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पाइअसहमहण्णवो
घ-घडा
घ पुं [] कण्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष घग्घर न [दे] घुघरा, घघरा, लहँगा, स्त्रियों (जं १)। २ प्रेरित, चालित (पण्ह १, ३) । (प्रापा प्रामा)
के पहनने का एक वन (दे २, १०७)। ३ स्पृष्ट, छुआ हुमा (जं १, राय)। घअअंद न [दे] मुकुर, दर्पण (षड्) । घग्घर ( [घर्घर) १ शब्द-विशेष (गा८००)। घट्ट वि [घृष्ट] १ घिसा हुआ (हे २ १७४; घई (अप)म पाद-पूरक और अनर्थक अव्यय २ खोखला गला: 'घग्घरगलम्मि' (३६,१७)। प्रौप सम १३७)। (हे ४,४२४ कुमा) ।
३ खोखला आवाज: 'रुयमाणी घग्घरेण-घड सक[घट] १ चेश करना। २ घओअ) पुं[घृतोद] १ समुद्र-विशेष, सद्देण' (सुर २, ११२)। ४ न. श्यावल, करना, बनाना। प्रक. परिश्रम करना। ४ घओद , जिसका पानी घी के तुल्य स्वादिष्ट शैाल या सेवार वगैरह का समूह (गउड) संगत होना, मिलना। घडइ (हे १, १९५)
है (इका ठा ७)। २ मेघ विशेष (तित्थ) ३ घट सक[ घटू] १ स्पर्श करना, छूना। वकृ. घडत, घडमाण (से १,५; निचू १)। वि. जिसका पानी घी के समान मधुर हो ऐसा २हिलना, चलना । ३ संघर्ष करना । ४ । कृ. घडियव्य (णाया १, १-पत्र ६०)। जलाशय । स्त्री. आ,दा (जीव ३ राय) पाहत करना। घट्टइ (सुपा ११६)। वकृ.
घड सक [घटय ] १ मिलाना, जोड़ना, घंघ ( [दे] गृह, मकान, घर (दे २, १०५) घटुंत (ठा ७) । कवकृ. घट्टिजंत (से २,
संयुक्त करना । २ बनाना, निर्माण करना। साला स्त्री [शाला] अनाथ-मण्डप,
३ संचालन करना । घडेइ (हे ४, ५०) । भिक्षुओं का प्राश्रय-स्थान (प्रोध ६३६ वव घट्ट सक [घट्टय] हिलाना । संकृ. घट्टियाण |
भवि. घडिस्सामि (स ३६४)। वकृ. घडंत ७. प्राचा) । (दस ५,१,३०)।
(सुपा २५५) । संकृ. घडिअ (दस ५, १)। घंघल (अप) न [झकट] १ झगड़ा, कलह घट्ट पक [भ्रंश ] भ्रष्ट होना । घट्टइ (षड्)। (हे ४, ४२२) । २ मोह, घबराहट (कुमा)। घट्ट [दे] १ कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ वन्न ।
घड ' [घट] घड़ा, कुम्भ, कलश (हे १,
१६५)। कार पुं[°कार] कुम्भकार, मिट्टी घंघलिअ वि [दे] घबड़ाया हुमा (संवे ६; २ नदी का घाट । ३ वेणु, वंश, बाँस (दे २,
का बरतन बनानेवाला (उप पृ ४१५) । धर्मवि १३४)।
'चेडिया स्त्री [ चेटिका] पानी भरनेवाली घंघोर वि [दे] भ्रमण-शोल, भटकनेवाला (दे घट्ट [घट्ट] १ शर्कराप्रभा नामक नरक-भूमि
दासी, पनहारिन (सुपा ४६०)। दास पुं २,१०६)। का एक नरकावास (इक) । २ पुंन. जमाव
[दास] पानी भरनेवाला नौकर, पनिहारा घंचिय पुं[दे] तेली, तेल निकालनेवालाः (श्रा २८)। ३ समूह, जत्थाः 'हयघट्टाई'
प्राचा)। दासी स्त्री [°दासी] पानी भरने(सुपा २५६) । ४ वि. गाढ़ा, निबिड; 'मूल गुजराती में 'घांची' (सुर १६, १९०)।
वाली, पनिहारी (सूत्र १, १५) । घडकररुहो' (सुपा ११)। घंट पुंस्त्री [घण्ट] घण्टा, कांस्य-निर्मित वाद्य
घड वि [दे] सृष्टीकृत, बनाया हुआ (षड् )। घटुंसुअ न [दे. घटयंशुक वस्त्र-विशेष, विशेष (मोघ ८६ भा)। स्त्री. 'टा (हे १, बूटेदार कौसुम्भ वस्त्र (कुमा)।
घडइअ वि [ दे] संकुचित (षड्) । १९५; राय) ।
घडग पुं[घटक छोटा घड़ा (जं २; अणु)। घट्टण वि [घट्टन] चालाक, हिला देनेवाला घंटिय पुं [घण्टिक] चाण्डाल का कुल-देवता,
(पिंड ६३३)।
घटगार देखो घड-कार (वव १)। यक्ष-विशेष (बृह १)।
घट्टण न [घट्टन] १ छूना, स्पर्श करना । २ घडचडग पुं [घटचटक] एक हिंसा-प्रधान घंटिय पुं[घाण्टिक] घण्टा बजानेवाला
चलाना, हिलाना (दस ४)।
संप्रदाय (मोह १००)। (कप्प)
घट्टणग पुं[घट्टनक] पात्र वगैरह को चिकना घंटिया स्त्री [घण्टिका] १ छोटी घण्टी
घडण स्त्रीन [घटन] १ घटना, प्रसंग (वि करने के लिए उस पर घिसा जाता एक प्रकार (प्रामा)। २ किकिणी, धुंधुरू (सुर १,२४८; |
१३) । २ अन्वय, संबंध (चेइय ४६७)। का पत्थर (बृह ३)। जं२)। ३ प्राभरण-विशेष (णाया १, ६)।
घडण न [घटन] १ घड़ना या गढ़ना, कृति, घट्टणया। स्त्री [घट्टना] १ आघात, माहधंस पुं[घर्ष घर्षण, घिसन (णाया १, घट्टणा नन (प्रौपाठा ४,४)।२ चलन,
निमाण (से ७, ७१)। २ यल, चेष्टा, परि१-पत्र ६३)।
हिलन (प्रोष है)। ३ विचार । ४ पृच्छा श्रम (अनु ४; पएह २,१)। घंसण न [घर्षण] घिसन, रगड़ (स ४७)। (बृह ४)। ५ कदर्थना, पीड़ा (आचा)।६ घडणा स्त्री [घटना] मिलान, मेल, संयोग घंसिय वि [घर्षित] घिसा हुमा, रगड़ा हुआ __ स्पर्श; छूना (पएण १६)।
(सूम १, १, १)। (मौप)। घट्टय देखो घट्ट (महा)।
घडय देखो घडग (जं २)। घक्कूण देखो घे।
घट्टिय वि [घट्टित] १ पाहत, संघर्ष-युक्त घडा स्त्री [घटा] समूह, जत्था (गउड)।
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