________________
१६० पाइअसहमहण्णवो
उद्दाण-उद्देसिय उद्दाण स्त्री [दे] चूल्हा, चूल्ली, जिसपर रसोई
| उद्दाहग वि [उद्दाहक] प्राग लगानेवाला | उद्दीविअ वि [उद्दीपित] प्रदीपित, प्रज्वालित पकाई जाती है (दे १,८७)।। (पएह १, ३)।
(पान); 'चीयाए पक्खिविउ तत्तो उद्दीविरो उद्दाण वि [अवद्रात मृत, 'उद्दाणे भोइयम्मि उद्दिढ वि [उद्दिष्ट] १ कथित, प्रतिपादित
जलगो' (सुर ६, ८८) चेइयाई वंदामि' (सुख १, ३) । (विपा २, १)। २ निर्दिष्ट (दस)। ३ दान
उद्य वि [उद्रुत] पलायित (पउम ६,
के लिए संकल्पित (अन्न, पानादि); 'णायउहाम वि [उद्दाम] १ स्वैर, स्वच्छन्द
पुत्ता उद्दिट्ठभत्तं परिवज्जयंति' (सूम २, (पान)। २ प्रचण्ड, प्रखरः 'ता सजलजल
उद्य वि [उपद्रत] हैरान किया हुआ (स
६)। ४ लक्षित (सूम २,६)। ५ न. उद्देश। १३१) हरुद्दामगहिरसद्देण ताण तं कहइ' (सुपा
(पंचा १०)। कड वि [कृत] साधु के उद्देस देखो उदिस उद्देसइ (भवि) २३४)। ३ अव्यवस्थित (हे १, १७७)।।
उद्देश से बनाया हुआ, साधु के निमित्त उद्देसउद्देश] १ पठन-विषयक गुर्वाज्ञा उद्दाम दे] १ संघात, समूह । २ स्थपुट, किया हुअा (भोजनादि) (दस १०)।
(अणु ३)। २ नाम का उच्चारण (सिरि विषमोन्नत प्रदेश (दे १, १२६)। उद्दिता स्त्री दे. उद्दिष्टा] तिथि-विशेष, | १०)। ३ बाचन, सत्र-प्रदान, सत्रों के उद्दामिय वि [उद्दामित] लटकता हुआ, | अमावस्या (औप)।
मूल पाठ का अध्यापन (पव १)V प्रलम्बित: 'तत्थ एं बहवे हत्थी पासति उदित्त वि [उदीप्त प्रज्वलित (बृह १) | उद्देस उद्देशा१ नाम-निर्देश पूर्वक वस्तुसरणद्धबद्धवम्मियगुडिते उप्पीलियकच्छे उद्दा- उद्दिस सक [उद् + दिश ] आज्ञा करना।
निरूपरण (विसे)। २ शिक्षा, उपदेश; 'उद्देसो मियघंटे (विपा १, २)। कर्म. उद्दिसिज्जति (अणु ३)।
पासगस्स एत्थि'। ३ व्यपदेश, व्यवहार उद्दाय अक [शुभ ] शोभना, शोभित होना, | उद्दिस सक [उद् + दिश् ] १ नाम
(प्राचा)। ४ लक्ष्य । ५ अभिप्राय, मतलब अच्छा मालूम देना। वकृ. 'उववरणेसु परहुय- निर्देश-पूर्वक वस्तु का निरूपण करना। २
(विसे)। ६ ग्रन्थ का एक अंश (भग १, रुयपरिभितसंकुलेसु उद्दायंत रत्तईदगोव देखना । ३ संकल्प करना। ४ लक्ष्य करना । १)। ७ प्रदेश, अयवः 'खुब्भति खुहिअमनरा यथोवयकारुन्नविलविएसु' (णाया १, १)। ५ अंगीकार करना। ६ सम्मति लेना। ७ आवापालगहिरा समदुद्देसा' (से ५, १६% उद्दाइंत (णाया १, १ टी)
समाप्त करना। ८ उपदेश देना। उदिसइ १, २०)।८ गुरुप्रतिज्ञा, गुरु-वचन (विसे)। उद्दार देखो उराल = उदारः 'देमि न कस्सवि
(वव २, ७)। कर्म. 'दस अज्झयणा एक्क- ६ जगह, स्थान (कप्पू)।। जंपइ उद्दारजणस्स विविहरयणाई' (वज्जा
सरगा दससु चेव दिवसेसु उदिस्संति' (उवा)। उद्देस वि [औदेश] देखो उद्देसिय = १२०)/
कवकृ. उद्दिसिजंत (पावम)। संकृ. 'गो प्रौद्देशिक (पिड २३०)। उद्दरिअ वि [दे] १ युद्ध से पलायित, रण
तासि समीवं, पुच्छियं महुरवाणीए एक्कं | उद्देसण न [उद्देशन] १ पाठन, बाचना, द्रुत । २ उत्खात, उन्भूलित ( षड्)
कन्नगं उद्दिसिऊण, करो तुब्में (महाः अध्यापन: 'उद्दिसण वायरगत्ति पाठण्या उद्दाल सक [आ + छिद्] खींच लेना, हाथ |
वव ७); 'तदवसाणे य एक्का पवरमहिला चेव एगट्ठा' (पंचभाः परह २, ५)। २
बंधुमई उद्दिस्स कुमारउत्तमंगे अक्खए से छीन लेना । उद्दालइ (हे ४, १२५;
अधिकारिता, योग्यता (ठा ४, ३)। षड्ः महा)। हेकृ. उद्दालेउं (पि ५७७) ।
पाक्खवइ (महा); लादासय (प्राचा २. | उद्देसण काल पु[उद्देशनकाल] मूलसूत्र के
१ अभि १०४) । हकृ. उादासउ, उद्दि- अध्यापन का समय (णंदि २०६)IV उहाल पुं[अवदाल] १ दबाव, अवदलना सित्तए (वव १० भा; ठा २, १)। प्रयो. 'तंसि तारिसगंसि सयरिणज्जंसि"गंगापुलिण
उद्देसणा स्त्री [ उद्देशना] ऊपर देखो उद्दिसावित्तए, उद्दिसावेत्तए (बृह १; वालुअउद्दालसालिसए' (कप्प; गाया १,१)।
(पंचभा)IV कस)V २ वृक्ष-विशेष (जीव ३)। ३ अवसर्पिणी
उद्देसिय न [औदेशिक १ भिक्षा का एक उद्दिसिअ देखो उद्दिष्ट्र (प्राचा २)। काल का प्रथम आरा-समय-विशेष (जं
दोष, साधु के लिए भोजन-निर्माण । २ वि. उहिसिअ वि [दे] उत्प्रेक्षित, वितर्कित (दे | साधु निमित्त बनाया हुआ (भोजन) (कस); उद्दालिय वि [आच्छिन्न] छीना हुआ,
१, १०६)
'उद्देसियं तु कम्म एत्थं उद्दिस्स कीरए खींच लिया गया (पामा कुमा; उप पृ ३२३); उद्दीरणा देखो उदीरणा; 'उद्दीरणउदयाणं जंति' (पंचा १७; ठा ; अंत)। 'दो सारबलिद्दावि हु तेहिं उद्दालिया' (सुपा जं नाणत्तं तय वोच्छं' (पंच ५, ६८)। | उद्देसिय वि [औद्देशिक] १ उद्देश-सम्बन्धी २३८)IV
उद्दीवण न [उद्दीपन] १ उत्तेजन । २ वि. उद्देश से किया हुआ। १ विवाह आदि के उद्दावणया स्त्री [उपद्रावणा] उपद्रव, हैरानी उत्तेजक (मै ५८ रंभा)।
उपलक्ष्य में किए गए जीमन में निमन्त्रितों के (राज)IV
उद्दीवणिज वि [उद्दीपनीय] उद्दीपक, भोजन की समाप्ति के अनन्तर बचे हुए वे उद्दाह पुं [उदाह] १ प्रखर दाह । २ आग उत्तेजक; 'मयणुद्दीवणिज्जेहिं विविहेहि | खाद्य द्रव्य जिनको सर्वजातीय भिक्षुओं को (ठा १०) भूसणेहि' (रंभा)।
देने का संकल्प किया गया हो (पिंड २२६)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org