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सोअ
हिमाचल पर्वत पर का एक महान हद, जहाँ से गंगा निकलती है (ठा २३)। पुं [स्] गंगा नदी का प्रवाह (पि ८५) ।
गंगली स्त्री [] मौन, चुप्पी (सुपा २७८ ४८७)।
गंगा स्त्री [गङ्गा ] १ स्वनाम प्रसिद्ध नदी (कस सम २७ कप ) । २ स्त्री-विशेष (कुमा) । ३ गोशालक के मत से काल-परिमाण विशेष ( भग १५ ) । ४ गंगा नदी की अधिष्ठायिका देवी (आम) । ५ भीष्मपितामह की माता का नाम (गाया १,१६) । कुंड न [ कुण्ड ] हिमाचल पर्वत पर स्थित हृद-विशेष, जहाँ से गंगा निकलती है (ठा ८) । कूड न [" कूट] हिमाचल पर्वत का एक शिखर (ठा २, ३) दीपु ['द्वीप ] द्वीप-विशेष, जहाँ गंगा देवी का भवन है (ठा २, ३ ) । 'देवी स्त्री ["देवी] गंगा की अधिष्ठायिका देवी, देवी विशेष (इक) । वत्त पु [वर्त्त] प्राय-विशेष (क) सय न["राव] गोशालक के मत में एक प्रकार का कालपरिमाण (भग १५) । सागर पुं ['सागर ] प्रसिद्ध तीर्थ-विशेष, जहां गंगा समुद्र में मिलती है (उत्त १८) | गंगेअ पु [गाव] १ गंगा का पुत्र भीष्मपितामह (खाया १, १६ वेणी १०४) । २ मत का प्रवर्तक प्राचार्य (धात्र १) । १ एक जैन मुनि, जो भगवान् पाश्र्वंनाथ के वंश के थे (भग ६, ३२) ।
गंज सक [ग] १ तिरस्कार करना । २ उल्लंघन करना । ३ मर्दन करना। ४ पराभव करना। गंजइ ( जय ५ ) । कृ. गंजगीय (firft 1)
गंज पुं [हे] गाल (दे २,८१) ।
गंज पुं [गञ्ज ] भोज्य-विशेष, एक प्रकार की खाद्य वस्तु ( परह २, ५ - पत्र १४८ ) । साला स्त्री [शाला ] तृरण, लकड़ी वगैरह इन्धन रखने का स्थान ( निचु १५ ) ।
पाइअसहमण्णवो
गंजण न [गअन] १ अपमान, तिरस्कार (गुपा ४८०) 'वेरिवि रगुप्पन्ना,
बज्र्झति गया न चेव केसरिणो । संभाविज्जइ मरणं,
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नगंज धीरपुरिया (४२) २ कलंक, दागः 'गंजारहियो जन्मो' ( वजा १८) |
गंजण वि [गअन] मर्दनकर्ता (सिरि ५४६ ) । गंजा स्त्री [आ] सुरा-गृह, मद्य की दूकान (दे २, ८५ टी ) । गंजिअ पुं [गाञ्जिक] कल्य-पाल, दारू बेचने वाला, कलाल (दे २, ८५ टी ) । गंजिअ वि [गञ्जिन] १ पराजित, अभिभूतः 'तर गरिमगंजिलो इव' (उप ६८६ टी) । २ हत, मारा हुआ, विनाशित (पिंग)। ३ पीड़ित (हे ४, ४०९) ।
गंजिल्ल वि [दे] १ वियोग प्राप्त, वियुक्त । २ भ्रान्त-चित्त, पागल (दे २,०३) । मंजुहिय व [दे] रोमाञ्चित, पुलकित (जय १२) ।
नाचना २ रचना, बनाना। गंठइ (हे ४, १२० षड् ) । गंठ देखो गंथ (राय; सून २, ५ धर्म २ ) । 9 [ दे] वरुड, इस नाम की एक गंठि स्त्री [गृष्टि ] एकबार व्यायो हुई गंय जाति (२४) । मंडिय[] ते
गंद
गौ (प्राकृ
८६५।१ - ३१ सर्ग) |
गंजोल वि [दे] समाकुल, व्याकुल ( षड् ) । गंजोखिम [वि] [दे] १ रोमाञ्चित, जिसके
रोम खड़े हुए हों वह (दे २, १००; भवि ) । २ न हँसाने के लिए किया जाता प्रंग-स्पर्श, गुदगुदी, गुदगुदाहट (दे २, १०० ) । गंठ तक []
२
३२) । बाँस मंठि पुत्री [] १ गड जोड़ श्रादि की गिरह पर्व (हे १, ३५० ४, १२ : ) । ३ गठरी, गांठ (गाया १, १ प ) । ४ रोग-विशेष ( लहुन १५ ) । ५ राग-द्वेष का निविड़ परिणाम विशेष (उप २५३ ) : 'गंठित्ति सुदुब्भेश्रो कक्खघरूढगढगंठि व्व । जीवस्स कम्मजरिओ घरणरागद्दोसपरिणामा (जिसे १९९५) ।
"छेअ [] गाँठ तोड़नेवाला, चोरविशेष पाकेटमार ( २८६) भे [["भेद] का भेदन (१) भेवग
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गंगली - गंड
वि [द] १ ग्रन्थि को भेदनेवाला । २ पुं. चोर - विशेष (गाया १, १८ पह १, ३) । वण्ण [पर्ण] सुगन्धि गाछ विशेष (कप्पू ) । सहिय वि [सहित] १ गाँठयुक्त । २ न. प्रत्याख्यान- विशेष, व्रत- विशेष (धर्म २ पनि) ।
गंठिम न [प्रन्थिम] १ ग्रन्थन ते बनी हुई माला वगैरह ( परह २, ५ भग ६, ३३) । २-विशेष १२) | [वि][] पिरोया हुआ (कुमा) ।
१
विवि [अन्धिक] ( २ (५) ।
गठित व [न्धिमन्] सन्धि-युक्त - वाला (राज) ।
गंड
[] १ वन, जंगल २ दाउपाशिक, कोतवाल । ३ छोटा मृग (दे २, १९ ) । ४ नापित, नाई ( दे २, ६६: आाचा २, १, २) ५ न गुच्छ समूह 'कुसुमदामद वियं' (महा) ।
गंड न [गण्ड] १ गाल, कपोल (भगः सुपा ८)। २ रोग विशेष, गण्डमाला; 'ता मा करेह बीयं गंडोवरिफोडियातुल्लं (उप ७६८ टी: श्राचा)। ३ हाथी का कुम्भस्थल ( पव २९) । ४ कुच, स्तन ( उत्त ८ ) । ५ ऊख का जत्था, इक्षु समूह ( उप पृ ३५९ ) । ६ छन्द-विशेष (पिंग) ७ फोड़ा, स्फोटक (उत्त १० ) । ८ गाँठ, ग्रन्थि (अवि १७ अभि १०४) भेज भेजअ ["भेदक ] चोर - विशेष पाकेटमार (अवि १७ अभि १८४) । "माणिया स्त्री ["माणिक] धान्य का एक प्रकार की नाप (राय) । मात्य स्त्री [माला] रोग-विशेष, जिसमें ग्रांत्रा फूल जाती है (सर) यल न ['तल] कपोलतल (मुर ४, १२७) ले श्री ["लेख] कपोल - पाली, गाल पर लगाई हुई कस्तूरी वगैरह की छटा (निर १,१० गउड) । वच्छा
[का] पीनस्तनों से युक्त छातीवाली स्त्री ( उत्त ८ ) । वाणिया स्त्री [पाणि] बाँस का पात्र विशेष जो डाला से छोटा होता है (भग ७, ८) वास [["पाइयें] गाल का पार्श्वभाग (गड
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