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कुरुय-कुलाल पाइअसद्दमण्णवो
२५५ कुरुय न [दे.कुरुक] माया, कपट (सम ७१)। (५)। जाय वि [जात] कुलीन, खान- हर न [गृह] पितृगृह, पिता का घर (गा कुस्या स्त्री [दे. कुरुका] शरीर-प्रक्षालन, दानी कुल का (सुपा ५९८ पास)। जुअ १२१; सुपा ३६४ से ६, ५३) । राजीव स्नान (वब १)।
वि [युत] कुलोन (पव ६४)। °णाम न वि [जीव अपने कुल की बड़ाई बतला कुरुर देखो कुरर (कुमा)।
[नामन] कल के अनुसार किया जाता नाम कर पाजीविका प्राप्त करनेवाला (ठा ५,१) । कुरुल पु[दे] १ कुटिल केश, टेढ़ा बाल (दे (अणु) । "तंतु पुं[सन्तु] कुल-सतान, | यि न [ीय पक्षो का घर, नीड़ (पान)। २, ६३; भवि) । २ वि. निर्दय । ३ निपुण, कुल-संतति (वव ६) । तिलग पुन यार [चार] कुलाचार वंश-परम्परा चतुर (दे २, ६३)।
[तिलक] कुल में श्रेष्ठ (भग ११, ११)। से चला आता रिवाज (वव १)। रिय पुं कुरुल अक [कु] पावाज करना, कौए का "त्थ वि [स्थ] कुलीन, खानदानी वंश का
[य] पितृ-पक्ष की अपेक्षा से प्रार्य (ठा ३, बोलना । कुरुलहि (भवि)। (णाया १, ५)। थेर पुं[स्थविर] श्रेष्ठ
१)। लय वि [लय] गृहस्थों के घर कुरुलिअ न [कुत] वायस का शब्द, कौए । साधु (पंचू) । दिगयर पुं ["दिनकर] भीख मांगनेवाला (सूत्र २, ६)। की आवाज (भवि)।
कुल में श्रेष्ठ (कप्प)। दीव पु [दीप] कुल कर पुं[कुलङ्कर] इस नाम का एक राजा कुरुब देखो कुरु (पउम ११८, ८३; भवि)। कुल प्रकाशक, कुल में श्रेष्ठ (कप)। देव (पउम ८२, २६)। कुरुवग देखो कुरवय (सुपा ७७)।
पुं["देव] गोत्र-देवता (काल) । देवया कुलप पुंकुलम्प इस नाम का एक अनार्य कुरुविंद पुं[कुरुविन्द] १ मरिण-विशेष, रत्न स्त्री [देवता] गोत्र-देवता (सुपा ५६७)। देश । २ उसमें रहनेवाली जाति (सूम २,२)। की एक जाति (गउड) । २ तृण-विशेष "देवी स्त्री [ देवी] गोत्र-देवी (सुपा ६०२)।
कुलकुल देखो कुरकुर । कुलकुलइ (भवि) । (पएण १; पएह १, ४-पत्र ७८)। ३ धम्म पुं [धर्म] कुलाचार (ठा १०) ।
कुलक्ख पुं[कुलक्ष] १ एक म्लेच्छ देश । कुटिलिक-नामक रोग, एक प्रकार का जंघा पव्यय [पर्वत पर्वत-विशेष (सम ६६
२ उसमें रहनेवाली जाति (पएह १, १; इक)। रोगः 'एणीकुरुविदचत्तवट्टाणुपुत्वजंघे' (ोप)।
सुपा ४३)। पुत्त पुं [पुत्र] वंश-रक्षक वित्त पुंन [वित भूषण-विशेष (कप्प)।
कुलाग्घ पुं [कुलार्घ] एक अनार्य देश (पव
पुत्र (उत्त १)। बालिया स्त्री [बालिका] कुरविंदा स्त्री [कुविन्दा] इस नाम की एक
२७४)। कुलोन कन्या (सुर १, ४३; हेका ३०१)। वणिगभायां (पउम ५५, ३८)।
कुलडा स्त्री [कुलटा] व्यभिचारिणी स्त्री, भूसण न [भूषण] १ वंश को दिपाने या
पुंश्चली (सुपा ३८४)। कुरुविल्ल [दे] देखो कुरुचिल्ल (पान)। चमकाने वाला। २ पृ. एक केवली भगवान्
कुलत्थ पुंस्त्री [कुलत्थ] अन्न-विशेष, कुलथी कुल पुंन [कुल] १ कुल, वंश, जाति (प्रासू । (पउम ३६,१२२)। मय पु[द] कुल का १७)। २ पैतृक वंश (उत्त ३) । ३ परिवार, अभिमान (ठा १०)। मयहारेया, महत्त
(ठा ५, ३ णाया १,५) । स्त्री. त्था (श्रा कुटुम्ब (उप ६, ७७)। ४ सजातीय समूह रिया स्त्री [ महत्तरिका] कुल में प्रधान (पएह १,३)। ५ गोत्र (सुपा ८ ठा ४,१)। स्त्री, कुटुम्ब की मुखिया (सुपा७६; आवम)।
कुलफसण [दे] कुल-कलंक, कुल का दाग, ६ एक प्राचार्य की संतति (कप्प)। ७ घर, य देखो ज (सुपा ५६८)। रोग पुं
कुल की आपकीर्ति (दे २, ४२; भवि)। गृह (कप्पः सूत्र १, ४, १)। ८ सान्निध्य, [रोग] कुल व्यापक रोग (जं २)। वइ पुं
कुलय देखो कुडव (तंदु २६ अणु १५१)। सामीप्य (प्राचा)। ६ ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध [°पति] तापसों का मुखिया, प्रधान संन्यासी कुलय न [कुलक] तीन या चार से ज्यादा नक्षत्र-संज्ञा (सुज १०, इक); 'कुलो, कुलं' (सुपा १६०; उप ३१) । वंस [°वंश]/ परस्पर सापेक्ष पद्य (समत्त ७६) । (हे १, ३३) । °उव्व पु [पूर्व] पूर्वज, . कुल रूप वंश, वंश (भग ११, १०)। वंस कुलल पुं[कुलल] १ पक्षि-विशेष (पएह १, पूर्व-पुरुष (गउड) । कम पुं [क्रम] पुं[वश्य] कुल में उत्पन्न, वंश में संजात १)। २ गृद्ध पक्षी (उत्त १४)। ३ कुरर कुलाचार, वंश-परम्परा का रिवाज (सट्टि (भग ६, ३३) । वडिसय यु वतंसक] पक्षी (सूत्र १, ११)। ४ मार्जार, बिडाल; ७४) । कर देखो नीचे गर (ठा १०)। कुल-भूषण, कुल-दीपक (कप्प)। वहू स्त्री जहा कुक्कुडपायस्स पिच्चं कुललो भयं' 'कोडि स्त्री [कोटि] जाति-विशेष (पव। [वधू] कुलोन स्त्री, कुलाङ्गना (आव ५ ! (दस ४)। १५१; ठा ; १०) । कम देखो कम पि ३८७) । संपण्ण वि [संपन्न] कुलीन, । कुललय पुन [दे] कुल्ला, गंडूष (पव ३८) । (सट्ठि ६) । गर [कर] कुल की स्थापना __ खानदानी कुल का (प्रौप)। समय पुं| कुलव देखो कुडव (जो २)। करनेवाला, युग के प्रारम्भ में नीति वगैरह की [समय] कुलाचार (सूम १, १, १)। | कुलसंतइ स्त्री [दे] चुल्ली, चूल्हा (दे २, ३६)। व्यवस्था करनेवाला महापुरुष (सम १२६ | "सेल पुं [शैल] कुल-पर्वत (सुपा ६००% | कुलाअल पुं[कुलाचल] कुलपर्वत (त्रि ८२)। धरण ५)। गेह न [गेह] पितृ-गृह (सरण)। सं ११६) । °सेलया स्त्री [शैलजा कुल कुलाण देखो कुणाल (राज)।
घर न[गृह] पितृ-गृह (ग्रौप)। ज वि पर्वत से निकली हुई नदी; कुलंसलयावि कुलाल j[कुलाल] कुम्भकार, कुम्हार (पामा [ज] कुलीन; खानदानी कुल में उत्पन्न | सरिया नूणं नीययरमणुसरई' (सुपा ६००)। गउड) ।
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