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२६४ पाइअसद्दमहण्णवो
गिण-गिह गिण देखो गण = गणय् । गिणंति (सट्ठि कोंकण देश में वर्षाकाल में किया जाता एक गिला स्त्री [ग्लानि १ बीमारी, रोग। २ १७) 10
प्रकार का उत्सव (बृह १) °णई स्त्री खेद, थकावट (ठा ८)। गिह देखो गह = ग्रह । गिराहइ (कप्प)। ["नदी] पर्वतीय नदी (पि ३८५)1 °णाल गिलाण देखो गिला; 'गिलाणइ कज्जे वकृ. गिण्हंत, गिण्हमाण (सुपा ६१६; पुं[नार] प्रसिद्ध पर्वत-विशेष, जो काठिया- (स ७१७)। णाया १,१)। संकृ. गिहिउं, गिबिह- वाड़ में आजकल भी 'गिरनार के नाम से
गिलाण वि [ग्लान] १ बीमार, रोगी (सूत्र ऊण, गिहित्ता (पि ५७४ ५८५ ५८२)। विख्यात है (प्री ३)। दारिणी स्त्री [°दा
१, ३, ३)। २ अशक्त, असमर्थ, थका हुआ हेकृ. गिण्हित्तए (कप्प)। कृ. गिहियव्य, रिणी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३६)।
(ठा ३, ४)। ३ उदासीन, हर्ष-रहित (णाया गिण्हेयव्य (अणु; सुपा ५१३)।
'नई देखो गई (सुपा ६३५) । पक्खंदण
। १, १३, हे २, १०६)। गिण्हण देखो गहण - ग्रहण (सिरि ३४७; न [प्रस्कन्दन] पहाड़ पर से गिरना (निचू
गिलाणि स्त्री [ग्लानि] ग्लानि, खेद, थकावट पिंड ४५६ तंदु ५०) ११) । यडय न [कटक] पर्वत का मध्य
(ठा ५, १) गिण्हणा स्त्री [ग्रहण] उपादान, प्रादान
भाग (गउड)। पन्भार पुं[प्राग्भार]
गिलायय वि [ग्लायक] ग्लानि-युक्त, लान (उत्त १६, २७)
पर्वत-नितम्ब (संथा)। राय [ राज मेरु गिण्हाविअ वि [ग्राहित] ग्रहण कराया हुआ पर्वत (इक)। वर पुं[वर] प्रधान पर्वत,
(प्रौप)। (धर्मवि ११६)
उत्तम पहाड़ (सुपा १७६)५ वरिंद पुं
गिलासि पुंस्त्री [ग्रासिन्] व्याधि-विशेष, गिद्ध पुं [गृध्र] पक्षि-विशेष, गीध (पाम: [°वरेन्द्र] मेरु पर्वत (श्रा २७)। सुआ स्त्री
भस्मक रोग (आचा)। स्त्री. णी (प्राचा)। पाया १; १६)
["सुता] पार्वती, गौरी (पिंग)। गिलिअ वि [गिलित] निगला हुमा, भक्षित गिद्ध वि [गृद्ध] पासक्त, लम्पट, लोलुप गिरि पुं[दे] बीज-कोश (दे ६, १४८)। (परह १, २, प्राचू ३)।
गिरिंद [गिरीन्द्र] १ श्रेष्ठ पर्वत । २ मे गिलिअवंत वि [गिलितवत् ] जिसने गिद्धपिटु न [गृद्ध स्पृष्ट, गृधपृष्ठ] मरणपर्वत । ३ हिमाचल (कप्पू)।
भक्षण किया हो वह (पि ५६६) ।। विशेष, आत्महत्या के अभिप्राय से गीध आदि गिरिकन्नी देखो गिरि-कण्णी (पव ४)।
गिलोइया । स्त्री दे] गृह-गोधा, छिपकली को अपना शरीर खिला देना (पव १५७)।
गिरिडी स्त्री [दे] पशुओं के दात को बाँधने गिलोई (सुपा ६४०; पुप्फ २६७) ।। गिद्धि स्त्री [गृद्धि] एक देव-विमान (देवेन्द्र
का उपकरण-विशेष; 'दंतगिरिडि पबंधई'
गिल्लि स्त्री [दे] १ हाथी की पीठ पर कसा (सुपा २३७) १३४) ।
जाता होदा, हौदा (णाया १,१-पत्र ४३ गिद्धि स्त्री [गृद्धि] आसक्तिः, लम्पटता, गाय गिरिनयर न [गिरिनगर] गिरनार पर्वत'
टी औप)। २ डोली, दो आदमी से उठाई के नीचे का नगर, जो आजकल 'जूनागढ' (सूत्र १, ६)
जाती एक प्रकार की शिविका (सूअ २, २; के नाम से प्रसिद्ध है (कुप्र १७६) । गिन्हणा देखो गिण्हणा (उत्त १६, २७)।
दमा ६) | गिरिफुल्लिय न [गिरिपुष्पित] नगर-विशेष गिव्वाण पुं [गीर्वाण] देव, सुर, त्रिदश गिह्म पुं [ग्रीष्म] ऋतु-विशेष, गरमी का
(पिड ४६१)।
(उप ५३० टी)। मौसिम (हे २, ७४; प्राप्र)।
गिरिस [गिरिश] महादेश, शिव (पानः | गिह्मा स्त्री. देखो गिमः "गिम्हासु' (सुख २,
| गिह न [गृह घर, मकान (प्राचाः श्रा २३; दे, ६, १२१)। वास पुं[°वास] कैलाश
स्वप्न ६४)पस्थ पुंस्त्री [स्थ] गृहस्थ, गृही, ३७) । पर्वत (से ६, ७५)।
संसारी (कप्पः द्र ५)। स्त्री. त्था (पउम गिर सक [ग] १ बोलना, उच्चारण करना। गिरीस पु [गिरीश] १ हिमालय पर्वत। ४६, ३३)। 'नाह [नाथ] घर का २ गिलना, निगलना । गिरइ (षड् )। २ महादेव, शिव (पिंग)।
मालिक (श्रा २८) लिंगि पुंस्त्री [लिगिरा स्त्री [गिर] वाणी, भाषा, वाक् (हे गिल सक [ग] गिलना, निगलना, भक्षण गिन् गृहस्थ, गृही, संसारी (दस)। वइ
करना । संकृ. गिलिऊण (नाट)। पुंस्त्री ["पति] गृहस्थ, गृही, घर का मालिक गिरि पु [गिरि] १ पहाड़, पर्वत (गउडा गिलण न [गरण] निगरण, भक्षण (हे ४,
(ठा ५, ३; सुपा २३४) वास ' १.२३)। °अडी स्त्री तिटी] पर्वतीय | ४५५)
वास] १ घर में निवास । २ द्वितीयाश्रम, नदी (गउड ) कण्णई, कण्णी स्त्री गिला । अक गलै] १ ग्लान होना, बीमार
संसारिपनः 'गिहवासं पासं पिव मन्नंतो वसइ [कर्णी] वल्ली-विशेष, लता-विशेष (पएण | गिलाअ होना। २ खिन्न होना, थक जाना। दुक्खिनो तम्मि' (धम्म सूत्र १, ६) विट्ट १-पत्र ३३, श्रा २०)। कूड न [°कूट] ३ उदासीन होना। गिलाइ, गिलायइ, मिला- पुं [वर्त] द्वितीय आश्रम, संसारिपन १ पर्वत का शिखर । २ पुं. रामचन्द्र का एमि (भगः कसः आचा) । वकृ. गिलायमाण (सूत्र १, ४, १), "सम पुं [श्रम] घरमहल (पउम ८०, ४) । 'जण्ण पुं[यज्ञ] (ठा ३, ३)।
वास, द्वितीयाश्रम (स १४८)।
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