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पाइअसद्दमहण्णवो
कुहेडग-कूव 'कुहेडविजासवदारजीवी न गच्छई सरणं (विपा १, २)। जाल न [जाल] पोखे कूय प्रक[कूज ] अव्यक्त आवाज करना। तम्मि काले' (उत्त २०, ४५) । २ आभारणक, का जाल, फाँसी (उत्त १९) । तुला स्त्री | वकृ. कूयंत, कूयमाण (प्रोघ २१ भा विपा वक्रोक्ति-विशेष; 'तेसुन विम्यइ सयं पाह- [तुला झूठी नाप, बनावटी नाप (उवा
टुकुहेडएहि व' (पब ७३ टी; बृह १)। १)। पास न [पाश] एक प्रकार की कूय पुं [कूप] १ कूप, कुंआ (गउड)। २ घी, कुहेडग पुन [दे] अजमा (पंचा ५, ३०)। मछली पकड़ने का जाल (विपा १, ८)। तेल वगैरह रखने का पात्र, कुतुप (णाया १, कुहेडगा स्त्री [कुहेटका] कन्द-विशेष, °पओग पुं[प्रयोग] प्रच्छन्न पाप (प्राव १-पत्र ५८ प्रौप) । ददुर पुं [दर्दुर] पिण्डालु (पव ४)।
४)। लेह पुं [°लेख] १ जाली लेख, १ कूप का मेढ़क । २ वह मनुष्य जो अपना कूअ देखो कूव = कूप (चंड; हम्मीर ३०)। दूसरे के हस्ताक्षर-तुल्य अक्षर बना कर धोखे- घर छोड़ बाहर न गया हो, अल्पज्ञ (उप कूअमन [कूजन] १ अव्यक्त शब्द । २ वि. बाजी करना । २ दूसरे के नाम से भूठो चिट्ठी ६४८ टी । देखो कूव।
ऐसी आवाज करनेवाला (ठा ३, ३)। वगैरह लिखना (पडि; उवा) । वाहि पुं कूर वि [क्रूर] १ निर्दय, निष्कृप, हिंसक कूअणया स्त्री [कूजनता] कूजन, अव्यक्त ! [°वाहिन्] बैल, बलीवदं (प्राव ५)। (पएह १, ३)। २ भयंकर, रौद्र (गाया १, शब्द (ठा ३, ३)।
सक्ख न [°साक्ष्य भूठी गवाही (पंचा ८; सूत्र १, ७)। ३ पुं. रावरण का इस नाम कूइआ स्त्री [कूपिका कूई, छोटा कूप (चंड)। १)। सक्खि वि [साक्षिन भूठी साक्षी का एक सुभट (पउम ५६, २६) । कूइय न [कूजित] अव्यक्त आवाज (महाः देनेवाला (श्रा १४)। सक्खिज्ज न [सा
कूर पुंन [कूर] वनस्पति-विशेष (सूम २, ३, सुर ३, ४८)1
क्ष्य] झूठी गवाही (सुपा ३७५) । सामलि | १६) । कूइया स्त्री [कूजिका] किवाड़ आदि का स्त्री [शाल्मलि] १ वृक्ष-विशेष के आकार
| कूर न [कूर] भात, मोदन (दे २, ४३) । अव्यक्त आवाज (पिंड ३५६ टी)। का एक स्थान, जहाँ गरुड जातीय देवों का
गडुअ, गड् डअ पुं [गडुक एक जैन कूचिआ स्त्री [कूर्चिका] दाढ़ी-मूंछ का बाल निवास है (सम १३ ठा २, ३)। २ नरक
महर्षि (प्राचा; भाव ८)। (संबोध ३१)। स्थित वृक्ष-विशेष (उत्त २०)। गार न
कूर प्र[ईषत् ] थोड़ा, अल्प (हे २, १२६ कूचिया स्त्री [कूचिका] बुद्बुद, बुलबुला, ["गार] १ शिखर के आकारवाला घर षड्)। पानी का बुलका (विसे १४६७)।
(ठा ४, २) । २ पर्वत पर बना हुआ घर | कूरपिउड न दे] भोजन-विशेष, खाद्य-विशेष कूज अक [ कूज ] अव्यक्त शब्द करना ।
(पाचा २, ३, ३)। ३ पर्वत में खुदा हुआ (पावम)। कूजाहि (चारु २१)। वकृ. कूर्जत (मै २६)।
घर (निचू १२)। ४ हिंसा-स्थान (ठा ४,२)।
| कूरि वि [ऋरिन्] १ निर्दयी, कर चित्तवाला। कूजिअ न [कूजित अव्यक्त प्रावाज (कुमाः "गारसाला स्त्री [गारशाला] षड्यन्त्र
२ निर्दय परिवारवाला (पएह १, ३) । मै २६)। वाला घर, षड्यन्त्र करने के लिए बनाया
कूल न [दे] सैन्य का पिछला भाग (दे २, कूड सक [ कूटय् ] १ भूठा ठहराना । २
हुआ घर (विपा १, ३) । हच्च न [हित्य] अन्यथा करना। कूड़े (अणु ५० टी)।
४३ से १२, ६२)। पाषाण-भय यन्त्र की तरह मारना, कुचल
कूल न [कूल] तट, किनारा (पाय; णाया
डालना (भग १५)। कूड [दे. कूट] पाश, फाँसी, जाल (दे २,
१, १६) । धमग पुंध्मायक एक प्रकार ४३; रायः उत्त ५; सूत्र १, ५, २)। कूड न [कूट] १ पाश, जाल, फ.स, फंदा (सूत्र का वानप्रस्थ जो किनारे पर खड़ा हो आवाज कूड पुंन कूट] १ असत्य, छल-युक्त, झूठा १, ५, २, १८, राय ११४)। २ लगातार कर भोजन करता है (प्रौप) । वालग, 'कूडतुलकूडमारणे' (पडि)। २ भ्रान्ति-जनक २७ दिन का उपवास (संबोध ५८)।
वालय पुं [बालक एक जैन मुनि (आव; वस्तु (भग ७, ६)। ३ माया, कपट, छल, कूडग देखो कूड (प्रावम)।
काल)। दगा, धोखा (सुपा ६२७)। ४ नरक (उत्त कूण अक [कूणय ] संकुचित होना, संकोच
कूलकसा स्त्री [कूलङ्कषा] नदी, तीर को ५) । ५ पोड़ा-जनक स्थान, दुःखोत्पादक पाना (गउड)।
तोड़नेवाली नदी (वेणी १२०)। जगह (सूअ १, ५, २, उत्त ६)। ६ शिखर, | कूणि वि [कूणित] संकोच-प्राप्त, संकोचित
कूव पुंन [दे] १ चुराई चीज की खोज में टोंच (ठा ४, २, रंभा) । ७ पर्वत का मध्य भाग (जं २)। ८ पाषाणमय यन्त्र-विशेष,
जाना (दे २, ६२, पान)। २ चुराई चीज (गउड)।
कूणिअ वि [दे] ईषद् विकसित, थोड़ा खिला मारने का एक प्रकार का यन्त्र (भग १५)।
को छुड़ानेवाला, छीनी हुई चीज को लड़ाई
वगैरह कर वापस लेनेवाला; 'तए णं सा ९ समूह, राशि (निर १, १) । कारि वि | हुआ (दे २, ४४)।
दोवदी देवी पउमणामं एवं वयासी-एवं [कारिन्] धोखेबाज, दगाखोर (सुपा ६२७)। कूणि पुंकूणिक] राजा श्रेणिक का पुत्र
खलु देवा० जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वारव'ग्गाह पुं [ग्राह] धोखे से जीवों को (प्रौप) ।
तीए एयरीए कराहे रणामं वासुदेवे मम फंसानेवाला (विपा १, २)। स्त्री. "ग्गाहणी कूणिय वि [कूणित] सड़ा हुपा (कुप्र १६०)।। प्पियभाउए परिवसति; तं जइ णं से छरह
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