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खाण-खिखिणिया
पाइअसहमहण्णवो प्र पारणेण अतह गहिरो मंडलो अडअरणाए' ७ वि. कटु या चरपरा स्वादवाला, कटु चीज खालिअ वि [क्षालित] धौत, धोया हुआ (गा ६६२, पउम १४, १३६)।
(पएण १७–पत्र ५३०)। ८ खारो चीज, (ती १३)। खाण न [ख्यान] कथन, उक्ति (राज)। नमकीन स्वादवाली वस्तु (भग ७, ६ सूत्र १, खावण न [ख्यापन] प्रतिपादन (पंचा १०, खाणि स्त्री [खानि] खान, पाकर (दे २, | ७)। तउसी [त्रपुषी] कटु पुषी, वनस्प ७)। ६६; कुमाः सुपा ३४८)।
ति-विशेष (पएण १७)। तिल्ल न ["तैल] खावणा स्त्री [ख्यापना] प्रसिद्धि, प्रकथन; खाणि वि [खानित] खुदवाया हुआ (हे खारे से संस्कृत तैल (पएह २, ५)। 'मेह पुं 'अक्खाणं खावरणाविहाणं वा' (विसे)।
[मेघ क्षार रसवाले पानी की वर्षा (भग ७, | खाबियंत वि [खाद्यमान] जिसको खिलाया खाणी देखो खाणि (पान)।
६)। वत्तिय वि [पात्रिक] क्षार-पात्र में | जाता हो वह, 'कागरिणमसाई खावियंत' खाणु । पुं[स्थाणु] स्थाणु, छा वृक्ष, अचल जिमाया हुआ। २ क्षार-पात्र का आधार भूत (विपा १, २-पत्र २४)।। खाणुय (पएह २,५; हे २,७: कस)।
(प्रौप) । वत्तिय वि [वृत्तिक] खार में खावियग वि [खादितक] जिसको खिलाया खादि देखो खाइ = ख्याति (संक्षि ६)।
फेंका हुआ, खार से सींचा हुआ (प्रौप; दसा | गया हो वह, 'कागरिणम सखावियगा' (पोप)। खाम सक [क्षमय ] खमाना, माफी मांगना।
६) । वावी स्त्री ["वापी] क्षार से भरी हुई खावेंत वि [ख्यापयन् ] प्रख्याति करता खामेइ (भग)। कर्म, खामिजइ, खामोअइ | वापी, कूमा (पएह १, १)।
हुआ, प्रसिद्धि करता हुआ (उप ८३३ टी)। (हे ३, १५३) । संकृ. खामेत्ता (भग)। खारंफिडी स्त्री [दे] गोधा, गोह, जन्तु-विशेष
खास प्रक[कास् ] खांसना, खाँसी खाना । खाम वि [क्षाम] १ कृश, दुर्बल; 'खामपं (दे २, ७३)।
खासई (तंदु १६)। डुकवोलं' (उप ६८६ टी पात्र)। २ क्षीण,
खारदूसण वि [खारदूषण] खरदूषण का, प्रशक्त (दे ६,४६)।
खास पु [कास] रोग-विशेष, खाँसी की खरदूषण-सम्बन्धी (पउम ४५, १५)।
बीमारी, खांसी (विपा १, १; सुपा ४०४; खामण न [क्षमण] खमाना (श्रावक ३६५ । खारय न दि] मुकुल, कली (दे २, ७३) ।
सण)। खामणा स्त्री [क्षमणा] क्षमापना, माफी खारायण [क्षारायण] १ ऋषि-विशेष ।
खासि वि [कासिन्] खांसी का रोगवाला मांगना, क्षमा-याचना (सुपा ५६४ विवे २ माण्डव्यगोत्र के शाखाभूत एक गोत्र (ठा।
(सुपा ५७६)। ७६)। खामिय वि [क्षमित] १ जिसके पास क्षमा
खासिअ न [कासित] खाँसी, खाँसना (हे १, खारि स्त्री [खारी] एक प्रकार की नाप, ३४ मांगी गई हो वह, खमाया हुआ (विसे २३८८;
१८१)। सेर की तौल (गा ८१२)। हे ३, १५२)। २ सहन किया हुप्रा । ३
खासिअ पु[खासिक] १ म्लेच्छ देश विशेष । खारिंभरी स्त्री [खारिम्भरी खारी-परिमित विलम्बित, विलम्ब किया हुआ; 'तिरिण
२ उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति (पएह १, वस्तु जिसमें घट सके ऐसा पात्र भर दूध देने- । अहोरता पुण न खामिया मे कयंतेण (पउम
। १-पत्र १४; इक; सूत्र १, ५, १) ।
वाली (गा ८१२)। ४३, ३१ हे ३, १५३)। खारिक न [दे] फल-विशेष, छुहारा (सिरि
खि प्रक [क्षि क्षीण होना। कर्म, 'खिज्जइ खाय पुं[खाद] पाँचवी नरक-भूमि का एक ११९६)।
भवसंतती' (स ६८४)। खीयंति, खीयंते
(कम्म ६,६६, टी)। नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)। खारिय वि [क्षारित] १ सावित, झराया
खिइ स्त्री [क्षिति] पृथिवी, धरा (पउम २०, खायर देखो खाइर (कर्म ६)। हुआ (वव ६)। २ पानी में घिसा हुआ
१५६; स ४१६)। 'गोयर पुं [गोचर] खार ( [क्षार] १ एक नरक-स्थान (देवेन्द्र (भवि)।
मनुष्य, मानुष, प्रादमी (पउम ५३, ४३)। ३०) २ भुजपरिसपं को एक जाति (सूम २, खारी देखो खारि (गा ८१२; जो १)।
पइट्ठ न [प्रतिष्ठ] नगर-विशेष (स ६) । ३, २५) । ५ बैर, दुश्मनी (सुख १, ३)।
। खारूगणिय '
खारुगणिय पुं[क्षागणिक] १ म्लेच्छ देशविशेष । २ उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति
पाठ्य न [प्रतिष्ठित १ इस नाम का डाह पुंन [दाह] क्षार पकाने की भट्ठी
एक नगर (उप ३२० टीः स ७) । २ राजगृह (पाचा २, १०, २) । 'तंत पुन [तन्त्र]| (भग १२, २)।
नाम का नगर, जो आजकल बिहार में 'राजआयुर्वेद का एक भेद, वाजीकरण (ठा ८खारोदा स्त्री [क्षारोदा] नदी-विशेष (राज)।
गिर' नाम से प्रसिद्ध है (ती १०)। सार पत्र ४२८)।
खाल सक[क्षालय ] धोना, पखारना, पानी [°सार] इस नाम का एक दुर्ग (पउम खार पुं [क्षार] १ क्षरण, झरना, संचलन
से साफ करना। कृ.खालणिज्ज (उप ३२६)। ८०,३)। (ठ)। २ भस्म, खाक (णाया १, १२)। खाल स्त्रीन [दे] नाला, मोरी, गंदगी निकलने खिंख अक [सिङ्घय ] खिखि भावाज करना। ३ खार, क्षार; लवण-विशेष (सूम १,७)। का मार्ग (ठा २, ३) स्त्री. खाला (कुमा)। खिखेइ । वक़. खिंखियंत (सुख २, ३३)। ४ लवण, नोन (बृह ४) । ५ जानवर-विशेष खालण न [क्षालन] प्रक्षालन, पखारना (सुपा खिंखिणिया स्त्री [किङ्किणिका] क्षुद्र घण्टिका (पएण १)। ६ सजिका, सजी (सूम १,४,२) ३२८)।
(उवा)।
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