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गरिह - गलत्थ
गरिह देखो गरह गरिहइ गरिहामि (महान पडि) 1
रिपुं [ग] निन्दा, ग (प्रा) - गरिहणया देखो गरहणया (उत्त २६, १) । गरिहा स्त्री [ग] निन्दा, घृणा, जुगुप्सा (प्रोघ ७६१ स १६० ) । V
गरु देखो गुरु 'गरुयरगत्ताए खिविकरण' (सुपा २१४) ।
गरुअवि [गुरु] गुरु, बड़ा महान (हे है, १०६; प्रात्रः प्रासू ३६ ) IV अ क [ गुरुकार बनाना । गरुएइ (पि १२३); 'हाल सरेहि सिरी सारिखेड
] गुरू करना, बड़ा
अह सराग हंसेहिं । विश्व एए
अप्पाणं णवर गरुअंति (हेका २५५) ।
एक [ गुरुकारय् ] १ बड़ा
गरुआ गरुआअ बनना । बड़े की तरह श्राचरण करना । गरुआइ, गरुश्राश्रइ (हे ३, १३८ ) । गरुअवि [गुरुकृत] बड़ा किया हुआ (से ६, २०; गउड) | गरुई स्त्री [गुर्वी] बड़ी, ज्या महती गरुगी (हे १, १०७; प्रात्रः निचू १ ) गरुक्क देखो गरुअ 'गवजोव्वणरूप्रपसाहिणा सिंगार' (प्राप)
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गरुड देखो गरुल (संति ९; स २६५: पिंग) | छन्द-विशेष (पिंग) त्वन[ख] - विशेष, उरगान का प्रतिपक्षी अन (पउम १२,
१२०७१, ६६ विष्णु, वासुदेव (पउम ६१, ५७) ["व्यूह ] सेना की एक प्रकार की (महा; पि २४० ) । V
[] वह पुं रचना
गरुडंक पुं [गरुडाङ्क] १ विष्णु, वासुदेव । २ इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ७)
गरुल पुं [गरुड] एक देव - विमान (देवेन्द्र १३४) ।
गरुल पुं [गरुड ] १ पक्षि-राज, पक्षि-विशेष (पराह १, १)। २ यश-विशेष भगवान् शान्तिनाथ का शासन-यक्ष (संति ८ ) । ३ भवनपति देवों की एक जाति, सुपर्णकुमार
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पाइअसहमणव
देव (पह १, ४) । ४ सुपर्णकुमार देवों का इन्द्र (सूम १, ६) केउ [केतु] देखो "मय (राज) । उभय, द्वय पुं ['ध्वज ] १ गरुड़ पक्षी के चित्रवाली ध्वजा (राय) । २ वासुदेव कृष्ण देव-जातिविशेष सुकुमार देव धामः समः पिव्यूद देखो गरुड-चूह (२), सत्य न [शस्त्र] दान-विशेष (महा) सण न [सन] बासन-विशेष (राव) ववाय [प] शास्त्र-विशेष, जिसको याद करने से देव थत होते हैं (ठा १०)। देखो गरुड |
गरुबी देखो गरुई (कुमा) 1
गलक [ गल् ] १ गल जाना, सड़ना । २ खतम होना, समाप्त होना। ३ भरना, टपकना, गिरना । ४ पिघलना, नरम होना । ५. सक. गिराना, टपकाना; 'जाव रती गलई' (महा) व 'नवेण रस-सोएहि गलतम् मसुदर' (महा सुर ४, ६ सुपा २०४) । गलित (परह १ ३ प्रासू ७२ ) । प्रयो, ब. गटाचेमान (शाया १, १२) । गळ
पुं [गल] १ गला, श्रीवा, कण्ठ गलअ ) ( सुपा ३३ पान ) । २ वडिश, वंसी, मछली पकड़ने का काँटा (उप १८८० विपा १३ ८ सुर८१४०) गज्जि स्त्री [गर्जि] गले की गर्जना (महा) - "गब्जिय न ['गर्जित] गल-गर्जन (महा) लाय वि ['लात ] गले में लगाया हुआ, कण्ठ-न्यस्त (श्रीप
गलई श्री [गलकी] वनस्पति-विशेष (राज)। गलग देखो गलअ (परह १, १ ) 1गलत्थ देखो खिव । गलत्थइ (हे ४, १४३, मनि) ।
गलत्थण न [क्षेपण ] १ क्षेपण करना, फेंकना । २५५३पा २८ ) । गलत्थलिअ वि [दे] १ क्षिप्त, फेंका हुआ । २ प्रेरित (३२,८७) 1 गलत्थल पुं [दे] गलहस्त, हाथ से गला पकदमा (खाया १, २ पराह १, २ प ५३) गलत्थल्लिअ [दे] देखो गलत्थलिअ ४३८, ६१)
(से ५,
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गलत्था स्त्री [दे] प्रेरणा 'गरुयाणं चिय भुवरणम्मि श्रावया
न उरण हुति लहुयारण । गोलगत्वा ससिरान वाराण (उप ७२८ टी) । गलथि [क्षिप्त ] १ प्रेरित (सुपा ६३५) । २ फेंका हुआ (दे २, ८७ कुमा) । ३ बाहर निकाला हुआ (पास) 1 गलद्वअ 1 [दे] प्रेरित, लिस ( पद् गलहस्थि वि [गलहस्तित ] गला पकड़कर बाहर निकाला हुमा (वजा १३८ ) । गलाण देखो गिलाण (नाट - चैत ३४) । - गोल देखो गल = गल; 'मच्छुव्व गर्ल गिलित्ता' (दस १, ६)
गलि । वि [गलि, क] दुर्विनीत, दुर्दम गलिअ ) (श्रा १२; सुपा २७६) ५ गद्दह पुं [गर्दभ ] अविनीत गदहा (उत्त २७ ) । 'बइल पुं [" बलीवर्द] दुर्विनीत बैल (कप्पू ) ।
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[व] दुर्दम घोड़ा (उत्त १) । गलिज वि [गलित] १ गला हुमा, विमला हुधा (कप्प) २ शासित प्रशासित (जुमा)। ३ स्खलित, पतित (से १, २) । ४ नष्ट, नाशप्राप्त (सुपा २४३; सरण) - गलिअ वि [दे] स्मृत, याद किया हुआ (दे २,८१)
गलिंत देखो गल = गल गलिय वि [गलीय, गल्य] गले का (पि ४२४)
गरि नि [गरिन्] निरन्तर पिता टपकताः 'बहुसोगगलिरनयण' (श्रा १४ ) । गलुल देखो गरुल ( प्रच्चु १; षड् ) । - गलोई । स्त्री [गुडूची] वल्ली-विशेष, गलोया गिलोय, गुरुच (हे १, १२४ जी १०) IM
गल्ल पुं [गल] १ गाल, कपोल (दे २, ८१ उवा)। २ हाथी का गण्ड-स्थल, कुम्भ स्थल (ड्) मसूरिया श्री ["मसूरिका] गाल का उपधान (जीत)
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न [दे] १ स्फटिक मणि (प्रायः पि २१६)
गल्लत्थ देखो गलत्थ । गल्लत्थइ (षड् ) ।
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