१) ओली [काको] वनस्पति-विशेष, श्रीरविदारीः (पए १) "जल [ज] क्षीरसमुद्र, समुद्र- विशेष (दीप)। जलनिहि ं ["जखनिधि] नही पुं पूर्वी १९५) "दुम, "म [म] पेड़, जिसमें दूध निकलता दूधवाला है ऐसे वृक्ष की जाति (घोष २४९ निखील १) । धाई स्त्री [धात्री ] दूध पिलानेवाली दाई (या १, १) । पूर [पूर] उबलता हुआ दूध ( पण १७ ) । भ [भ] क्षीरवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव ( जीव ३)। मेह [मेघ] दूध समान स्वादवाले पानी की वर्षा ( तित्थ ) 'वई स्त्री [ती] प्रभूत दूध देनेवाली (बृह ३) । वर [र] द्वीप - विशेष (जीव २) वारिन ["वारि] क्षीरसमुद्र का । जल ( प ६६, १८) हर ["गृद, पु धर] क्षीर सागर ( वज्जा २४) । सव
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[व] लब्धि-विशेष, जिसके प्रभाव से वचन दूध की तरह मधुर मालूम हो । २] ऐसी वाला जीव (२१; श्रीप)।
खीरोअ पुं [ क्षीरोद] समुद्र-विशेष, क्षीरसागर (हे २, १८२० गा ११७; गउड उप ५३० टी; स ३४४) ।
खीरोआ श्री [द]
नदी (इकठा २,३) । खीरोद देखो खरो (का ७) । खोरोदक)[सारोदक] शीर-सागर } ८ः खीरोदय (खाया १, श्रीप खीरोदा देखो खीरोआ (डा १, ४ पत्र १६१) ।
खील
}
पु' [कील, क] खीला, खूँट, खूंटी (स १०६ धूम १, ११. हे खीलव १, १८१६ कुमा) । मग्ग पु [मार्गे ] मार्ग-विशेष, जहाँ धूली ज्यादा रहने से खूंटे के निशान बनाये गये हों (सूम १, ११) । खोलावण न [क्रीडन] खेल कराना, क्रीड़ा कराना । "धाई स्त्री [°धात्री] खेल-कूद करानेवाली दाई (छाया २ १२ २०)। खोलिया देखो कीलिआ (जीवस ४८ ) । खीलिया श्री [कीलिका] घोटी टी (धाम) खीव' [ची] मद-प्राप्त, मदोन्मत्त मस्त (दे, ८, ६३) ।
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खु अ [ खलु ] इन अर्थों का सूचक अव्यय - १ निश्चय, अवधारण । २ वितर्क, विचार । ३ संशय, संदेह । ४ संभायना ५ विस्मय, साथ हे २ ११० षड् गा ६ १४२ ४०१ स्वप्न ; कुमा) । खु देखो खुहा ( परह २, ४ सुपा १६८० गाया १, १३) ।
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खुंट पुं [दे] खूँट, खूँटी । मोडय वि [मोटक] लूटे को मोड़नेवाला आते छूटकर भाग जानेवाला । २ पुं. इस नाम का एक हाथी (नाट - पृच्छ ८४) । खंड [दे] लित, स्वना प्राप्त (दे वि २, ७१ ) ।
नाम की एक खुद (शी) सक [] १ जाना २ पीसना,
कूटना । खुददि (प्राकृ ९३ ) ।
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खुइ स्त्री [क्षुति ] १ छोंक । २ छींक का निशान (गाया १, १६० भग ३, १) । खुइय [दे] १ । २ विध्यात शान्त, 'खुइया चिया' (कुप्र १४० ) । संणय [] नाक का
छिद्र
(२,७६२
पाच।
बुंगाह [] अक्ष को एक उत्तम जाति खुणी स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे २.७६) । पुं (सम्मत २१६) ।
खंदक [५] सूख लगा द
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(प्राकृ ६६ ) ।
सुंपा श्री [दे] वृष्टि को रोकने के लिए बनाया
जाता एक तृणमय उपकरण (दे २, ७५) । खुंभण वि [क्षोभण] क्षोभ उपजानेवाला ( परह १, १ - पत्र २३ ) |
खुज्ज अक [ परि + अस् ] १ फेंकना । २ निरास करना । खुबइ ( प्राकृ ७२ ) ।
खुज्ज ) वि [कुब्ज ] १ कूबड़ा । २ वामन खुज्जय ) (हे १, १८१३ गा ५३४) । ३ वक्र, टेड़ा (घोष) ४ एक पार्श्व से हीन (पव ११० ) । ५ न. संस्थान - विशेष, शरीर का वामन श्राकार (ठा ६; सम १४६; औप ) । स्त्री. खुज्जा (गाया १, १ ) ।
सुजिय वि [कुब्जिन] कूबड़ा (घाचा)। खुट्ट सक [तु] १ सोड़ना, लरित करना, टुकड़ा करना । २ श्रक. खूटना, क्षीण होना । ३ टूटना, त्रुटित होना। खुट्टइ (नाटसाहित्य २२९ ४११६) ति ( उव) ।
"
खुट्ट वि [दे] त्रुटित, परित चित्र ( २, ७४ भवि ) । खुड देखो खुट्टा ( ४. ११६) । खुडेंति (से८, ४८ ) । वकृ. 'पवंगभिन्नमत्थया
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