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घय न [घृत] घी, घृत (हे १, १२६; सुर १६,६३) आसव [व] जिसका वचन घी की तरह मधुर लगे ऐसा लब्धिमान् पुरुष ( श्रावम ) । किट्ट न [किट्ट ] घी का मैल (धर्म २ ) 1 (ट्टिया स्त्री [कि ट्टिका ] घी का मैल ( पव ४) । गोल न [गोल] घी और गुड़ की बनी हुई एक प्रकार की मिठाई, मिटान्न विशेष (सुपा ६३३) । °घट्ट पुं [°घट्ट] घी का मैल (बृह १) । पुन्नपुं [पूर्ण] घेवर, मिष्टान्न विशेष (उप १४२ टी)। पूर [र] घेवर या धीवर, मिष्टान्न विशेष (सुपा ११) ५ “ समित्त पुं [° पुष्यमित्र ] एक जैन मुनि, श्रार्यरक्षित सूरि का एक शिष्य (घाचू १) 'मंड [ण्ड ] ऊपर का घी, घृतसार ( जीव ३) मिल्लिया स्त्री ["इलिका घी का कीट, क्षुद्र जन्तु- विशेष (जो १६ ) । [A]
]
बरसने
वाली वर्षा (जं ३ ) । वर पुं [व] द्वीपविशेष (इक)। "सागर [°सागर]
समुद्र - विशेष ( दीव) 1
घयण पुं [ दे] भाण्ड, भड़ा, भडवा (उप
२०४ २७५ पंचव ४) ।
घयपूस पुं [ घृतपुष्य ] एक जैन महर्षि (कुलक २२) ।
घर न [गृह] घर, मकान, गृह (हे २, १४४; ठा ५, प्रासू ७५)। "कुडी स्त्री [कुटी] १ घर के बाहर की कोठरी । २ चौक के भीतर की कुटिया ( श्रोघ १०५ ) । ३ स्त्री का शरीर (तंदु)। कोइला, कोइलिआ
[कोकिला ] गृहगोधा, छिपकली (पिंड, सुपा ६४० ) । गोली स्त्री ['गोली ] गृहगोधा, छिपकली (दे २, १०५१ । गोहिआ
[गोधिका ] छिपकली, जन्तु-विशेष (दे २, १९) । जामाज्य पुं ["जामातृक ] घर जमाई, ससुर घर में ही हमेशा रहनेवाला जामाता (गाया १, १६) । °स्थ पुं [स्थ] गृही, संसारी, घरबारी (प्रासू १३१) । ' नाम न [नामन] असली नाम, वास्तविक नाम (महा) 1 वाडयन [पाटक] ढकी हुई जमीन वाला घर (पान)। वार न [द्वार] घर का दरवाजा ( काम १९५) उणि
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पाइअसद्दमहण्णवो
[शकुनि] पालतू जानवर ( वव २ ) । 'समुदाय [समुदानिक ] श्राजीविक | मत का अनुयायी साधु ( प ) । सामि [स्वामिन] घर का मालिक (हे २, १४४ ) | सामिणी श्री [स्वामिनी ] गृहिणी, स्त्री (पि २ ) । सूर [ शूर] अलीक शूर, झूठा शूर, घर में ही बहादुरी दिखानेवाला ( दे ) 1
घरंगण न [गृहाङ्गण] घर का श्रांगन, चौक (गा ४४० ) ।
घरकूडी स्त्री [गृहकूटी ] स्त्री-शरीर ( तंदु ४० ) । घरग देखो घर ( जीव ३) । घरघंट पुं [दे] चटक, गौरैया पक्षी (दे २,
१०७ पात्र) ।
घरघर
( जं १) ।
[दे] गला का श्राभूषण - विशेष
[घर] जाता, चक्की, अन्न पीसने
घरट्ट
का पाषाण यन्त्र (गा ८०० सण) ।
घरट्ट पुं [दे] श्ररघट्ट, श्ररहट, पानी का चरखा (निचू १) ।
घरट्टी स्त्री [घरट्टी ] शतघ्नी, तोप (दे ३, १०)। धरणी देखो घरिणी 'तं वरधररिंग वररिंग व' (७२८ टी प्रासू ४५) ।
घरयंद पुं [दे] प्रादर्श, दर्पण, शीशा (दे २, १०७) ।
घरस पुं [दे. गृहवास] गृहाश्रम, गृहस्थाश्रम (बृह ३ ) ।
घरसण देखो घंसण (सण) । घरित वि [गृहवत् ] घरवाला, गृहस्थ (प्राकृ
३५) ।
घरिणी स्त्री [गृहिणी] घरवाली, स्त्री, भार्या, पत्नी (उप ७२८ टी से २, ३८ सुर २ १०० कुमा) ।
घरिल्ल पुं [गृहिन्] गृही, संसारी, घरबारी (गा ७३६) । घरिल्ला स्त्री [गृहिणी ] घरवाली, स्त्री, पत्नी (कुमा) ।
घरिल्ली स्त्री [ दे. गृहिणी ] गृहिणी, पत्नी (दे २, १०६) ।
घरिस वु [घर्ष ] घर्षण, रगड़ ( णाया १, १६) ।
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घय - घसी रणन [घ] घर्षण, रगड़ ( स ) 1 घरोइला स्त्री [दे] गृहगोधा, छिपकली, बिस्तुइया ( पि १६८ ) ।
घरोल न [दे] गृह भोजन विशेष (दे २, १०६)
घरोलिया ? स्त्री [दे] गृहगोधिका, छिपकली; घरोली ) गुजराती में 'घरोली' (परह १, १; दे २, १०५) ।
घलघल पुं [घलघल ] 'घल-घल' आवाज, saft - विशेष (विपा १, ६)
घल्ल सक [ क्षिपू ] फेंकना, डालना, घालना । इ, घति (भवि हे ४, ३३४; ४२२ ) । [] श्रनुरक्त, प्रेमी (दे २,१०५ ) । ) पुं [दे] द्वीन्द्रिय जीव की एक
घल्लय
१३०
३६, १३० ) ।
घल्लिअ वि [क्षिप्र] फेंका हुम्रा, डाला हुआ
(भवि) ।
वि [] घटित निर्मित किया हुआ; विघल्लियो तिक्खखरगगुरुषान'
'रु' (सुपा २४९) ।
घस सक [ घृप् ] १ घिसना, २
मार्जन करना, सफा करना । घसइ ( महाः षड् ) संकृ. 'घसिऊण प्ररणिकट्ठे अग्गी पज्जालियो मए पच्छा' (सुर ७, १८६) । सीन [दे] १ फटी हुई जमीन, फाटवाली भूमि (घाचा २, १०, २ ) । २ शुषिर भूमि, पोली जमीन । ३ क्षार भूमि (दस ६, ३२) । घसण देखो चंसण (सुपा १४: दे १, १६९ ) । -
घसणिअ वि [दे] श्रन्विष्ट, गवेषित (षड् ) । घणी स्त्री [घर्षण] सर्प-रेखा, टेढ़ी लकीर ( स ३५७ ) :
घसा स्त्री [दे] १ पोलो जमीन । २ भूमिरेखा, लकीर (राज)। सिवि [घृष्ट] घिसा हुआ, रगड़ा हुआ (दसा ५)
घसिर वि [ प्रसितृ ] बहु-भक्षक, बहुत खाने
वाला (ओघ १३३ भा) ।
घसी स्त्री [दे] १ भूमि राजि, लकीर । २ नीचे उतरना, भवतरण (राज) । घसी स्त्री [दे] जमीन का उतार, ढाल (भाचा २, १, ५, ३) ।
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