________________
२४५
किरणिल्ल-किलिस्सिअ
पाइअसहमहण्णवो किरणिल्ल वि [किरणवत् ] किरणवाला, | किरोलय न [किरोलक] फल-विशेष, किरो-किलिकिंच अक [रम् ] रमण करना, क्रीड़ा तेजस्वी (सुर २, २४२)।
। लिका वल्ली का फल (उर ६, ५)। करना । किलिकिंचइ (हे ४, १६८) । किराड)[किरात] १ अनार्य देश-विदेश | किल देखो किर%किल (हे २, १८६ गउड; किलिकिंचिअ न [रत] रमण, क्रीड़ा, संभोग किराय) (पव १४८) । २ भील, एक जंगली कुमा) ।
(कुमा)। जाति (सुर २, २७; १८०; सुपा ३६१; हे किलंत वि [क्लान्त] खिन्न, श्रान्त (षड्)। किलिकिल प्रक [किलकिलाय ] 'किल-किल' १,१८३)।
किलंजन [किलिञ्ज] बांस का एक पात्र, आवाज करना । वकृ. किलिकिलंत (उप किरात (शौ) देखो किराय (प्राकृ ८६)। जिसमें गैया वगैरह को खाना खिलाया जाता १०३१ टी)। किरि देखो किर=किल (सिरि ८३२, ८३४)। है (उबा)।
किलिकिलि न [किलिकिलि] इस नाम का किरि पुं किरि] भालू की आवाज: 'कत्थइ किलंज न [किलिञ्ज] तृण-विशेष (धर्मवि
| एक विद्याधरनगर (इक)। किरित्ति कत्थइ हिरित्ति कत्थइ छिरित्ति १३५; १३६)।
किलिकिलिकिल देखो किलकिल । वकृ. रिच्छाणं सद्दों (पउम ६४, ४५)।
किलकिल अक [किलकिलाय ] “किल- फिलिकिलिकिलंत (पउम ३३, ८)। किरि किरि] सूकर, सूअर (गउड)। किल' पावाज करना, हँसनाः 'किलकिलइ किलिगिलियन [किलिकिलित] 'किल-किल' किरिआण देखो कयाण 'जम्मतरगहिअपुन्न
ब्ब सहरिसं मणिकंचीकिकिरिगरिवेण' (कप्पू)। आवाज करना, हर्ष-द्योतक ध्वनि-विशेष (स किरिमाणो' (कुलक २१)।
किलकिलाइय न [किलकिलायित] 'किल- ३७०: ३८५)। किरिइरिया । स्त्री [दे] १ कर्णोपकणिका,
किल' ध्वनि, हर्ष-ध्वनि (प्रावम)। किलिट्ठ वि [क्लिष्ट] १ क्लेश-युक्त (उत्त ३२)। किरिकिरिआए एक कान से दूसरे कान गई किलणी स्त्री [दे] रथ्या, गली (दे २, ३१)। २ कठिन, विषम । ३ क्लेश-जनक (प्राप्रा हे हुई बात. गप । २ तहल, कौतुक (दे २, | किलम्म अक [क्लम् ] क्लान्त होना, खिन्न २.१०६ उव)।
होना । किलम्मइ (कप्पू)। किलम्मसि (वजा किलिण्ण देखो किलिन्न (स्वप्न ८५)। किरिकिरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, बाँस |
१२)। वकृ. किलम्मत (पि १३६)। किलित्त वि [क्लुप्त] कल्पित, रचित (प्रातः प्रादि की कम्बा-लकड़ी से बना हुआ एक
किलाचक्क न [क्रीडाचक्र] इस नाम का षड़: हे १, १४५)। प्रकार का बाजा (पाचा २, ११, १)। एक छन्द--वृत्त (पिंग)।
किलित्ति स्त्री [क्लूप्ति] रचना, कल्पना किरित्तण देखो कित्तण (नाट-माल ६७)।
किलाड पु[किलाट] दूध का विकार-विशेष, (पि ५६)।
मलाई (दे २, २२)। किरिया स्त्री [क्रिया] १ क्रिया, कृति, व्या
किलिन्न वि [क्लिन्न] भाद्र', गीला (हे १, किलाम सक [क्लमय ] क्लान्त करना, खिन्न पार, प्रयत्न (सूत्र २, १; ठा ३, ३)। २
१४५; २, १०६)। करना, ग्लानि उत्पन्न करना। किलामेज किलिम्म देखो किलम्म । किलिम्मइ (पि शास्त्रोक्त अनुष्ठान, धर्मानुष्ठान (सूत्र २, ४
(पि १३६) । वकृ.किलामेंत (भग ५, ६)। पव १४६) । ३ सावध व्यापार (भग १७,
। १७७)। वकृ. किलिम्मत (से ६, ८०, ११,
कवकृ. किलामीअमाण (मा ४६)। १)। ४'ट्ठाण न [ स्थान] कर्मबन्ध का
५०)। किलाम पुलम खेद, परिश्रम, ग्लानिः किलिम्मिअ वि [दे] कथित, उक्त (दे २, कारण (सूत्र २, २; प्राव ४)। वर वि 'खमणिजो भे किलामो' (पडि;विसे २४०४)।
३२)। [°पर] अनुष्ठान-कुशल (षड् )। वाइ वि
किलामणया स्त्री [क्लमना] खिन्न करना, किलिब देखो कीव (वय २; मै ४३)। [°वादिन] १ आस्तिक, जीवादि का अस्तित्व
उत्पन्न करना (भग ३, ३)। माननेवाला (ठा ४, ४) । २ केवल क्रिया से
किलिस अक [क्लिश् ] खेद पाना, थक किलामणा स्त्री [क्लमना] क्लम, क्लेश ही मोक्ष होता है ऐसा माननेवाला (सम
जाना, दुःखी होना । वकृ. किलिसंत (पउम (महानि ४)। .१०६)। "विसाल न [विशाल] एक
२१, ३८)। किलामिअ देखो क्लिंत (अणु १३३)। जैन ग्रन्थांश, तेरहवाँ पूर्व-ग्रन्थ (सम २६)।
किलिस देखो किलेस; 'मिच्छत्तमच्छभीयाण, किलामिअ वि [क्लमित] खिन्न किया हुआ, किरीड ([किरीट] मुकुट, शिरो-भूषण
हैरान किया हुआ, पीड़ित; 'तराहाकिलामि
। किलिससलिलम्मि बुड्डाणं' (सुपा ९४)। (पान)।
अंगो' (पउम १०३, २२, सुर १०,४८)। किालासवि [क्लाशत प्रायासित, क्लश. किरीडि [किरीटिन्] अर्जुन, मध्यम पाण्डव किलिंच न [दे] छोटी लकड़ी, लकड़ी का प्राप्त (स १४६) । (वेणी १९२)।
टुकड़ा। दंतंतरसोहणयं किलिचमित्तंपि अवि-किलिस्स देखो किलिस = क्लिश । किलिस्सइ किरीत वि [कीत] कीना हुघा, खरीदा हुमा दिन्न' (भत्त १०२ पाप दे २, ११)। (महा: उव)। वकृ. किलिस्संत (नाट(प्राप्र)।
किलिंचिअन [दे] ऊपर देखो (गा ८०)। माल ३१)। किरीय ([किरीय] १ एक म्लेच्छ देश । २ किलिंत देखो किलंत (नाट-मृच्छ २५: पि किलिस्सिअ वि [क्लिष्ट] क्लेश-प्राप्त, क्लेशउसमें उत्पन्न म्लेच्छ जाति (राज)।
युक्त (उप पृ ११६)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org