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गग्ग-गण
पाइअसहमहण्णवो
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गडिअदेखो गमग
गडुअखा गम-गम् ।
गग्ग ' [गर्ग] १ ऋषि-विशेष । २ गोत्र- गज्ज प्रक [गर्ज ] गरजना, गड़गड़ाना, घड़- सो जक्खो गडयर्ड पकुन्वंतो (सुपा २८१; विशेष, जो गौतम गोत्र की एक शाखा है। घड़ाना । गजइ (हे ४, ६८) । वकु. गर्जत, । ५४२)। (ठा ७)।
गज्जयंत (सुर २, ७५, रयण ५८)। गडयड प्रक [दे] गर्जन करना, भयानक गग्ग पुं[गर्ग] १ एक जैन महर्षि (उत्त २७, गज्जण न [गर्जन] १ गर्जन, भयानक ध्वनि,
आवाज करना । वकृ. गडयडंत (सुपा १)। २ विक्रम की बारहवीं शताब्दी का मेघ या सिंह का नाद । २ नगर-विशेष (उप
१९४)। एक श्रेष्ठी (कुप्र १४३)। ७६५)।
गडयडी स्त्री [दे] वज्र-निर्घोष, गड़गड़ आवाज, गग्ग पुंगार्ग्य गर्ग गोत्र में उत्पन्न ऋषि- | गजणसह पुं [दे. गर्जनशब्द] पशु और |
मेघ ध्वनि (दे २, ८५; सण) ।। विशेष (उत्त २७)। हाथी की आवाज (दें २,८८)।
गडवड न [६] गडबड़, गोलमाल (सुपा गग्गर वि [गद्गद] १ गद्गद प्रावाजवाला, गजफल) वि [दे] देश-विशेष में उत्पन्न
५४१)। प्रति अस्पष्ट वक्ता (प्राप्र)। २ प्रानंद या दुःख गजल (वस्त्र) (आचा २,५,१,५७)। से अव्यक्त कथन (हे १, २१६; कुमा)। गज्जभ पु [गर्जभ] पश्चिमोत्तर दिशा का गग्गरी स्त्री [गर्गरी गगरी, छोटा घड़ा (दे पर्वन (आवम)।
| गडुल न [दे] चावल वगैरह का धोया-जल,
चावल प्रादि का धोवन (धर्म २)। २, ८६७ सुपा ३३६)। गज्जर पुं[दे] कन्द-विशेष, गाजर, गजरा,
गड्ड पुंस्त्री [गत] गड़हा, गड्ढा (हे २, ३२ गग्गिर देखो गग्गरः 'रुजगग्गिरं गेग्नं' (गा इसका खाना धर्म-शास्त्र में निषिद्ध है। (श्रा
प्रापः सुपा ११४)। स्त्री. गड्डा (हे १, ८४३; सण)। १६; जी ६)।
३५)। गच्छ सक [गम्] १ जाना, गमन करना। गजल वि [गर्जल] गर्जन करनेवाला (निचू गड्डु न [दे] शकट, गाड़ी (तो १५)। २ जानना। ३ प्राप्त करना। गच्छइ (प्रातः
गड्डुरिगा । स्त्री [दे] भेड़ी, मेषी, ऊर्णायुः षड्)। भवि. गच्छ (हे ३, १७१ प्राप्र)। | गज्जह देखो गजभ (आवम)।
गड्डुरिया । 'गड्डरिंगपवाहेणं गयाणुगइयं जणं वकृ. गच्छंत, गच्छमाण (सुर ३, ६६; गजि स्त्री [गजि] गर्जन, हाथी वगैरह की |
वियाएंतो' (धम्म; सूत्र १, ३, ४)। भग १२, ६)। संकृ. गच्छिअ (कुमा)। आवाज (कमा सुपा ८६ उप पृ११७)।
गड्डरी स्त्री [दे] १ छागी, अजा, बकरी (दे हेकृ. गच्छित्तए (पि ५६८)।
२,८४)। २ भेडी, मेषी (सट्ठि ३८)। | गजिअ वि [गजित] १ जिसने गर्जन किया | गच्छ पुन [गच्छ] १ समूह, सार्थ, संघात
गड्डह पुंस्त्री [गर्दभ] गदहा, गधा, खर (हे हो वह, स्तनित (पास)। २ न. गर्जन, मेघ (स १४८)। २ एक प्राचार्य का परिवार
२, ३७) । वाहण पुं [वाहन] रावण, वगैरह की आवाज (पएह १, ३)। (ग्रौपः सं ४७)। ३ गुरु-परिवारः 'गुरुपरिवारो
दशानन (कुमा)। गच्छो, तत्थ वसंताण गिजरा विउला' (पंचव;
गाजत्तु। विगाजत गजन करनवाला, गड्डिआ। स्त्री [दे] गाड़ी, शकट (ोध ३८६
गजिर गरजनेवाला (ठा ४, ४-पत्र गडी टी; दे २,८१ सुपा २५२) । धर्म ३)। वास पुं [वास] गुरु-कुल में २६६; गा ५५)।
गड्ढ न [दे] शय्या, बिछौना (दे २, ८१) । रहना, गच्छपरिवार के साथ निवास (धर्म
गजिल्लिअ न [दे] १ गुदगुदी, गुदगुदाहट । गढ देखो घड = घट् । गढइ (हे ४, ११२) । ३) । "विहार पु[विहार] गच्छ की
२ अंग-स्पर्श से होनेवाला रोमांच, पुलक | गढ पुंस्त्री [दे] गढ, दुर्ग, किला, कोट (दे २, सामाचारी, गच्छ का प्राचार (वव १)। 'सारणा स्त्री [°सारणा] गच्छ का रक्षण (षड्)।
८१; सुपा २५; १०५)। स्त्री. गढा (कुमा)। गझ वि [ग्राह्य ग्रहण-योग्य (स १४० | गढिअ वि [घटित] गढ़ा हुमा, जटित विसे १७०७)।
(कुमा)। गच्छागच्छिं अ. गच्छ-गच्छ से होकर (प्रौप)।
गट्टण पुंगट्टन] धरणेंद्र की नाट्य-सेना का | गढिअ वि [प्रथित] १ गूंथा हुआ, निबद्ध गच्छिल्ल वि [गच्छवत् ] गच्छवाला, गच्छ अधिपति (राज)।
'नेहनिगडगढियाणं' (उप ६८६ टी; पण्ह १, में रहनेवाला (बृह १)।
गढिया स्त्री [दे] गठिया, गुठलीः 'अंबगट्ठिया' । ४) । २ रचित, गुम्फित, निर्मित (ठा २, १)। गज देखो गय = गज (गड् ; प्रास १७१ (निचू १५) ।
३ गृद्ध, आसक्त; (प्राचा २, २, २. परह इक)। °सार पुं[सार] एक जैन मुनि, गड न [गड] १ विस्तीर्ण शिला, मोटा पत्थर १, २)। दण्डक-ग्रन्थ का कर्ता (दं ४७)।
(दे २,११०)। २ गत, खाई (सुर १३,४१)। गण सक [गणय् ] १ गिनना, गिनती करना। गज पुं [दे] जव, यव, अन्न-विशेष (दै २, गड (मा) देखो गय = गत (प्राप्र)।
२ पादर करना । ३ अभ्यास करना, पावृत्ति ८१, पा)।
गडयड पुंन [३] गर्जन, भयानक ध्वनि, हाथी | करना । ४ पर्यालोचन करना । गणइ, गणेइ गन्ज न [गद्य] छन्द-रहित वाक्य, प्रबन्ध (ठा वगैरह की आवाज; 'ता गडयडं कुणंतो, | (कुमाः महा)। वकृ. गगंत, गणेत (पंचा ४,४-पात्र २८७)।
समागमो गयवरो, तत्थ' 'इत्थंतरे सयं चिय, ४. से ४,१५)। कृ.गणेयव्ध (उप ५५५) ।
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