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खमावणया। स्त्री [क्षमणा] खमाना, माफी खमावणा माँगना (भग १७, ३, राज)। खमाविय वि [क्षमित] माफ किया हुआ (हे ३, १५२; सुपा ३६४)। खमिय वि [क्षमित] माफ किया हुआ (कुप्र १६)। खम्म देखो खण = खन् । खम्मइ (प्राकृ ६८)। खम्मक्खम पं दे] १ संग्राम, लड़ाई । २ मन का दुःख । ३ पश्चात्ताप का निश्वास (दे २, ७६)। खय देखो खच । खाइ (षड्)। खय प्रक [क्षि क्षय पाना, नष्ट होना । खगइ (षड्)। खय देखो खग (पान) । ३ आकाश तक ऊँचा पहुँचा हुआ (से ६,४२)। राय पुं [ राज] पक्षियों का राजा, गरुड-पक्षी (पान) । वइ
[पति] गरुड़-पक्षी (से १५, ५०)। खय न [क्षत] २ व्रण, घाव; 'खारक्खेवं व खए (उप ७२८ टी)। २ वि. वणित, घवाया हुआः 'सुगमोव्व कीडखो' (श्रा १४; सुपा ३४६; सुर १२, ६१)। यार स्त्री पुं[चार ] शिथिलाचारी साधु या साध्वी (वव ३)। खय वि [खात] खोदा हुआ (पउम ६१,
४२)। खय पुं [क्षय] १ क्षय, प्रलय, विनाश (भग ११, ११)। २ रोग-विशेष, राज-यक्षमा (लहुअ १५)। कारि वि [कारिन् नाशकारक (सुपा ६५५) । काल, गाल पुं [ काल] प्रलय-काल, (भविः हे ४,३७७)। 'ग्गि पुंनि ] प्रलय-काल की प्राग (से १२, ८१)। 'नाणि पुं[ज्ञानिन्] केवलज्ञानी, परिपूर्ण ज्ञानवाला, सर्वज्ञ (विसे ५१८)। समय पुं[समय प्रलय-काल (लहुअ २)। खयंकर वि [क्षयकर] नाश-कारक (पउम ७, ८१६६, ३४७ पुफ्फ ८२)। खरतकर वि [क्षयान्तकर ] नाश-कारक (पउम ७, १७०)। खयर पुंस्त्री [खचर] १ आकाश में चलनेवाला, पक्षी (जी २०)। २ विद्याधर, विद्या बल से आकाश में चलनेवाला मनुष्य (सुर
पाइअसहमहण्णवो
खमावणया-खरा ३,८८; सुपा २४०)। राय [ राज] | खर वि [क्षर] विनश्वर, अस्थायी (विसे विद्याधरों का राजा (सुपा १३४)। | ४५७)। खयर देखो खइर - खदिर (अन्त १२; सुपा |
खरंट सक [खरण्टय ] १ धूत्कारना, निभं५६३)।
त्संना करना । २ लेप करना। खरंटए (सूक्त खयरक वि [खादिरक] खदिर-सम्बन्धी । स्त्री.
खरंट वि [खरण्ट] १ धूत्कारनेवाला, तिरका (सुख २, ३)।
स्कारक । २ उपलिप्त करनेवाला । ३ अशुचि खयाल पुन [दे] वंश-जाल, बाँस का वन पदार्थ (ठा ४, १; सूक्त ४६)। (भवि)।
खरंटण न [खरण्टन] १ निर्भर्त्सन, परुषखर अक [क्षर ] १ झरना, टपकना। २ भाषण (वव १)। २ प्रेरणा (ोघ ४० भा)। नष्ट होना । खरइ (विसे ४५५) ।
खरंटणा स्त्री [खरण्टना] ऊपर देखो (प्रोष खर वि [खर] १ निष्ठुर, रुखा, परुष, कठोर
७५)। (सुर २, ६ दे २, ७८; पान)। २ पुंस्त्री..
खरंटिअ वि [खरग्टित] निर्भसित (कुप्र गर्दभ, गधा (पएह १, १ पउम ५६, ४४)।
३१८)। ३ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)। ४ न. तिल का! खरसृया स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (संबोध तेल (ोघ ४०६) । केट न [ कण्ट बबूल - वगैरह की शाखा (ठा ३, ४)। कंड न खरड [दे] हाथी की पीठ पर बिछाया
काण्डा रत्नप्रभा पृथिवी का प्रथम कारा जाता पास्तरण (पब ८४)। अंश-विशेष (जीव ३)। कम्म न [कर्मना खरड सक [लिप्] लेपना, पोतना । संकृ. जिसमें अनेक जीवों की हानि होती हो ऐसा
खरडिवि (सुपा ४१५)। काम, निष्ठुर धंधा (सुपा ५०५)। कम्मिअ खरड पुखरट एक जघन्य मनुष्य-जाति, वि [कर्मिन्] १ निष्ठर कर्म करनेवाला। 'प्रह केरगाइ खरडेणं किरिण हट्टम्मि वरुणव२ पुं. कोतवाल, दाण्डपाशिक (ोघ २१८)। णियस्स' (सुपा ३६२)। "किरण पुं[किरण] सूर्य, सूरज (पिंगः खरडिअ वि [दे] १ रूक्ष, रुखा । २ भग्न, सण)। दूसण पुं[दूषण] इस नाम का नष्ट (दे २,७६)। एक विद्याधर राजा, जो रावण का बहनोई खरडिअ वि [लित] जिसको लेप किया गया था (पउम १०, १७) । नहर पुं[ नखर] हो वह, पोता हुआ (पोष ३७३ टी)। श्वापद जन्तु, हिंसक प्राणी सुपा १३६; खरण न [दे] बबूल वगैरह की कण्टक-मय ४७४)। निस्सण पुं [°नि:स्वन] डाली (ठा ४, ३)। इस नाम का रावण का एक सुभट खरफरुस पुं [खरपरुष] एक नरक स्थान (पउम ५६, ३०)। "मुह पुं [मुख] (देवेन्द्र २७)। १ अनार्य, देश-विशेष । २ अनार्य देश-विशेष खरय पु [खरक] भगवान महावीर के कान का निवासी (पएह १, ४) । मुही स्त्री में से खीला (मांस कील) निकालनेवाला एक [मुखी] १ वाद्य-विशेष (पउम ५७, २३; वैद्य (चेइय ६६)। सुपा ५० औप)। २ नपुंसक दासी (वव खरय पु [दे] १ कर्मकर, नौकर (मोष ६) । यर वि [तर] १ विशेष कठोर । ४३८)। २ राहु (भग १२, ६)। (सुपा ६०६) । २ पुं. इस नाम का एक खरहर अक [खरखराय ] 'खर-खर' आवाज जैन गच्छ (राज)। सन्नय न [संज्ञक] करना । वकृ. खरहरंत (गउड) । तिल का तेल (मोघ ४०६) । साविआ स्त्री खरहिअ पुंदे] पौत्र, पोता, पुत्र का पुत्र [शाविका] लिपि-विशेष (सम ३५)। (दे २, ७२)। स्सर ५ [स्वर] परमाधार्मिक देवों की खरा स्त्री [खरा] जन्तु-विशेष, नेवला की तरह एक जाति (सम २६)।
भुज से चलनेवाला जन्तु-विशेष (जीव २)।
खरय पु [खरकामा
[मुखी
परह १, ४)
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