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गुण-गुम्म पाइअसहमहण्णवो
२६७ विशेष (पंच)। 'सेण [सेन] इस नाम १५)। ३ स्व-पर की रक्षा करनेवाला, गुप्ति- गुप्त न [दे] १ शयनीय, शय्या । २ वि. का एक प्रसिद्ध राजा (स ६) । हर वि युक्त, मन वगैरह की निर्दोष प्रवृत्तिवाला | गोपित, रक्षित (दे २, १०२)। ३ समूह, [धर] १ गुणों को धारण करनेवाला, गुणी। (उप ६०४)। ४ एक स्वनाम-प्रसिद्ध जैनाचार्य मुग्ध, घबड़ाया हुप्रा, व्याकुल (दे २, १०२, २ तन्तु-धारक । स्त्री. रा (सुपा ३२७) । (प्राक)।
से १, २, २, ४)। गयर [कर] गुणों की खान, अनेक गुण- गुत्त देखो गोत्त (पात्र भग; भावम)।
गुप्पय देखो गो-पय (सूक्त ११)। वाला, गुणी (पउम १५, ६८ प्रासू १३४) । गुत्तण्हाण न [दे] पितृ-तर्पण (दे २, ६३)।
गुप्फ पुं[गुल्फ] फीली, पैर की गाँठ (स गुण देखो एगूणः 'गुणसट्ठि अपमत्ते सुराउबंधं गुत्ति स्त्री [गुप्त] १ कैदखाना, जेल (सुर १,
३३) हे २,१०)। तु जइ इहागच्छे' (कम्म २, ८, ४, ५४; ७३, सुपा ६३)। २ कठघरा (सुपा ६३)।
गुफगुमिअ वि [दे] सुगन्धी, सुगन्ध-युक्त ३ मन, वचन और काया की अशुभ प्रवृत्ति ५६ श्रा ४४)। 'गुण वि [गुण] गुना, पावृत्तः 'वीसगुणो को रोकना। ४ मन वगैरह की निर्दोष
(दे २, ६३)। तीसगुणों (कुमाः प्रासू २६)।
प्रवृत्ति ठा २, १; सम ८)। गुत्त वि गुब्भ देखो गुप्फ (षड्)। गुणण न [गुणन] १ गुणकार (पव २३६)। [गुप्त] मन वगैरह की निर्दोष प्रवृत्तिवाला, | गुभ सक [गुफ्] गूंथना, गठना। गुभइ २ ग्रन्थ-परावर्तन, प्रावृत्तिः 'गुणणु (? गुण- संयत (पएह २, ४)। पाल पुं [पाल] ! (हे १, २३६) । गणु) प्पेहासु प्र असत्तो' (पिंड ६६४)। जेल का रक्षक, कैदखाना का अध्यक्ष (सुपा गुम सक [ म् ] घूमना, पर्यटन करना, गुणणा स्त्री [गुणना] ऊपर देखो (सम्यक्त्वो ४६७) 1 °सेण पुं [ सेन] ऐरवत क्षेत्र में | भ्रमण करना । गुमइ (हे ४, १६१) । १५)।
उत्पन्न एक जिनदेव (सम १५३)। | गमगम का गमगमाय 1१ 'गुमगुणयालीस स्त्रीन [एकोनचत्वारिंशत् 1| गुत्ति स्त्री [गुप्ति] गोपन, रक्षण (गु १२)। गुमगुमाअ गुम आवाज करना। २ मधुर उनचालीस, ३६ (राय ५६)
गुत्ति स्त्री [दे] १ बन्धन (दे २,१०१; भवि)। अव्यक्त ध्वनि करना। वकृ. गुमगुमंत, गुणबुढि स्त्री [गुणवृद्धि] लगातार पाठ २ इच्छा, अभिलाषा। ३ वचन, आवाज । गुमगुमित, गुमगुमायंत (प्रौप; णाया १, दिनों का उपवास (संबोध ५८)।
४ लता, वल्ली। ५ सिर पर पहनी जाती १; कप्प पउम ३३, ६)। गुणसेण पुं[गुणसेन] एक जैन आचार्य जो फूल की माला (दे २,१०१)।
गुमगुमाइय वि [गुमगुमायित] जिसने सुप्रसिद्ध हेमाचार्य के प्रगुरु थे (कुप्र १९)। गुत्तिदिय वि [गुप्तेन्द्रिय] इंद्रिय-निग्रह करने 'गुम-गुम' आवाज किया हो वह (प्रौप) । गुणा स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष (भवि)। वाला, संयतेंद्रिय (भगः णाया १, ४)।
| गुमिअ वि [भ्रमित] भ्रमित, घुमाया हुआ गुणाविय वि [गुणित] पढ़ाया हुमा, पाठितः गुत्तिय वि [गौप्तिक] रक्षक, रक्षण करने
क्षण करने (कुमा)। 'तत्थ सो प्रजएण सयलारो घणुब्वेयाइयाओ वाला: 'नगरगुत्तिए सहावेई' (कप्प)। महत्थविजाप्रो गुणाविप्रो' (महा)। गुत्तिय वि [गौत्रिक] गोती, समान गोत्र
गुमिल वि [दे] १ मूढ़, मुग्ध । २ गहन,
गहरा । ३ प्रस्खलित । ४ प्रापूर्ण, भरपूर (दे गुणि वि [गुणिन् गुण-युक्त, गुणवाला (उप | वाला, गोतिया (कुप्र ३४४)। ५६७ टी गउड प्रासू २६)। गुत्तिवाल देखो गुत्ति-पाल (धर्मवि २६)।
२, १०२)। गुणिअ वि [गुणित] १ गुना हुआ, जिसका | गुत्थ वि [ग्रथित] गुम्फित, गूंथा हुआ (स
गुमुगुमुगुम देखो गुमगुम । वकृ. गुमुगुमुगुणा किया गया हो वह (श्रा ६)।२चितित, | ३०३; प्रापः गा ६३; कम्पू) ।
गुमंत, गुमुगुमुगुमेंत (पउम २, ४०;
६२,६)। याद किया हुआ (से ११, ३१)। ३ पठित गुत्थंड पु [दे] भास-पक्षी, पक्षि-विशेष (दे अधीत (ओघ ६२)। ४ जिस पाठ की आवृत्ति २, ६२)।
गुम्म अक [मुह.] मुग्ध होना, घबड़ाना,
व्याकुल होना । गुम्मइ (हे ४, २०७)) की गई हो वह, परावर्तित (वव ३)। गुद पुंस्त्री [गुद] गाँड़, गुदा (दे ६, ४६)।
गुम्म पुं[गुल्म] परिवार, परिकरः 'इत्थीगुणिल्ल वि [गुणवत् ] गुणी, गुण-युक्त गुद्दह न [गोद्रह] नगर-विशेष (मोह ८८)।
गुम्मसंपरिवुडे (सूम २, २, ५५) । (पि ५६५)।
गुप्प अक [गुप् ] व्याकुल होना। गुप्पइ गुण्ण देखो गोण्ण (अणु १४०)।
गुम्म पुन [गुल्म] १ लता, वल्ली, वनस्पति| (हे ४, १५०; षड्)। वकृ. गुप्पंत,
विशेष (परण १)। २ झाड़ी, वृक्ष-घटा गुण्ह (अप) देखो गिण्ह । गुण्हइ (प्राकृ गुप्पमाण (कुमा ६, १०२, कप्प; औप)।
(पान)। ३ सेना-विशेष, जिसमें २७ हाथी, ११९)। गुप्प वि [गोप्य] १ छिपाने योग्य। २ न
२७ रथ, ८१ घोड़ा और १३५ प्यादा हों गुत्त न [गोत्र] साधुत्व, साधुपन (सूत्र २, एकान्त, विजन (ठा ४,१)।
ऐसी सेना (पउम ५६, ५)। ४ वृन्द, समूह ७, १०)।
गुप्पई स्त्री [गोष्पदी] गौ का पैर डूबे उतना (भोप; सूत्र २,२) । ५ गच्छ का एक हिस्सा, गुत्त वि [गुप्त] गुप्त, प्रच्छन्न, छिपा हुआ गहरा ,'को उत्तरि जलहि, निब्बुहुए गुप्पई- जैनमुनि-समाज का एक अंश (ोप)। ६ (णाया १,४. सुर ७,२३४)। २ रक्षित (उत्त नीरे' (धम्म १२ टी)।
स्थान, जगह (मोघ १९३)।.
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