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केवली - कोंड
केवली स्त्री [केवली ] ज्योतिष विद्या - विशेष (हास्य १२६, १२) ।
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केस पुं [केश] केश, बाल (उप ७६८ टी; यी २६) पुरन ["पुर] वेता पर स्थित एक विद्याधर नगर (इक) डोअ [लोच] केशों का उन्मूलन (भगः पराह २. ४) वाणिज न [वाणिज्य] देशवाले जीवों का व्यापार (भग ८, ५) । हत्थ, "हत्यय ["हस्त, क] केशपाश, समा रचित केश, संयत बाल (कप्प; पात्र ) । केस देखो केरिस | स्त्री. सी ( केस देखो किलेस (उप ७६८६ २२) ।
केसर ु [कवीश्वर] उत्तम कवि, ( उप ७२८ टी) ।
१३१) । टी धम्म
श्रेष्ठ कवि
केसर पुंन [केसर ] एक देवविमान (देवेन्द्र १४२) ।
केसर पुंन [केसर] १ पुष्प-रेणु, पराग, किंजल्क (१,५०० ६ १३२ सह
के का बासरा से १,५०३ मुपा २१५३. उड
पान ) । ४ न. इस नाम का एक उद्यान, काम्पिल्य नगर का एक उपवन (उत्त १७) । ५. फल- विशेष (राज)। ६ सुवर्णं, सोना । ७ छन्द-विशेष (हे १, १४६) विशेष (११२२) ।
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कपड़े का टुकड़ा (भगः विसे २५५२ टी ) । केसरिल वि [ केसरवत् ] केसरवाला
(गउड) ।
केसरी स्त्री [केसरी] देखो केसरिआ 'तिदं
पाइअसदमद्दण्णवो
डकुंडियछत छलुयंकुसपवित्तय केस रीहत्यगए' (गाया १, ५ - पत्र १०५ ) । केसब पुं [केशव] १ अर्ध चक्रवर्ती राजा (सम ) । २ श्रीकृष्ण वासुदेव, नारायण ( गउड) ।
केसि वि [केशिन] कलेशयुक्त ३११४) ।
केसि पुं [केशि] १ एक जैन मुनि, भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य (रायः भग) २ असुरविशेष, श्रश्व के रूप को धारण करनेवाला एक दैत्य, जिसको श्रीकृष्ण ने मारा था ( मुद्रा २६२ ) ।
१२४) ।
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विकसना,
को देख कोक (दे २, ४५ टी केसरा श्री [केसरा] १ सिंह रह के स्वम को देको (उड स्कन्ध पर के बालों की सटा केसरा व सोहारों कोअंड देखो कोदंड (पास) । (प्रासू ५१; गउड; प्रामा) । कोआस [वि + कस्] केसरि [ केसरिन् ]१ सिंह, वनराज, खिलना कोमास (हे ४, १९५) । कण्ठीरव (उप ७२८ टी; से ८, ९४ परह कोआसिय वि [विकसित ] विकसित, प्रफुल्ल, १, ४) । २ हद - विशेष, नीलवन्त पर्वत पर खिला हुआ (कुमा नं २ ) । स्थित एक हद (सम १०४) । ३ नृप-विशेष, कोइल [कोकिल] १ कोयल, पिक (पग्रह भरत क्षेत्र के चतुर्थ प्रति वासुदेव (सम १, ४; उप २३३ स्वप्न ६१ ) । २ छन्द का १२४) दह [ह] ग्रह-विशेष (डा एक भेद (पिंग ) । च्य पुं [च्छद ] २, ३)। वनस्पति- विशेष, तलकण्टक ( पराण १७पत्र ५२७) ।
केसरिआ स्त्री [केसरिका] साफ करने का
फेसि]] [[शिन]] देसी फेसन (७५ [केशिन्] २० ) ।
केसिअ वि [केशिक] केशवाला, बाल-युक्त । स्त्री. आ (सूम १, ४, २) । केसी स्त्री [केशी] सातवें वासुदेव की माता (२०, १५४) । 'केसी स्त्री [केशी] केशवाली स्त्री, 'विइराणकेसी' (पा) ।
केसुअ देखो किंमुअ (हे १, २००६ केह (प) वि[ कीट] [केसा, किस तरह का ? (भक पड्मा ) ।
केहिं ( प ) अ. लिए, वास्ते (हे ४, ४२५) । [व] कपट, दम्भ (हे १, १, गा
कोइला भी [कित्य] श्री-कोयल, पिये 'कोइला पंचमं सर' (धरण पाच) कोइया स्त्री [दे] कोयला, काष्ठ के अंगार (दे २, ४ε)।
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कोआ श्री [दे] (दे २, ४८ पात्र ) ।
को उग ? न [कौतुक] १ कुतूहल, अपूर्वं वस्तु कोउय | देखने का अभिलाष (सुर २, २२६) । २ प्राश्चर्य, विस्मय ( वव १) । ३ उत्सव (राय) । ४ उत्सुकता, उत्कण्ठा (पंचव १) । ५ दृष्टि-दोषादि से रक्षा के लिए किया जाता काजल का तिलक, रक्षा बन्धनादि प्रयोग (रायः औप विपा १, १ परह १, २ धर्मं ३ ) । ६ सौभाग्य आदि के लिए किया जाता स्नपन विस्मापन, धूर, होम वगैरह कर्म (वव १,
गाया १, १४) ।
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की अग्नि, कपात
को
[िकदुष्ण] थोड़ा गरम (धर्मवि
को
११३) । उहल } देख १, २, ६६६ कुमाः प्रात्र) । 7 देखो कुऊहल ( हे १, ११७
कोहलि [कुतूहलिन] कुतुहली, कौतुकी, कुतूहल- प्रिय (कुमा) |
को ऊहल कोऊहल्ल } देखो कुऊहल (कुमा; पि ६१ ) । aaj [कोङ्कण] देश-विशेष ( स ४१२ ) । कौन [कोङ्कणक] १ मनायें देश-विशेष
(इक) । २ वि. उस देश में रहनेवाला ( परह १, १ जिसे १४९२) ।
['रिपु ]
कोंच पुं [क्रौन] १ इस नाम का एक अना देश (पराह १ १) २ विशेष (ठा ७)। ३ द्वीप - विशेष (ती ४५ ) । ४ इस नाम का एक असुर (कुमा) वि. को देश का निवासी (परह १, १ ) । रिवु पुं कात्तिकेय, स्कन्द (कुमा) । वर पुं ['वर ] इस नाम का एक द्वीप (धारा-टी) वीरग ["वीरक] एक प्रकार का जहाज (बृह १) । देखो कुंच । कोंचिगा श्री [कुचिका] ताली, कुंजी (उप १७०) ।
कोंचिय वि [कुचित ] श्राकुञ्चित, संकुचित पह १, ४) ।
कोंटलय न [ दे] १ ज्योतिष सम्बन्धी सूचना । २ शकुनादि निमित्त - सम्बन्धी सूचना 'पतंजणे कॉटला (घोष २२९ मा) । कोंठ देखो कुंठ (हे १. ११६ प ) 1 कोड देखो कु ( १, १०२) ।
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