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२८० पाइअसहमहण्णवा
खेर-खोमग खेर पुं दे] एक म्लेच्छ जाति (मृच्छ १५२) । खेविय वि [खेदित] खिन्न किया हुआ खोडय पं. [स्फोटक] फोड़ा, फुसी (हे २, खेरि स्त्री [दे] १ परिशाटन, नाशः 'धएणखरि | (भवि)। वा' (बृह २)। २ खेद, उद्वग। ३ उत्कंठा, खेह पुंन [द] धूली, रज; 'बग्गिरतुर गखर- खोडिय पुं [खोटिक गिरनार पर्वत का उत्सुकता (भवि)।
| खुरुक्खयखेहाइन्नरिक्खप हैं (सुर ११, १७१)। क्षेत्रपाल देवता (ती २)। खेल अक [खेल ] खेलना, क्रीड़ा करना, खोअ [क्षोद] १ इक्षु, ऊख । २ द्वीप-| खोडी स्त्री [दे] १ बड़ा काष्ठ (पएह १, ३तमाशा करना । खेलइ (कप्पू), खेलउ (गा विशेष, इक्षुवर द्वीप । ३ समुद्र-विशेष,
पत्र ५३)। २ काष्ठ की एक प्रकार की पेटी १०६) । वकृ. खेलंत (पि २०६)। इक्षुरस समुद्र (अणु ६०)।
(महा) । ३ नकली लकड़ी (३ प्राव वृ. हारि. खेल पु [दे] जहाज का कर्मचारी-विशेष खोइय वि [दे] विच्छेदित, 'सव्वे संघी
पत्र ४२१)। (सिरि २८५)। खोइया' (सुख २, १५)।
खोणि स्त्री [क्षोणि] पृथिवी, धरणी (सण)। खेल वि [खेल] खेल करनेवाला, नाटक का | खोउदय पुं [क्षोदोदक] समुद्र-विशेष (सूत्र
वइ पुं[पति] राजा, भूपति (उप ७६८ पात्र (धर्मवि ६ ) स्त्री. "लिया (धर्मवि ६)। १, ६, २०)।
टी)। खेल प[श्लेष्मन् श्लेष्मा, कफ, निष्ठीवन, खोओद देखो खोदोद (सुज १९)।
खोणिद पुं [क्षोणीन्द्र] राजा, भूमिपति थूथू (सम १०; औप; कप्पः पडि)। खोटग । पु[दे] खूटी,खूटा (उप २७८ | (सरण)। खेलण । न [खेलन, क] १ क्रीड़ा,
खोटय । स २६३)।
| खोणी देखो खोणि (सुर १२, ६१; सुपा खेलणय खेल । २ खिलौना (आका स खोक्ख प्रक [खोख ] वानर का बोलना,
२३८; रंभा)। १२७)। बन्दर का आवाज करना । खोक्खइ (गा
खोद पुं [क्षोद] १ चूर्णन, विदारण (भग खेलोसहि स्त्री [श्लेष्मौपधि] १ लब्धि- १७१ प्र)।
१७, ६)।२ इक्षु-रस, ऊख का रस (सूम विशेष, जिससे श्लेष्म पोषधि का काम देने खोक्खा। स्त्री [खोखा] वानर की आवाज
१,६) । रस पं [रस] समुद्र-विशेष लगे (पएह २, १; संति ३)। २ वि. ऐसी खोखा , (गा ५३२) ।
(दीव) । वर [वर] द्वीप-विशेष (जीव लब्धिवाला (आवमः पव २७०)। खखुब्भ अक[चोक्षुभ्य ] अत्यन्त भयभीत खेल्ल देखो खेल = खेल् । खेल्लइ (पि २०६) । होना, विशेष व्याकुल होना । वकृ. खोखु
खोद पुं [क्षोद] चूर्ण, बुकनी (हम्मीर ३४)। वकृ. खेल्लमाण (स ४४) । प्रयो. संकृ.
ब्भमाण (प्रौप परह १,३)।
खोज पुन [दे] मार्ग-चिह्न (संक्षि ४७) । खेल्लावेऊण (पि २०६)।
खोदोअ) पुं [क्षोदोद] १ समुद्र-विशेष,
खोदोद जिसका पानी इक्षु-रस के तुल्य खेल्ल देखो खेल = श्लेष्मन (राज)। खोट्ट सक [दे] खटखटाना, ठकठकाना,
मधुर है (जीव ३; इक) । २ मधुर पानीवाली खेल्ला देखो खेलग (स २६५)। ठोकना । कवकृ. खोट्टिजंत (मोघ ५६७
वापी (जीव ३) । ३ न. मधुर पानी, इक्षुटी)। संकृ. खोट्टेउं (प्रोघ ५६७ टी)। खेल्लावण) न खेलनका १ खेल कराना,
रस के समान मिठा जल (पएण १)। खेल्लावणय क्रीड़ा कराना । २ न. खिलौना खोट्टिय [दे] बनावटी लकड़ी (नंदीटिप्प. पत्र |
खोद्द न [क्षौद्र] मधु, शहद (भग ७, ६)। (उप १४२ टी)। धाई स्त्री [ धात्री] खेल १४६)।
खोभ सक [क्षोभय ]१ विचलित करना, खोट्टी स्त्री [दे] दासी, चाकरानी (दे २,७७)। करानेवाली दाई (राज)।
धैर्य से च्युत करना। २ आश्चर्य उपजाना। खेल्लिअ न [दे] हसित, हँसी, ठट्ठा (दे २, खोड पुं. [स्फोट] फोड़ा (प्राकृ १८)।
३ रंज पैदा करना । खोभेइ (महा) वकृ. खोड पुं[दे] १ सीमा-निर्धारक काष्ठ, खूटा ।
खोभंत (पउम ३, ६६; सुपा ४६३) । हेकृ. खेल्लुड देखो खल्लूड (राज)।
वि धामिक, धामष्ठ (द.२, ८०) । ३ खोभित्तए, खोभइउं (उवा: पि ३१६)। खेव क्षेप] १ क्षेपण, फेंकना (उप ७२८
ला (६.५८० पिण) ४ खोभ पंक्षोभ १ विचलता, संभ्रम (आव टी)। २ न्यास, स्थापना (विसे ९१२) । ३ शृगाल, सियार (मृच्छ १८३)। ५ प्रदेश,
५)। २ इस नाम का एक रावण का सुभट संख्या-विशेष (कम्म ४, ८१, ८४)। जगह; "सिंगक्खोडे कलहो' (प्रोष ७६ भा)।
(पउम ५६, ३२)। खेव पुं क्षेप] बिलम्ब, देरी (स ७७५)। ६ प्रस्फोटन, प्रमार्जन (प्रोघ २६५) । ७ न.
खोभण न [क्षोभण] क्षोभ उपजाना, विच
राजकुल में देने योग्य सुवर्ण वगैरह द्रव्य | खेव पू[खेद] उद्वेग, खेद, क्लेश; 'न हु कोइ
'य सुवण वगैरह द्रव्य लित करनाः तेलोक्कखोभरणकरं' (पउम २,
(वव १)। गुरू खेवं वचइ सीसेसु सत्तिसुमहेसु (?)
८२ महा)। खोडपज्जालि बुंदे] स्थूल काष्ठ की अग्नि खोभिय विक्षोभित विचलित किया हुआ (पउम ६७, २३)।
(दे २, ७०)। खेवण न [क्षेपण] प्रेरण (णाया १, २)।
(पउम ११७, ३१)। खोडय पू[क्ष्योटक] नख से चर्म का निष्पी-खोम ) नक्षौम] १ कासिक वस्त्र, खेवय वि [क्षेपक] फेंकनेवाला (गा २४२)। इन (हे २, ६)।
खोमग कपास का बना हुआ वस्त्र (गाया
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