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पाइअसद्दमहण्णवो
खग्गि-खण खग्गि पुं [खगिन् जन्तु-विशेष, गेंडा खट्ट न [दे] १ तीमन, कढ़ी, झोर (दे २,६७) खडक्खड पुं [खटखट] खट-खट आवाज (कुमा)।
। २ वि. खट्टा, अम्ल (पएण १-पत्र २७ । आंग्गअ [दे] ग्रामेश, गांव का मुखिया जीव १)। 'मेह पं [मेघ] खट्टे जल की खडक्खर देखो छडक्खर (सम्मत्त १४३) । (दे २, ६६)। वर्षा (भग ७, ६)।
खडखड j [खडखड] देखो खाडखड खग्गी स्त्री [खड्गी] विदेह वर्ष की नगरी- खट्रंग न [दे] छाया, आतप का प्रभाव (दे (इक)। विशेष (ठा २, ३)।
२,६८)।
खडखडग वि [दे] छोटा और लम्बा (राज)। खग्गूड वि [दे] १ शठ-प्राय, धूर्त्त-सदृश खटंग न [खट्वाङ्ग] १ शिव का एक आयुध
खडट्रोबिल पुंदे] एक म्लेच्छ जाति (मृच्छ (ोघ ३६ भा)। २ धर्मरहित, नास्तिक- (कुमा) । २ चारपाई का पाया या पाटी। ३
१५२)। प्राय (प्रोघ ३५ भा)। ३ निद्रालु । ४ रस- प्रायश्चित्तात्मक भिक्षा मांगने का एक पात्र ।
खडणा स्त्री [३] गैया, गौ (गा ६३६ अ)। लम्पट (बृह १)। ४ तान्त्रिक मुद्रा-विशेष;
खडहड पुं[खटखट] साँकल वगैरह की 'हत्थट्ठियं कवालं, न मुयइ नूणं खणंपि खट्टगं। खच सक [खच् ] १ पावन करना, पवित्र
आवाज, खटत्कार (सुपा ५.२)।
खडहडी स्त्री [दे] जन्तु-विशेष, गिलहरी, करना । २ कसकर बांधना। खचइ (हे ४. सा तुह विरहे बालय, बाला कावालिणी जाया'
गिल्ली (दे २,७२)।
(वजा ८८)। ८६)।
खडिअ देखो खट्टिअ (गा ६८२ अ)। खचिअ देखो खइअ = खचित (कुमा)। ३
खट्टक्खड पुं [खट्वाक्षक] रत्नप्रभा नामक पृथिवी का एक नकरकावास, 'कालं काऊण
खडिअ देखो खलिअ (गा १६२ अ)। पिञ्जरित (कप्प)। खञ्चल्ल पुं [दे] ऋक्ष, भल्लूक, भालू (दे २, रयणप्पभाए पुढवीए खट्टक्खडाभिहाणे नरए
खडिअ पुं[दे] दवात, स्याही का पात्र (धर्मवि पलिग्रोवमाऊ चेव नारगो उववन्नोत्ति' (स
खडिआ श्री [खटिका] खड़ी, लड़कों को खच्चोल पुं[दे] व्याघ्र, शेर (दे २, ६६)।
लिखने की खड़ी या खड़िया (कप्पू) । खज्ज पुखर्ज] वृक्ष-विशेष (स २५६)। खट्टा स्त्री [खट्वा] खाट, पलंग, चारपाई खज्ज वि [खाद्य] १ खाने योग्य वस्तु (पण्ह (सुपा ३३७; हे १, १६५) मल्ल [मल्ल] खडी स्त्री [खटी] ऊपर देखो (प्रारू)। १, २)। २ न. खाद्य-विशेष (भवि)।
बीमारी की प्रबलता से जो खाट से उठ न खडुआ स्त्री [दे] मौक्तिक, मोती (दे २, ६८)। खज्ज वि [क्षय्य जिसका क्षय किया जा सकता हो वह (बृह १)।
खडुक्क अक [आविस् + भू] प्रकट होना, खदिअ) [दे. खट्रिक] खटीक, सौनिक, सके वह (षड्)।
उत्पन्न होना । खड्कंति (वजा ४६)। खट्टिक, कसाई (गा ६८२, सून २,२० दे खज्जंत देखो खा।
खडुक्क । पुंस्त्री [दे] मुंड सिर पर उंगली
२, ७०)। खज्जग देखो खज्ज = खाद्य (भग १५)।
खडुग का आघात (वव १) । खड पुं [दे] एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२)। खज्जमाण देखो खा।
खड्ड सक [मृद्] मर्दन करना । खड्डइ (हे ४, खड न [दे] तृण, घास (दे २,६७; कुमा)। खज्जय देखो खज्ज = खाद्य (पउम ६६,१६)। खडइअ वि [दे] संकुचित, संकोच-प्राप्त (दे
१२६)। खजअ विद] १ जीर्ण, सड़ा हुना। २
२, ७२)।
खड्ड । न [दे] १ श्मश्र, दाढ़ी-मूंछ (दे २, उपालब्ध, जिसको उलाहना दिया गया हो वह खडंग न [पडङ्ग] छः अंग, वेद के ये छः
खड्डग ६६; पाय)। २ बड़ा, महान् (विसे (दे २, ७८)। अंग-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष,
२५७६ टी)। ३ गत्तं के प्राकारवाला (उवा)। खजिर (अप) वि [खाद्यमान] जो खाया । छन्द, निरुक्त । वि वि [वित् ] छहों
खड्डा स्त्री [दे] १ खानि, आकर (दे २,६६)। गया हो वह (सण)। अंगों का जानकार (पि २६५)।
२ पर्वत का खात, पर्वत का गत्तं (दे २,६६)। खाज स्त्री [खर्जू ] खुजली, पामा (राज)। खडक्य पुन [खटत्कृत] पाहट देना, ध्वनि |
३ गतं, गड्डा, खड्डा (सुर २,१०३; स १५२;
सुपा १५ श्रा १६; महा: उत्त २, पंचा ७)। खजूर [खजूर] १ खजूर का पेड़ (कुमा के द्वारा सूचना, सिकड़ी वगैरह की पावाज; खडि वि मिदित] जिसका मदन किया उत ३४) । २ न. खजूर का फल (पउम ४१, । 'वियडकवाडकडाणं खडकयो निसुरिणो तत्तो'
गया हो वह (कुमा)। ६: सुपा ५७)। (सुपा ४१४)।
खड़ ड्या स्त्री [दे] ठोकर, प्राघात; 'खड् डुया खातरी स्त्री खिजूरी] खजूर का गाछ (पान; खडकार पंखटत्कार] ऊपर देखो (सुर मे चवेडा में' (उत्त १, ३८)। पराग १)। ११, ११२; विक्र ६०)।
खड्डोलय पुंदे] खड्डा, गत्तं, गड्ढा (स ३६३) । खजोअ [दे] नक्षत्र (दे २, ६६)। खडक्किआ। स्त्री [दे] खिड़की, छोटा द्वार खण सक [खन खोदना । खणइ (महा) । खज्जोअ पुं[खद्योत] कीट-विशेष, जुगनू, खडक्की (कप्पू; महाः २, ७१)। कर्म, खम्मइ, खणिज्जइ (हे ४, २४४) । (सुपा ४७; णाया १,८)।
| खडकिय देखो खडक्य (धर्मवि ५६)। वकृ. खरणेमाण (सुर २, १०३)। संकृ.
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