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३०२ पाइअसहमहण्णवो
गोयम-गोव गोयम वि [गौतम] १ गोतम गोत्र में उत्पन्न, , [खर] गर्दभ की एक जाति (पएण १)। पुरुष का निन्दा-गर्भ आमन्त्रण (णाया १, गोतम-गोत्रीय; जे गोयमाते सतविहा पएणत्ता' "गिरि पुं["गिरि] पर्वत-विशेष, हिमाचल ६)। ३ निष्ठुरता, कठोरता (दस ७)।(ठ ७; भग जं १)।२ पृ. भगवान् महावीर (निचू १)। मिग पुं [मृग] १ हरिण की गोल ' [गोल] १ वृक्ष-विशेष, 'कदम्बगोलका प्रधान-शिष्य (भग १४, ७; उवा)। एक जाति । २ न. उस हरिण के चमड़े का णिहकंटअंतरिणअंगे' (अच्च ५८)। २ गोला३ इस नाम का एक राज-कुमार, राजा बना हुआ वस्त्र (प्राचा २, ५, १)।
कार, वृत्ताकार, मण्डलाकार वस्तु (ठा ४,४, अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जो भगवान् नेमि- गोरअ देखो गोरव (गा ८९) ।
अनु ५) । ३ गोलक, कुंडा (सुपा २७०)। नाथ के पास दीक्षा लेकर शत्रुब्जय पर्वतपर गोरंग वि [गौराङ्ग] गोरा शरीरवाला, ४ गेंद, कन्दुक (सूत्र १, ४) मुक्त हुआ था (अन्त २)। ४ एक मनुष्य- शुक्ल शरीरवाला (कप्पू)।
| गोल पुंस्त्री [दे] गोला, जार से उत्पन्न, कुंड जाति, जो बैल द्वारा भिक्षा माँग कर अपना गोरंफिडी स्त्री [दे] गोधा, गोह, जन्तु-विशेष । (दस ७, १४)। स्त्री. °ली (दस ७, १६)। निर्वाह चलाती है (णाया १, १४) । ५ एक (दे २, ६८)
गोलग ! [गोलक] ऊपर देखो (सूम २, ब्राह्मण (उप ६१७)। ६ द्वीप विशेष (सम गोरडित विदा सस्त, ध्वस्त (षड)। गोलय ) २. उप पृ ३९२ काल)।.' ८०, उप ५६७ टी) । केसिज न गोरव न [ गौरव ] १ महत्व, गुरुत्व (प्रासू ।
गोलव्वायण न [गौलव्यायन] गोत्र-विशेष [केशीय] 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक अध्य- ____३०) । २ पादर, सम्मान, बहुमान (विसे
। (सुज १०,१६)। यन, जिसमें गौतम स्वामी और केशिमुनि का
गोला स्त्री [दे] गौ, नैया (दे २, १०४; ३४७३, रयण ५३) । ३ गमन, गति (ठा है)। संवाद है ( उत्त २३ ) । सगुत्त वि गोरविअ विगौरवित सम्मानित, जिसका
पान) । २ नदी, कोई भी नदी। ३ सखी, [सगोत्र गोतम गोत्रीय (भग; आवम)।
सहेली, संगिनी (दे २, १०४)। गोदावरी प्रादर किया गया हो वह (दे ४, ५)। सामि पु [स्वामिन] भगवान् महावीर
नदी (दे २, १०४; गा ५८; १७५; हेका गोरव्व वि [गौरव्य गौरव-योग्य (धर्मवि के सर्व-प्रधान शिष्य का नाम (बिपा १,१
२६७: पि ८५; १६४; पात्र; षड् )। पत्र २)। ६४ कुप्र ३७७)।
गोलिय पुं [गौडिक] गुड़ बनानेवाला (वव गोयमजिया। स्त्री [गौतमार्यिका जैनमुनि- गार
गोरस पुंन [गोरस] गोरस, दूध, दही, मट्ठा )। गोयमेजिया गण की एक शाखा (राजा
या छाछ वगैरह (णाया १, ८ ठा ४, १)।- गोलिया स्त्री [दे] १ गोली, गुटिका (राय; कप्प)।
गोरस पुं [गोरस] वाणी का आनन्द (सिरि अणु)। गैद, लड़कों के खेलने की एक चीज; गोयर पु [गोचर] १ गौत्रों को चरने की १४०)।
'तीए दासीए घडो गोलियाए भिन्नो' (दसनि जगह, ‘णो गोयरे णो वरणगारिणयाणं' (बृह
गोरह [दे] हल में जोतने योग्य बैल २) । ३ बड़ा कुण्डा, बड़ी, थाली (ठा ८)। ३)। २ विषयः 'अंबुरुहगोयरं गमह (आचा २, ४२, ३)।
"लिंछ, 'लिच्छ न [लिन्छ, “लिच्छ] सयं ' (गउड)। ३ इन्द्रिय का विषय, प्रत्यक्षः गोरा स्त्री [दे] लाङ्गल-पद्धति, हल-रेखा । २ १ चुल्ली, चूल्हा। २ अग्नि-विशेष (ठा 'इन राया उज्जाणं तं कासी नयणगोमर चक्षु, आँख । ३ ग्रीवा, गर्दन या डोक (दे २, ८-पत्र ४१७) । सव्वं' (कुमा)। ४ भिक्षाटन, भिक्षा के लिए १०४)।
| गोलियायण न [गोलिकायन] १ गोत्र-विशेष, भ्रमण (मोघ ६६ भाः दस ५, १)। ५ | गोरि देखो गोरी (हे १, ४)।
जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है । २ वि. भिक्षा, माधुकरी (उप २०४)। ६ वि, भूमि गोरिअन गौरिका विद्याधर का नगर-विशेष गोलिकायन-गोत्रीय (ठा ७)। में विचरनेवालाः 'विझवणगोयराण पुलिंदारण' । (इक)।
गोली स्त्री [दे] मथनी या मथानी, मनिया, (गउड)। चरिआ स्त्री [चर्या] भिक्षा के गोरी स्त्री [गौरी] १ शुक्ल-वर्णा स्त्री (हे ३, दही मथने की लकड़ी, रही (दे २, ६५)। लिए भ्रमण (उप १३७ टी. पउम ४, ३)। २८) । २ पार्वती, शिव-पत्नी (कुमाः सुपा गोल्ल न दे] बिम्बी-फल, कुन्दरुन का फल भूमि स्त्री [भूमि] १ पशुओं को चरने की २४०; गा १) । ३ श्रीकृष्ण की एक स्त्री का
(गाया १,८ कुमा)। जगह (दे ३, ४०)।२ भिक्षा-भ्रमण की नाम (अंत १५)। ४ इस नाम की एक विद्या-गोल्ल [गौल्या १ देश-विशेष (प्रावम)। जगह (ठा ६)। वत्ति वि [वर्तिन् । देवी (संति ६)५ कूड न [°कूट] विद्याधर
२ न. गोत्र-विशेष, जो काश्यप गोत्र की भिक्षा के लिए भ्रमण करनेवाला (गा २०४)।
शाखा है। ३ वि, गौल्य गोत्र में उत्पन्न गोयरी स्त्री [गौचरी] भिक्षा, माधुकरी (सुपा गोरी स्त्री [गौरी] विद्या-विशेष (सूत्र २, २, (ठा )। २६६)। २७)।
गोल्हा स्त्री [दे] बिम्बी, वल्ली-विशेष, कुन्दरुन गोर [गौर] १ शुक्ल-वर्ण, सफेद रंग। २ | गोरूव न [गोरूप] प्रशस्त गाय (धर्मवि की लतर (दे २, ६५ प्रावमः पाप्र)। वि. गौर वर्णवाला, शुक्ल (गउडः कुमा)। ११२) ।
गोव सक [गोपय ] १ छिपाना । २ रक्षण ३ प्रवदात, निर्मल (णाया १,८)। 'खर पुंगोल पुं[दे] १ साक्षी (दे २, ६५)। २ करना । गोवए, गोवेइ (सुपा ३४६, महा)।
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