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कोल-कोस
पाइअसहमहण्णवो
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की
ला, शोरगुलवाला महालक] कोला
विशेष, जहाँ श्रीऋषभदेव भगवान का मंदिर का प्रस्फुट शब्द (दे २, ५०; हेका १०५ कोल्लापुर न [कोल्लापुर] दक्षिण देश का एक है, यह नगर दक्षिण में है (ती ४५) । पाल। उत्त)।
नगर, महालक्ष्मी का स्थान (ती ३४)। पुं[पाल] देव विशेष, धरणेन्द्र का लोकपाल कोलाहलिय वि [कोलाहलिका कोलाहल- कोल्लासुर पुंकोल्लासुर] इस नाम का एक (ठा ३,१-पत्र १०७)। "सुणय, सुणह वाला, शोरगुलवाला (पउम ११७, १६)। दैत्य (ती ३४)। पुंस्त्री [ शुनक] १ बड़ा शूकर, सूअर की कोलिअ पुं [दे] एक अधम मनुष्य जाति कोल्लुग [दे] देखो कोल्हुअ (वय १; बृह एक जाति, जंगली वराह (माचा २, १, (सुख २, १५)। ५)। २ शिकारी कुत्ता (पएण ११)। कोलिअ पुं [दे] कोली, तन्तुवाय, जुलाहा, कोल्हाहल न [दे] फल-विशेष, बिम्बी-फल स्त्री. "णिया (पराण ११)। वास पुन कपड़ा बुननेवाला (दे २, ६५: पंदि; पव २; (दे २, ३६)। [वास] काष्ठ, लकड़ी (सम ३६)। उप पृ २१०) । २ जाल का कीड़ा, मकड़ा कोल्हुअ ' [दे] १ शृगाल, सियार (दे २, कोल वि [कौल] १ शक्ति का उपासक, (दे २,२५, पामा श्रा २० आव ४ बृह १)। ६५, पामः पउम ७, १७ १०५, ४२)।
तान्त्रिक मत का अनुयायी। २ तान्त्रिक मत कोलित्त न [दे] उल्मुक, लूका (दे २, ४६)। २ कोल्हू, चरखी, ऊख से रस निकालने का से संबन्ध रखनेवाला, 'कोलो धम्मो कस्स णो कोलिन्न न [कौलीन्य] कुलीनता, खानदानी कल (दे २, ६५; महा)। भाइ रम्मो' (कप्पू)। ३ न. बदर-फल- (धर्मवि १४६)।
कोव सक [कोपय् ] १ दूषित करना। संबन्धी (भग ६, १०)। °चुण्ण न [°चूर्ण] कोलीकय वि [क्रोडीकृत] स्वीकृत, अंगीकृत । २ कुपित करना । कोवेइ (सूअनि १२५), बेर का चूर्ण, बेर का सत्तू (दस ५, १)। (गउड)।
__ कोवइज्ज (कप्र ६४)। "द्विय न [स्थिक] बेर की गुठिया या कोलीण न [कौलीन] १ किंवदंती, लोक-वार्ता,
कोव पुंकोप] क्रोध, गुस्सा (दि १,६; गुठली (भग ६, १०)। जन-श्रुति (मा ३७) । २ वि. वंश-परंपरागत,
प्रासू १७५) । कोलंब पुं[दे] पिठर, स्याली (दे २, ४७३ कुलक्रम से पायात । ३ उत्तम कुल में उत्पन्न ।
कोवण वि [कोपन] क्रोधी, क्रोध-युक्त (पामा पान)। २ गृह, घर (दे २, ४७) । ४ तान्त्रिक मत का अनुयायी (नाट-महावी
सुपा ३८५ सम ३४७; स्वप्न ८२)। कोलंब पुं[कोलम्ब] वृक्ष की शाखा का नामा १३३)।
कोवाय पुंकोपैक अनार्य देश-विशेष (पव हुमा अग्र भाग (अनु ५)।
कोलीर न [दे] लाल रंग का एक पदार्थ, । २७४)। कोलगिणी स्त्री [कोली, कोलकी] कोल- कुरुविन्द, 'कोलीररत्तणयणे (दे २, ४६)। कोवासिअ देखो कोआसिय (पास)। जातीय स्त्री (आचू ४)।
कोलुण्ण न [कारुण्य दया, अनुकम्पा, करुणा कोवि वि [कोपिन् क्रोधी, क्रोध-युक्त (सुपा कोलघरिय वि [कौलगृहिक] कुलगृह- (निचू ११) । "पडिया, वडिया स्त्री २८१)श्रा २०)। संवन्धी, पितृगृह-संबन्धी, पितृगृह से संबन्ध | [प्रतिज्ञा] अनुकम्पा की प्रतिज्ञा (निचू | कोविअ वि [कोविद] निपुण, विद्वान्, अभिज्ञ रखनेवाला (उवा)। ११)।
(आचाः सुपा १३०; ३६२) । कोलज्जा स्त्री [दे] धान्य रखने का एक तरह कोलेज पुंदे] नीचे गोल और ऊपर खाई कोविअ वि [कोपित] १ कुद्ध किया हुआ। का गर्त (प्राचा २, १,७)।
के आकार का धान्य आदि भरने का कोठा
। २ दूषित, दोष-युक्त किया हुआ, 'वइरो किर कोलर देखो कोटर (गा ५६३ अ)। (प्राचा २, १, ७, १)।
दाहो वायणंति नवि कोवियं वयणं' (उव)। कोलब न [कौलव] ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध कोलेय [कौलेयक श्वान, कत्ता (सम्मत्त कोविआ स्त्री [दे] शृगाली, सियारिन (दे एक करण (विसे ३३४८)। १६०; धर्मवि ५२)।
२, ४६)। कोलाल वि [कौलाल] १ कुम्भकार संवन्धी। कोल्ल पुन [दे] कोयला, जली हुई लकड़ी का कोविआर [कोविदार] वृक्ष-विशेष (विक्र २ न. मिट्टी का पात्र (उवा)।
टुकड़ा (निचू १)।
। ३३)। कोलालिय' [कौलालिका मिट्टी का पात्र कोल्लइर न कोल्लकिर नगर-विशेष (पिंड कोविणी स्त्री [कोपिनी] कोप-युक्त स्त्री (श्रा बेचनेवाला (बृह २)। ४२७)।
१२)। कोलाह पुं[कोलाभ] साँप की एक जाति
कोल्लपाग न [कोल्लपाक] दक्षिण देश का एक कोशण (मा) वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम
नगर, जहाँ श्री ऋषभदेव का मन्दिर है (ती (प्राकृ १०२)। (पएह १)। ४५)।
कोस पु[दे] १ कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ कोलाहल दे] पक्षी की आवाज, पक्षी कोल्लर [दे] पिठर, स्थाली, थाली, थरिया | रक्त वस्न । २ समुद्र, जलधि, सागर (दे २, का शब्द (दे २,५०)।
(दे २, ४७)। कोलाहल पुं [कोलाहल] तुमुल, शोरगुल, | कोल्ला देखो कुल्ला (कुमा)।
कोस पु [क्रोश कोस, मार्ग की लम्बाई का रौला, हल्ला, बहुत दूर जानेवाला अनेक प्रकार कोल्लाग देखो कुल्लाग (अंत)।
परिमारण, दो मील (कप्पा जी ३२)।
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