________________
२६६
गूढ-गो
पाइअसद्दमहण्णवो गूढ वि [गूढ] गुप्त, प्रच्छन्न, छिपा हुआ गेण्हिऊण, गेण्हिअ (भगः पि ५८६, गेहि वि [गेहिन] नीचे देखो (णाया १; (पएह १, ४ जी १०)। दंत पुं [दन्त] कुमा) । कृ. गेण्हियव्व (उत्त १)। १ एक अन्तर्वीप, द्वीप-विशेष । २ द्वीप-विशेषण्ह ण न ग्रहणा प्रादान, उपादान, लेना रोहिअ वि [गेहिक] १ घरवाला, गृही। २ का निवासी (ठा ४,२) । ३ एक जैन मुनि। (उप ३३६; स ३७५)।
पुं. भर्ता, धनी, पति (उत्त २)। ४ 'अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र का एक अध्यगेण्हणया स्त्री [ग्रहणा] ग्रहण, पादान (उप
गेहिअ [गृद्धिक] अत्यासक्त, लोलुप, लालची थन (अनु २)। ५ भरत क्षेत्र का एक भावी ५२६)।
(पएह १, ३)। चक्रवर्ती राजा (सम १५४)। गेहाविय वि [ग्राहित ग्रहण कराया हुआ
गेहिणी स्त्री [गेहिनी] गृहिणी, स्त्री (सुपा गृह सक [गुह.] छिपाना, गुप्त रखना। (स ५२६ महा)।
३४१; कुमाः कप्पू)। वकृ. गृहंत (स ६१०)।
गो गेण्हिअ न [दे] उरः-सूत्र, स्तनाच्छादक-वस्त्र गृह न [गूथ] गू, विष्ठा (तंदु)।
[गो] भूप, राजाः 'तइयो गो भूपपसुर
स्सिणो त्ति' (वव १) 'माहिसक न गृहण न [गृहन] छिपाना (सम ७१)। गेद्ध देखो गिद्ध (प्रौप)।
["माहिषक] गौ और भैंस का झुंड या गूहिय वि [गृहित] छिपाया हुआ (स १८६)।
समूह 'निव्वुयं गोमाहिसकं' (स ६८६)। गृह । (अप) देखो गिण्ह । गृन्हइ (कुमा)।
गेरिअनागैरिका १ गेरु, लाल रङ्ग गृह संकृ. गृण्हेप्पिण (हे ४.३१४)। गेरुअ) की मिट्टी (स २२३, पि ६०० गो पू[गो] १ रश्मि, किरण (गउड)। २ गेअ वि [गेय] १ गाने योग्य, गाने लायक,
११८)।२ मणि-विशेष, रत्न की एक जाति स्वर्ग, देव-भूमि (सुपा १४२) । ३ बैल, गीत (ठा ४, ४–पत्र २८७, वजा ४४)।
(पएण -पत्र २६)। ३ वि. गेरु रंग का बलीवदं । ४ पशु, जानवर । ५ स्त्री. गया। २ न. गीत, गान; 'मणहरगेयझणीए (सुर
(कप्पू) । ४ पुं. त्रिदण्डी साधु, सांख्य मत 'अपरप्पेरियतिरियानियमियदिग्गमणपोरिणलो
का अनुयायी परिव्राजक (पव ६४)। गोव्व' (विसे १७५८; पउम १०३, ५० ३, ६६; गा ३३४)।
गेलण्ण) न ग्लान्य रोग, बीमारी, ग्लानि सुपा २७५)। ६ वाणी, वाम् (सूत्र १, गेंठुअ न [दे] स्तनों के ऊपर की वस्त्र-ग्रन्थि
गेलन्न (विसे ५४०, उप ४६६ प्रोष १३)। ७ भूमिः ‘ज महइ विझवणगोयराण (दे २, ६३)। ७७ २२१)।
लोपो पुलिदाण' (गउड; सुपा १४२)। गेठुल्ल न [दे] कञ्चक, चोली (दे २, ६४)।
गेविज । न [वेयक] १ ग्रीवा का प्राभू- आल देखो °वाल (पुप्फ २१६) । इल्ल वि गेंड न [दे] देखो गेंठुअ (दे २, ६३)। गेवेज्ज षण, गले का गहना (ोप, णाया [मत् ] गो-युक्त, जिसके पास अनेक गौ हो गेंडुई स्त्री [दे] क्रीड़ा, खेल, गम्मत, विनोद गेवेज्जय) १, २)। २ ग्रैवेयक देवों का
वह (दे २, ६८)। °उल न [कुल] १ विमान (ठा ) । ३ पुं. उत्तम श्रेणी के देवों (दे २,६४) ।
गौओं का समूह (प्राव ३)। २ गोष्ठ, गोगेंदुअ पुं[कन्दुक] गेंद, गेंदा, खेलने की एक को एक जाति (कप्प; औपः भग; जी ३३;
बाड़ा; 'सामी गोउलगनों (आवम)। उलिय वस्तु (हे १, ५७; १८२; सुर १, १२१)।
वि [कुलिक] गो-कुलवाला, गो कुल का गेवेय देखो गेवेज (प्राचा २, १३, १)। गेज वि [दे] मथित, विलोड़ित (दे २,८८)
मालिक, गोवाला (महा)। 'किलंजय न गेह पुन [गेह घर, 'न नई न वणं न उज्जडो [किलअक] पात्र-विशेष, जिसमें गौ को गेजल न [दे] ग्रीवा का प्राभरण (दे २, । गेहो (वजा ६८)।
खाना दिया जाता है (भग ७, ८)। कीड १४)। गेज्म वि [ग्राह्य] ग्रहण-योग्य ( हे १,७८)। गेह न [गेह गृह, घर, मकान (स्वप्न १६ पुं[ कीट] पशुओं की मक्खी, बघी (जी
१६) । क्खीर, खीर न [°क्षीर] गैया गउड)। जामाउय पुं [जामातृक घरगेडण न [दे] १ फेंकना, क्षेपण । २ दे देनाः
जमाई, सर्वदा ससुर के घर में रहनेवाला का दूध (सम ६० पाया १, १)। गह 'तत्तबगेडएकए ससंभमा आसमाउ लहुँ'
g["ग्रह] गाय की चोरी, गौ को छीनना जामाता (उप पृ ३६६) । "गार वि (उप ६४८ टी)।
[कार] १ घर के आकारवाला। २ पुं. (पएह १, ३)। ग्गहण न [ग्रहण] गेडु न दे] १ पङ्क, कीच, काँदो । २ यव,
कल्पवृक्ष की एक जाति (सम १७) । लु गो-ग्रहण (णाया १,१८)। जिसजा स्त्री अन्न-विशेष (दे २,१०४)।
वि [वत] घरवाला, गृही, संसारी (षड्)। [निषद्या] पासन विशेष, गौ की तरह गेड्डी स्त्री [दे] गेड़ी, गेंद खेलने की लकड़ी सिम [श्रम] गृहस्थाश्रम (पउम ३१, बैठना (ठा १, १)। "तित्थ न [तीर्थ १ (कुमा)।
गौनों का तालाब आदि में उतरने का रास्ता, गेण्ह देखो गिण्ह । गएहइ (हे ४, २०६; उव: गेहि वि [गृद्ध] लोलुप, प्रत्यासक्त (ओघ क्रम से नोची जमीन (जीव ३)। २ लवण महा)। भूका. गेल्हीप (कुमा)। भवि. ७)।.
समुद्र वगैरह की एक जगह (ठा १०) गेरिहस्सइ (महा) । वकृ. गेण्हत, गेण्हमाण गेहि स्त्री [गृद्धि] मासक्ति, गाय, लालच त्तास वि [ त्रास] १ गौमों को त्रास (सुर ३,७४ विपा १,१) । संकृ. गेण्हित्ता, (स ११३; परह १, ३)।
देनेवाला । २ . एक कूटग्राह का पुत्र (विपा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
wwwinelibrary.org