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पाइअसद्दमहण्णवो
कु-कुंडग
११)। समय पुं [°समय] १ अनाप्त- । २ पहने हुए कपड़े का प्रांत भाग, अञ्चल कुंचिय पुं [कुश्चिक] इस नाम का एक जैन प्रणीत शास्त्र (सम्म १)। २ वि. कुतीथिक,
उपासक (भत्त १३३)। कुशास्त्र का प्रणेता और अनुयायी (सम्म १)। कुऊहल न [कुतूहल] १ अपूर्व वस्तु देखने | कुंचिया देखो कोंचिगा। रूई से भरा हुआ 'सल्लिय वि [शल्यिक] जिसके भीतर की लालसा-उत्सुकता । २ कौतुक, परि. । पहनने का एक प्रकार का कपड़ा (जीत)। खराब शल्य घुस गया हो वह (पएह २,४)। हास (हे १, ११७; कुमा)।
| कुंचिया स्त्री [कुश्चिका] कुब्जी, ताली (पिंड सील न [शील] १ खराब स्वभाव कुओ अ [कुतः] कहाँ से ? (षड्)। इ ३५६)। (प्राचा)। २ अब्रह्मचर्य, व्यभिचार (ठा ४, | [चित] कहीं से, किसी से (स १८५)। कुंजर [कुञ्जर] हस्ती, हाथी (हे १, ६६ ४)। ३ वि. जिसका आचरण अच्छा न हो वि अ [°अपि] कहीं से भी (काल)।
पाम)। 'पुर न [पुर] नगर-विशेष, वह, दुराचारी (प्रोघ ७६३) । ४ अब्रह्मचारी, कुंआरी स्त्री [ कुमारी] वनस्पति-विशेष, हस्तिनापुर (पउम १५, ३४)। सेणा स्त्री व्यभिनारी (ठा ५, ३)। स्सुमिण पुन | कुवारपाठा, धीकुवार, घीगुवार (श्रा २०; [°सेना] ब्रह्मदत चक्रवर्ती की एक रानी [स्वप्न खराब स्वप्न (श्रा ६)।हण वि जी १०)।
(उत्त २६)। वित्त न [वर्त] नगर[धन] अल्प धनवाला, दरिद्र (पण्ह २, . कुंकण न [दे] १ कोकनद, रक्त-कमल (पएण विशेष (सुर ३, ८८)। १-पत्र १००)।
। १-पत्र ४०)। २ पुं. क्षुद्र जन्तु विशेष, कुंट वि[कुण्ट] १ कुब्ज, वामन (प्राचा)। कुत्रीका १ पृथिवी, भूमि, 'कसमयवि- चतुरिन्द्रिय कीड़े की एक जाति (उत्त ३६)।। २ हाथ-रहित हस्त-दीन (पव ११०नित सासणं' (सम्म १ टी-पत्र ११४; से १, कुंकण पुं[कोङ्कण] देश-विशेष (अणुः साधं ११ प्राचा)। २६) । °त्तिअ न [त्रिक] १ तीनों जगत्, ३४)।
कुंटलविंटल न[दे] १ मंत्र-तंत्रादि का प्रयोग, स्वर्ग, मत्यं और पाताल लोक । २ तीन जगत् कुंकुण देखो कुंकण (सिरि २८६)। पाखण्ड-विशेष (प्रावम)। २ वि. मंत्रमें स्थित पदार्थ (प्रौप) । °त्तिअ वि ["त्रिज] कुंकुम न [कुङ्कुम] केसर, सुगन्धी द्रव्य- तंत्रादि से आजीविका चलानेवाला (आक)। तीनों जगत् में उत्पन्न वस्तु (आवम)। विशेष (कुमा; श्रा १८)।
| कुंटार वि [दे] म्लान, सूखा, मलिन (दे २, 'त्तिआवण पुंन [त्रिकापण] तीनों जगत् कुंग पुं[कुङ्ग] देश-विशेष (भवि)। के पदार्थ जहाँ मिल सके ऐसी दूकान (भग;
कुंच सक [कुन् ] १ जाना, चलना। २
। कुंटि स्त्री [दे] १ गठरो, गाँठ (दे २. ३४)। णाया १,१-पत्र ५३)। वलय न [°वलय] | अक. संकुचित होना। ३ टेढ़ा चलना
२ शस्त्र-विशेष, एक प्रकार का औजार पृथ्वी-मण्डल (श्रा २७)। (कुमाः गउड)।
'मुसलुक्खलहलदंतालकुंटिकुद्दालपमुहसत्थाणं' कुअरी देखो कुआँरी (पि २५१)।
(सुपा ५२६)। कुंच पुं[क्रौञ्च १ पक्षि-विशेष (पएह १, कुअलअ देखो कुवलय (प्राप्र)।
कुंठ वि [कुण्ठ] १ मन्द, पालसी (था १६)। कुआँरी देखो कुमारी (गा २६८) । १; उप पृ २०८; उर १, १४)। २ इस
२ मूर्ख, बुद्धि-रहित (आचा) । कुइअ वि [कुचित] सकुचा हुआ (पव ६२)। नाम का एक असुर (पास)। ३ इस नाम
कुंठी स्त्री [दे] सँड़सी, चीमटा (वज्जा ११४)।
का एक अनार्य देश। ४ वि. उसके निवासी कुइमाण वि [दे] म्लान, शुष्क (दे २, ४०)। लोग (पव २७४) । "रवा स्त्री [रवा]
कुंड न [कुण्ड] १ कुंडा, पात्र-विशेष (षड्) । कुइय वि [कुचित] अवस्यन्दित, क्षरित दण्डकारण्य की इस नाम की एक नदी
२ जलाशय-विशेष (णंदि)। ३ इस नाम (ठा ६)। (पउम ४२, १५)। वीरगन [वीरक]
का एक सरोवर (ती ३४)। ४ आज्ञा, कुइय वि [कुपित] क्रुद्ध, कोप-युक्त (भवि) । एक प्रकार का जहाज (निचू १६)। रि
आदेश; 'वेसमणकुंडधारिणोतिरियजंभगा देवा' कुइयण्ण पुं [कुविकर्ण] इस नाम का एक पुं[°ारि] कात्तिकेय, स्कन्द (पान)। देखो
(कप्प) । 'कोलिय पुं[कोलिक] एक जैन गृहपति, एक गृहस्थ (विसे ६३२)। कोंच।
उपासक (उवा)। ग्गाम पुं [ग्राम कुउअ पुन [कुतुप] स्नेह पात्र, घी तैल कुंचलन [दे] मुकुल, कली, बौर (दे २, |
मगध देश का एक गाँव (कप्प; पउम २, वगैरह भरने का चमड़े का पात्र-विशेषः । ३६; पान)।
२१)। धारि वि [धारिन्] आज्ञाकारी 'तुप्पाई को (? कु) उपाइं (पान) देखो
(कप्प) । 'पुर न[पुर ग्राम-विशेष (कप्प)। कुंचि वि [कुश्चिन्] १ कुटिल, वक्र । २
कुंड न [दे] ऊख पेरने का जीर्ण काण्ड, कुतुव। मायावी, कपटी (वव १)।
जो बाँस का बना हुआ होता है (दे २, ३३; कुउआ स्त्री [दे] तुम्बी-पात्र, तुम्बा (दे कुंचिगा देखो कोचिगा। २, १२)।
कुंचिय वि [कुञ्चित] १ संकुचित (सुपा कुंडग पुन [कुण्डक] १ अन्न का छिलका कुउव देखो कुउअ (पिंड ५५७)।
५८)। २ कुण्डल के प्राकारवाला, गोलाकृति (उत्त १, ५, प्राचा २, १, ८, ६)। २ कुऊल न [दे] १ नीवी, नारा, इजारबन्द।। (ौपा जं २)। ३ कुटिल, वक्र (बव १)। । चावल से मिश्रित भूसा (उत्त १, ५)।
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