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कूव-केक्कसी पाइअसद्दमण्णवो
२५९ मासाणं ममं कूर्व नो हब्वमागच्छइ, तए णं के वि [कियत् ] कितना ? 'चिरेण अ किन्नरेन्द्र और किंपुरुषेन्द्र की अग्र-महिषी का अहं देवा० जं तुमं वदसि तस्स प्राणाप्रोवा- [चिरेण] कितने समय में ? (अंत २४)। | नाम, इन्द्राणी-विशेष (भग १०, ५ णाया यवयरणणिद्देसे चिट्ठिस्सामि' (गाया १, - चिरं प्र[चिरं] कितने समय तक ? (पि । २)। "माल न [ माल] वैताब्य पर्वत पर १६-पत्र २१५); 'दोवईए कूवग्गाहा' (उप १४६) । चिरेण देखो चिरेण (पि स्थित इस नाम का एक विद्याधर-नगर (इक)। ६४८ टी; दे ६, ६२)।
१४६)। दूर न [दुर कितना दूर ? केउ पुं[दे] कन्द, काँदा ( दे २,४४)। कूव पुंकूप, क] १ कूप, कुआ, 'केदूरे सा पुरी लंका ? (पउम ४८, ४७)। केउ पुंन [केतु] एक देव विमान (देवेन्द्र कूवग गर्त (प्रासू ४५) । २ स्नेह-पात्र, महालय वि [°महालय] कितना बड़ा ? १३४)। कूवय ) कुतुप, कुप्पा (वजा ७२, उप
(गाया १, ८) । महालिय वि [°महत् ] केउग) पुं[केतुक] पाताल-कलश-विशेष ४१२) । ३ जहाजका मध्य स्तम्भ, जहापर पाल
कितना बड़ा ? (पएण २१)। महिड्ढिय केउय) (सम ७१, ठा ४,२–पत्र २२६)। बाधा जाता है (प्रौपा गाया १,८)। तुला
वि [महद्धिक] कितनी बड़ी ऋद्धिवाला केऊर पुन [केयूर] १ हाथ का आभूषणस्त्री [तुला] कूपतुला, टेकुवा (दे १, ६३; (पि १४६)।
विशेष, अङ्गद, बाजूबन्द (पान भग ६,३३)। ८७) । मंडुक्क पुं [मण्डूक] १ कूप का केअइ केकय देश-विशेष, जिसका प्राधा २ पुं. दक्षिण समुद्र का पाताल-कलश (पव मेढक । २ अल्पज्ञ मनुष्य, जो अपना घर भाग आर्य और आधा भाग अनार्य है, सिन्धु २७२)। छोड़ बाहर न जाता हो (निचू १)।
देश की सीमा पर का देश (इक); 'केयइ- केऊरपुत्त पुं[गाय तथा भैंस का बच्चा कूवय पुं [कूपक] देखो कूध = कूप (रयरण
अड्ढे च पारियं भरिणयं' (परण १; सत्त ६७ | (संक्षि ४७)। ३२)। स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन मुनि (अंत ।
केऊव पुं [केयूप] दक्षिण समुद्र का एक केअई स्त्री [केतकी] वृक्ष-विशेष, केवड़ा का पालाल-कलश (इक)। कूवर पुन [कूवर] १ जहाज का एक अवयव,
वृक्ष (कुमाः दे ८, २५)।
केंकाय अक [केकाय ] 'के-के आवाज जहाज का मुख-भागा 'संचुरिणयकट्ठकूवरा'
केअग । [केतक] १ वृक्ष-विशेष, केवड़ा __ करना। वकृ. 'पेच्छइ तमो जड़ागि केसायंत (णाया १, ६-पत्र १५७)। २ रथ या
केअय । का गाछ, केतकी (गउड)। २ महोपडियं' (पउम ४४,५४)। गाड़ी वगैरह का एक अवयव, युगन्धर (से
न. केतकी-पुष्प, केवड़ा का फूल (गउड) । ३ केसुअ देखो किंसुअ (कुमा)। १२, ८४)। चिन्ह, निशान (ठा १०)।
केकई स्त्री [कैकयी] १ राजा दशरथ की एक कृवल नदजवन-वस्त्र (द २,४३)।
श्री श्री कितकी12 केवडा का गाछ या रानी, केकय देश के राजा का कन्या (पउम कूविय न [कूजित अव्यक्त शब्द, 'तह कहवि
पौधा । २ केवड़ा का फूल (राय ३४)। २२, १०८ उप पृ ३७)। २ आठवें वासुदेव कुणइ सो सुरयकूवियं तप्पुरो जेण' (सुपा " केअल देखो केवल (अभि २६) ।
की माता (सम १५२)। ३ अपर-विदेह के ५८)। कूविय पुं[कूपिक] इस नाम का एक संनि
विभीषण-वासुदेव की माता (प्रावम) । केअव देखो कइअव - कैतवः 'जं के प्रवेण वेश-गांव (मावम)। पिम्म (गा ७४४)।
केकय पुंकेकय] १ देश-विशेष, यह देश केआ स्त्री [दे] रज्जु, रस्सी (दे २, ४४; कूविय विदे] मोष-व्यावर्तक, चुराई हुई
प्राचीन वाहीक प्रदेश के दक्षिण की ओर चीज की खोज कर उसे लानेवाला (णाया भग १३, ६)।
तथा सिंधु देश की सीमा पर स्थित है। २
इस देश का रहनेवाला (पराह १,१)। ३ १,१८-पत्र २३६)। २ चोर की खोज केआर पु[केदार] १ क्षेत्र, खेत (सुर २, करनेवाला (पाया १, १)।
७८) । २ पालवाल, क्यारी (पापः गा केकय देश का राजा (पउम २२, १०८)। कूविया स्त्री [कूपिका] १ छोटा कूप (उप ६६०)।
| केकसिया स्त्री [कैकसिका] रावण की माता ७२८ टी) । २ छोटा स्नेह-पात्र, कुप्पी (राज)।
केआरवाण पु[३] वृक्ष-विशेष, पलाश का का नाम (पउम ७, ५४)। कूवी स्त्री [कूपी] ऊपर देखो, 'एयानो अमय- पेड़ (दे २, ४५)।
केका स्त्री [केका] मयुर-वाणी। रव पुं कूवीरो' (उप ७२८ टी)।
केआरिआ स्त्री केदारिका] घासवाली व मयूर की आवाज, मयूर-शब्द (णाया कूसार पु[दे] गर्ताकार, गत्तं जैसा स्थान, जमीन, गोचर भूमि (कप्पू)।
१, १--पत्र २५)। खड्डाः 'कूसारखलंतपो ' (दे २, ४४, केउ पुं [केतु] १ ध्वज, पताका (सुपा केकाइय न [केकायित] मयूर का शब्द (सुपा पान)।
२२६)। २ ग्रह-विशेष (सुज २० गउड)। ७६)। कूहंड पु[कूष्माण्ड] व्यन्तर देवों की एक ३ चिन्ह, निशान (औप)। ४ तूल-सूत्र, रूई केक्कई देखो के कई (पउम ७६, २६)। जाति (पएह १, ४)।
का सूता (गउड)। खेत्तन [क्षेत्र मेघ-वृष्टि केकय देखो केकय (पब २७४)। के सक [की] कीनना, खरीदना । केइ, केइ से ही जिसमें अन्न पैदा हो सकता हो ऐसा केक्कसी स्त्री [कैकसी] रावण की माता (पउम (षड्)।
क्षेत्र-विशेष (प्राव ६)। मई स्त्री [मती]: १०३, ११४) ।
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