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२५६ पाइअसद्दमहण्णवो
कुलाल-कुसी कुलाल पुं[कुलाट] १ मार्जार, बिलाड़। मर्थ, अशक्त । ३ छिन्न-पुच्छ, जिसकी पूँछ कुवेणी स्त्री [कुवेणी शस्त्र-विशेष, एक प्रकार २ ब्राह्मण, विप्र (सूप २, ६)। कट गई हो वह (दे २, ६१)।
का हथियार (पएह १, ३-पत्र ४४) । कुलिंगाल पु [कुलाङ्गार कुल में कलंक | कुल्ल पुंन [दे] चूतड़; गुजराती में 'कुलो' | कुवेर देखो कुबेर (महा)। लगानेवाला, दुराचारी (ठा ४, १-पत्र (सुख ८, १३)।
कुव्य सक [कृ, कुर्व] करना, बनाना । कुव्वइ १८५)। कुल्ल अक [कू ] कूदना । वकृ. 'मारुईरक्ख
(भग)। भूका. कुवित्था (पि ५१७) । वकृ. कुलिअन [कुलिक खेत में घास काटने का साण बलं मुक्कवुक्कारपाइक्ककुल्तबग्गंतसे
कुव्वंत, कुञ्यमाण (प्रोघ १५ भाः पाया छोटा काष्ठ-विशेष (अणु ४८)।
णामुह (पउम ५३, ७६)।
कुल्लउर न [कुल्यपुर] नगर-विशेष (संथा)। कुलिक । पु [कुलिक] १ ज्योतिष-शास्त्र
कुस पुंन [कुश] तुरण-विशेष, दर्भ, डाभ, कुलिय) में प्रसिद्ध एक कुयोग (गण १८)
कुल्लड न [दे] १ 'चुल्ली, चूल्हा (दे २,६३)। २ न. एक प्रकार का हल (पण्ह १, १)। २ छोटा पात्र, पुड़वा (दे २, ६३, पान)।
काश (विपा १, ६ निचू १)। २ पं दाशकुल्लरिअ पुं[दे] कान्दविक, हलवाई, मिठाई
रथी राम के एक पुत्र का नाम (पउम १००, कुलिय न [कुड्य १ भीत, भित्ति (सूत्र १,
२)। ग्ग [ ] दर्भ का अग्र-भाग जो बनानेवाला (दे २, ४१)। २, १) । २ मिट्टी की बनाई हुई भीत (बृह कुल्लरिया स्त्री [दे] हलवाई की दुकान
अत्यन्त तीक्ष्ण होता है (उत्त ७) । गगनयर २; कस)। (प्रावम)।
न [ग्रिनगर नगर-विशेष, बिहार का एक कुलिया स्त्री [कुलिका] भीत, कुज्य (बृह २)। कुल्ला स्त्री [कुल्या] १ जल की नाली, सारिणी | नगर, राजगृह, जो आजकल 'राजगिर' नाम कुलिर पुंकुलिर मेष वगैरह बारह राशि (कुमाः हे २, ७६)। २ नदी, कृत्रिम नदी से प्रसिद्ध है (पउम २, ६८)। 'ग्गपुर न में चतुर्थ राशि (पउम १७, १०८) ।
[यपुर] देखो पूर्वोक्त अर्थ (सुर १,८१)। (कप्पू)।
दृ पुं[वर्त] आर्य देश-विशेष (सत्त ६७ कुलिव्वय पुंकुटिव्रत] परिव्राजक का एक
| कुल्लाग पुं[कुल्याक] संनिवेश-विशेष, मगध देश का एक गाव (कप्प)।
टी)। 8 [य] आर्य देश-विशेष, जिसकी भेद, तापस-विशेष, घर में ही रहकर क्रोधादि।
राजधानी शौर्यपुर थी (इक)। त्त न [क्त, का विजय करनेवाला (औप)।
कुल्ली देखो कुल्ला (धर्मवि ११२)। कुल्लुडिया स्त्री [कुल्लुडिका] घटिका, घड़ी
ति] प्रास्तरण-विशेष, एक प्रकार का कुलिस पुंन [कुलिश] वज्र, इन्द्र का मुख्य (सूस १,४,२)।
विछौना (णाया १, १-पत्र १३) । त्थलप्रायुध (पामा उप ३२० टी)। "निणाय पुं
कुल्लुरी स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, गुजराती- पुर न [स्थलपुर नगर-विशेष (पउम २१, [निनाद] रावण का इस नाम का एक सुभट 'कुलेर' (पव ४)।
७६) । मट्टिया स्त्री [मृत्तिका] डाभ के (पउम ५६, २६) । मज्झ न [ मध्य]
साथ कुटी जाती मिट्टी (निचू १८)। वर पुं एक प्रकार की तपश्चर्या (पउम २२, २४)। ।
| कुल्ह पुं[दे] शृगाल, सियार (दे २, ३४)। [वर] द्वीप-विशेष (अणु-टी)। कुलीकोस पुं[कुटीक्रोश पक्षि-विशेष (पएह कुवणय न [दे] लकुट, यष्टि, लड़की, छड़ी | कुस वि [कौश] दर्भ का बना हुआ (प्राचा १, १-पत्र ८)। (राज)।
२, २, ३, १४)। कुलीण वि [कुलीन] उत्तम कुल में उत्पन्न | कुवलय न [कुवलय] १ नोलोत्पल, हरा रंग कुसण न [द] तीमन, पाद्र' करना (दे २,
कुवलय न [कुवलय] १ नीलोत्पल, हरा रंग | (प्रासू ७१)।
का कमल (पान)। २ चन्द्र-विकासी कमल | ३५)। कुलीर पुं [कुलीर] जन्तु-विशेष (पान दे २ |
(श्रा २७) । ३ कमल, पद्म (गा ५)। कुसण न [दे] गोरस (पिंड २८२)। ४१)। कुवली स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष (कुप्र २४६)।
कुसणिय वि [दे] गोरस से बना हुआ करम्बा कुलुंच सक [दह , म्ल] १ जलाना। २
कुविद पुं[कुविन्द] तन्तुवाय, कपड़ा बुनने
| आदि खाद्य, 'कुसु (? स) रिणयंति' (पिंड
वाला (सुपा १८८)। वल्ली स्त्री [°वल्ली]] म्लान करना। संकृ. 'मालइकुसुमाई कुलुं
२८२ टी)। चिऊण मा जारिण णिव्वुनो सिसिरो' (गा वल्ली-विशेष (परण १-पत्र ३३)।
कुसल वि [कुशल] १ निपुण, चतुर, दक्ष, (४२६)। कुविय वि [कुपित] क्रुद्ध, जिसको गुस्सा
अभिज्ञ (आचाः गाया १, २) । २ न. सुख, हुआ हो वह (पएह १, १; सुर २, ५, हेका कुलुक्किय वि [दे] जला हुआ, 'विरह्दवग्गि
हित (राय)। ३ पुण्य (पंचा ६)। ७३; प्रासू ६४)। कुलुक्कियकायहो' (भवि)। कुविय देखो कुप्प = कुप्य (पएह १, ५; सुपा
कुसला स्त्री [कुशला] नगरी-विशेष, विनीता, कुलोवकुल पुं [कुलोपकुल] ये चार नक्षत्र४०६)। साला स्त्री [शाला] बिछोना
अयोध्या (आवम)। अभिजित, शतभिषा, पाद्री और अनुराधा प्रादि गृहोपकरण रखने की कुटिया, घर का
कुसार देखो कूसार (स ६८९)। (सुज १०, ५)।
वह भाग जिसमें गृहोपकरण रखे जाते हैं कुसी स्त्री [कुशी] लोहे का बना हुआ एक कुल्ल [दे] १ ग्रीवा, कण्ठ। २ वि. प्रस- । (पएह १, ४–पत्र ११३) ।
हथियार (दे ८, ५)।
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