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किट्र-कित्तणा पाइअसद्दमण्णवो
२४३ उसमें मिल जाता है उस तरह मिला हुआ किड्डाविया स्त्री [क्रीडिका] क्रीड़न-धात्री, । किणो अ[किमिति क्यों, किसलिए? (दे
बालक को खेल-कूद करानेवाली दाई (णाया २, ३१ हे २, २१६ पान; गा ६७; महा)। किट्ठ वि [क्लिष्ट] क्लेश-युक्त (भग ३, २ १, १६-पत्र २११)।
किण्ण वि [कीर्ण] १ उत्कीर्ण, खुदा हुआ जीव ३)।
किढि वि [दे] १ संभोग के लिए जिसको ‘उवलकिएणब्व कट्टपडियव्व' (सुपा ५७१) । किट्ठ वि [कृष्ट] जोता हुआ, हल-विदारित एकान्त स्थान में लाया जाय वह (वव ३)। २ क्षिप्त, फेंका हुआ (ठा है)। (सुर ११, ५६; भग ३, २)। २ न. देव- २ स्थविर, वृद्ध (बृह १)।
किण्ण पुं[किण्व] १ फलवाला वृक्ष-विशेष, विमान विशेष; 'जे देवा सिरिवच्छ सिरिदाम- किढिण न [किठिन] संन्यासियों का एक जिससे दारू बनता है (गउड प्राचा)। २ कंडं मल्लं किट्ट (? १ ) चावोएणयं अर- पात्र, जो बाँस का बना हुआ होता है (भग न. सुरा-बीज, किएव-वृक्ष के बीज, जिसका एणवडिसर्ग विमाणं देवत्ताए उववरणा' ७, ६)।
दारू बनता है (उत्त २)। सुरा स्त्री [भुरा] (सम ३६)।
किण सक [की] खरीदना। किणइ (हे ४, किएच-वृक्ष के फल से बनी हुई मदिरा किट्ठि स्त्री [कृष्टि] १ कर्षण । २ खींचाव, ५२)। वकृ. 'से किणं किणावेमाणे हणं (गउड) । आकर्षण । ३ देवविमान-विशेष (सम ६)। घायमाणे' (सूम २, १)। किणंत (सुपा किण्ण वि [दे] शोभमान, राजमान (दे २. कूड न [कूट] देवविमान-विशेष (सम ३६६) । संकृ. किणित्ता (पि ५८२) । प्रयो. ३०) । ६)। घोस न [घोष] विमान-विशेष किरणावेइ (पि ५५१)।
किण्णं प्र[किंनम्] प्रश्नार्थक अव्यय (सम ९) । जुत्त न ["युक्त विमान-विशेष किण पुं [किण] १ घर्षण-चिह्न, घर्षण को (उवा) । (सम ९) । उभय न [ध्वज विमान-विशेष निशानी (गउड) । २ मांस-ग्रंथि। ३ सूखा | किर देखो किंनर (जं १, रायः इक)। (सम ६)। पभ न [प्रभ] देवविमान- घाव (सुपा ३७०; वजा ३६) ।
किण्णा अ[कथम] क्यों, क्यों कर, कैसे ? विशेष (सम ६)।वण्ण न [वर्ण] विमान- किगइय वि [दे] शोभित, विभूषित (पउम
"किएगा लद्धा किराणा पत्ता' (विपा २, विशेष (सम ६)। सिंग न [शृङ्ग]
१-पत्र १०६)। विमान-विशेष (सम ९)। सिट्ट न [शिष्ट] किगण न [क्रयण] कीनना, खरीद, क्रय
किण्णु अकिंनु] इन अर्थों का सूचक एक देव-विमान (सम ६)। (उप पू २५८)।
अव्यय-१ प्रश्न । २ वितर्क । ३ सादृश्य । किट्ठियावत्त न [कृष्ट थावर्त] देवविमान- किणा देखो किण्णा (प्राप्र; हे ३, ६६)
४ स्थान, स्थल। ५ विकल्प (उवाः स्वप्न विशेष (सम )।
किणि वि [कयिन् ] खरीदनेवाला (सम्बोध । किट ठुत्तरवडिंसग न [कृष्ट्युत्तरावतंसक] | १६)।
किण्ह देखो कण्ह (गा ६५, णाया १,१ इस नाम एक देव-विमान, देव-भवन (सम किणिकिण अक [किणिकिणय ] किण
उर ६,५; परण १७)। किण आवाज करना। वकृ. किणिकिणित किण्ह न [दे] १ बारीक कपड़ा। २ सफेद किडग वि [क्रीडक] क्रीड़ा करनेवाला (सूत्र (ोप)।
कपड़ा (दे २, ५६)। १, ४, १, २ टी)। | किणिय वि [क्रीत] कोना हुआ, खरीदा
किण्हग पु[दे] वर्षाकाल में घड़ा आदि में किडि पुं[किरि] सूकर, सूपर (हे १, २५१, हुमा (सुपा ४३४)।
होनेवाली एक तरह की काई (जीवस ३६) । षड्)।
किणिय पुं [किणिक] १ मनुष्य की एक किण्हा देखो कण्हा (ठा ५, ३-पत्र ३५१; किडिकिडिया स्त्री [किटिकिटिका] सूखी | जाति, जो बाजा बनाती और बजाती है। कम्म ४, १३)।
हड्डी की आवाज (णाया १,१-पत्र ७४) । (वव ३)। २ रस्सी बनाने का काम करने- कितव पुं [कितव] द्यूतकर, जूषारी (दे किडिभ पुं[किटिभ रोग-विशेष, एक प्रकार वाली मनुष्य जाति; 'किरिणया उ बरत्तामो का क्षुद्र कोढ़ (लहुन १५, भग ७, ६)। वलित' (पंचू)।
| कित्त देखो किञ्च (संक्षि ५) । किडिया स्त्री [दे] खिड़की, छोटा द्वार (स |
किणिय न [किणित] वाद्य-विशेष (राय)। कित्त देखो किट्ट - कीर्तय् । भवि. कित्तइस्सं ५८३)।
किणिया स्त्री [किणिका छोटा फोड़ा, फुनसी (पडि)। संकृ. कित्तइत्ताण (पच ११६) । किड्ड अक [क्रीड्] खेलना, क्रीड़ा करना।
'अन्नेवि सई महियलनिसीय
कित्तण न [कीर्तन] १ श्लाघा, स्तुतिः 'तव वकृ. किडुत (पि ३६७)।
गप्पन्नकिणियपोंगिल्ला। य जिणुत्तम संति कित्तणं' (अजि ४; से ११, किड्डकर वि [क्रीडाकर] क्रीड़ा-कारक (प्रौप)। मलिएजरकप्पडोच्छइयविग्गहा
१३३)। २ वर्णन, प्रतिपादन । ३ कथन, किड्डा स्त्री [क्रीडा] १ क्रीड़ा, खेल (विपा ____ कहवि हिडंति' (स १८०)। उक्ति (विसे ६४०; गउडः कुमा)। १,७) । २ बाल्यावस्था (ठा १०-पत्र | किणिस सक [शाणय् ] तीक्ष्ण करना, तेज | कित्तणा स्त्री [कीर्तना1 कीर्तन, वर्णन, ५१९)।
करना । किरिणसइ (पिग)।
| प्रशंसा (चेइय ७४८)।
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