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गिहिकोइला गुंदल
गिहिकोइला स्त्री [गृहकोकिला ] गृहगोधा, छिपकली (७५८) । गिद्दमेहि पुं [गृहमेधिन् ] गृहस्थ (धर्मवि RE) IV
[[वि] [गृहपति ] देश का अधिपति सूबे दार. 'सह विवि देस्स गायगो' (पत्र ८५) गिहि पुं [गृहिन्] गृही, संसारी, गृहस्थ ( श्रोष १७ भाः नव ४३ ) ५ धम्म पुं ["धर्म] गृहस्थ धर्म, श्रावक-धर्म (राज) + लिंग न [लिङ्ग] गृहस्थ का वेश (बृह १ ) 1गिहिणी की [गृहिणी] गृहिणी भार्या श्री ( सुपा ८३ श्रा १६) । गिहीअ [वि] [गृहीत]] बात, उपात्त ग्रहण किया हुआ (स ४२८ ) |
गिलुग देखो गिलुय ( श्राचा २, ५, १, ८) । गिलु पुं [गृ है लुक ] देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी ( निचू १३ ) । गी श्री [ गिर्] वाणी, भाषा, वाकू 'विरजन छायापच गोविलसि जस्स (
गीआ श्री [गांता] श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानमय उपदेश, छन्द-विशेष (नि) । गोइ श्री [गीति] धन्य-विशेष धार्या नृत का एक भेद । २ गान, गीत (ठा ७ उप १३० टी) ।
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गोइया स्त्री [गीतिका ] ऊपर देखो ( श्रौप गाया १,१) ।
पाइअसहमणवो
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(श्रीप)। २ पुं. गन्धवं देवों का एक इन्द्र (इक, भग, ३, ८) । ३ गन्धवं सेना का प्रधिपति देव-विशेष (ठा ७) । ४ वि. संगीत प्रिय नान-प्रिय (विपा १, २ ) । गीवा की [प्रीथा] कण्ठ, गरदन (पा) गुंड देखो गुच्छ (हे १,२६) ।
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गुंछा स्त्री [दे] १ बिन्दु । २ दाढ़ी-मूंछ । ३ अधम, नीच (दे २, १०१) ।
गुंज प्रक [हस् ] हँसना, हास्य करना । गुजइ (हे ४, १६६) ।
गुंज
[ अ ] १ गुन-गुन करना, भ्रमर आदि का आवाज करना । २ गर्जना, सिंह वगैरह का आवाज करना 'गु ंजंति सीहा' (महा) । वकृ. गुंजंत (गाया १, १ – पत्र ५ भा)।
गुंज पुं [गुअ] १ गुल्जारव करता वायु (पउम १३, ४३) । २ पर्वत-विशेषः 'गुजवरपव्वयं ते' (पउम ८, ९०; ९४ ) ।
गुंजा स्त्री [गुआ ] १ लता-विशेष (सुर २, ६) २ फल-विशेष, पणी (खाया ११ गा ३१० ) । ३ भम्भा, वाद्य-विशेष (प्राचा) । ४ परिणाम-विशेष (ठा ४, १) । ५ गुञ्जारव,
जन, गुन-गुन आवाज "गुंजाचक्ककुहरोवगूढं' (राय) । ६ वायु- विशेष, गुल्जारव करनेवाला पा] (जीव १ जी ७) फल, 'द्दल न ['फल] फल- विशेष, घुंघची (सुर २६ २६१) गुंजालिआ श्री [गुलिका] गंभीर तथा टेढ़ी वापी - वावली या बावड़ी ( श्राचा २, ३, ३, १) गुंजालिया स्त्री [गुआलिका] वक्र-सारिणी, टेड़ी कियारी (खावा १,१) । २ गोल पुष्करिणी ( नि १२ ) । ३ वक्र नदी ( पण ११) I
गीय [गीत] पद्यमयवान व जो गाया जाय वह (पराह २३२ कथित, प्रतिपादित (गाया १, १ ) । ३ प्रसिद्ध, विख्यात ( संथा ) । ४ न. गान, ताल और बाजे के अनुसार गाना ( जं २ उत्त १ ) । ५ संगीत कला, गान - कला, संगीत - शास्त्र का परिज्ञान ( गाया १, १ )। ६ पुं. गीतार्थ, उत्सर्ग और अपवाद वगैरह का जानकार जैन साधु, विद्वान् जैन मुनि (उप ७७३) ५ "जस ["यशस्] इन्द्र-विशेष, गन्धर्व देवों का एक इन्द्र (२३) * [] १वान मुनि उप २२ ४ सुपा १२७) । २ संगीत - रहस्य (मै १४) । "पुरन ["पुर] नगर- विशेष (४.५
गुंजाविनि [हासित] हँसाया हुआ (कुमा ७, ४१)
गुंजिअ न [गुञ्जित ] गुन-गुन श्रावाज, भ्रमर वगैरह का शब्द (कुमा) गुंजिर वि [गुअितृ] गुन-गुन आवाज करनेवाला (उप १०३१ टी
५३).! ° रइ स्त्री [*रति] १ संगीत-क्रीड़ा | गुंजुल्ल देखो गुंजोल्ल गुजुल्लइ (हे ४, २०२ ) ।
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गुंजेल्लिभ वि [दे] पिण्डीकृत, इकट्ठा किया हुआ (दे २, २) ।
गुंजोल्ल सक [ वि + लुल् ] बिखेरना । गुरौंजोल्लइ (प्राकृ ७३) ।
गुंजोल्लक [ उत् + लस् ] उल्लास पाना, विकसित होना। ना ४१०२) । गुंजोल्लिअ वि [उल्लसित] विकसित, विक सित (कुमा) -
गुंठ सक [ उद् + धूलय्, गुण्ठ् ] धूल वाला करना, घुली के रंग का करना, घूसरित करना । गुठइ (हे ४, २६) । वकृ. गुंठत (कुमा) ।
गुंठ पुं [दे ] श्रधम अश्व, दुg घोड़ा (दे २, १४५४२ वि. मायावी, कपटी (वव ३) ।
गुंठा श्री [हे] मापा, ३) गुंठिअ वि [गुण्ठित] १ धूसरित । २ व्यास ३ आच्छादित (दे १,८५)
गुंठी स्त्री [दे] नीरंगी, स्त्री का वस्त्र-विशेष (दे २, १० ) 1
गुंड न [दे] मुस्ता से उत्पन्न होनेवाला - विशेष (३२, ११) ।
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गुंडण न [ गुण्डन] धूलि का लेप, धूल का शरीर में लगाना; 'रयरेणुगु' उरगारिण य नो सम्मं सहसि' (गाया १, १ –पत्र ७१ ) । V गुंडिअ वि [गुण्डित] भूमि-ति पूर्णि युक्त (पाच) २ लिप्स पता हमारा (बिया १, २ पत्र २४ ) घिरा हुआ; 'सउणी जह पसुगुडिया' (सूत्र १, २, १ ) । ४ श्राच्छादित, प्रावृत ( श्रावा) । ५ प्रेरित (१३) गुंथण न [ग्रन्थन] गूँथना, गठना ( रयण १८) |
गुंद पुं [गुन्द्र ] वृक्ष-विशेष (पान) I गुंदल [दे. गुन्दल] श्रानन्दयनि खुशी की धावाज, हर्ष की तुलयनि 'मतबरकामिणीसंपद (सुर ३ ११५)। 'हरिसी कलहेहि यमेनं हरिसद काउं' (सुपा १३७ ) । २ हर्ष -भर, श्रानन्दसंदोह खुशी की वृद्धि द
पुरु', 'धार' दत्ते लीलाव परिकलियों (सुपा २२ १३६) । वि. श्रानन्द
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