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पियg [ वनमालप्रिय ] इस नाम का एक यक्ष (विपा २, १ ) 1) वम्म पुं [वर्मन् ] नृप - विशेष, भगवान् विमलनाथ का पिता (सम १५१) वीर ["वीर्य] का
वो के पिता का नाम ( सुश्र १,८) । hi अ [ कृतम् ] अलम्, बस ( उबर १४४) । मंगला ओ [तला] धावती नगरी के समीप की एक नगरी (भग) । कयंत पुं [ कृतान्त ] १ यम, मृत्यु, मरण (सुपा १६६: सुर २,५ ) । २ शास्त्र सिद्धान्त; 'मरांति कथं तं जं कयंतसिद्धं उ सपरहि' ( सार्धं ११७ सुपा ११६ ) । ३ रावण का इस नाम एक सुभट ( पउम ५६, ३१) । "मुह [मुख ] रामचन्द्र के एक सेनापति का नाम (पउम ४, ६२ ) । वयण पं [वेदन] राम का एक सेनापति ( पउम ६४, २० ) । कसंध देखो कमंध ( हे १, २३६ षड् ) । कब देखो कलंब ( पण १; हे १,२२२) । कब पुं [कदम्ब] समूह, 'अप्पा प सर्वं जीवकथंबं च रक्बइ सयावि' (संबोध २०) ।
कबि वि [कदम्बित ] अलंकृत, विभूषित (कप्प) ।
कयंबुअ देखो कलंबुअ (कप्प) । कवि [कृत ] प्रयत्न-जन्य (धर्मसं २६६; ४१४) ।
tara [ क्रायक ] खरीदनेवाला (वव १ टी ) । कथा तु [कलक] १ -विशेष निर्मल
२ न. कतक- फल, निर्मली - फल, पायपसारी; वह कपगमंजाई जलीयो विमोहित (विसे ५३६ टी ।
[] स कृपण (राज)। कड्डि [कपर्दिन] इस नाम का एक यक्ष देवता ( सुपा ५४२) ।
कयण न [कदन] हिंसा मार डालना ( हे १, २१७) ।
कत्थक [ कदर्थय ] हैरान करना, पीड़ा करना । कयत्थसे (धम्म ८ टी) कवकृ कथित (स)
कत्थण न [कदर्थन ] हैरानी, हैरान करना, पीड़न (गुपा १०० मा ) ।
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पाइअसद्दमहष्णवो
कत्थणा स्त्री [ कदर्थना ] ऊपर देखो ( स ४७२: सुर १५, १ ) 1 कयत्थिय वि[कति] हैरान किया हुआ, पीड़ित (सुपा २२७ महा) । कयन्न वि [कदन्न] खराब अन्न (धर्मवि १३९ ) ।
कवि [कतम ] बहुत में से कौन ? (स ४०२) ।
कर वि[तर] दो में से कीन ? (हे ५८) ।
कयर पुं [क्रकर ] ४ वृक्ष-विशेष, करीर, कपर पुं [ऋकर] ४ वृक्ष-विशेष करीर, करील ( स २५६ ) । २ न. करीर का फल ( पभा १४) ।
[द] कदली-युज, केला का गाछ। २ न. कदली फल, केला (हे १, १६७)।
कयल न [दे] अलिञ्जर, पानी भरने का बड़ा गगरा, भंभर, मटका (दे २, ४) । कर्याल, खी श्री [कदल, 'ली] बेला का गाय (महा) हे १, २२० ) । समागम पं [ समागम ] इस नाम का एक गाँव (आम) दर न [गृह] कदली-तम्भ से बनाया हुआ घर (नासुर ३, १४० ११६ ) । कयल्लय देखो कय = कृत ( सुख २ ३ ) । कयवर पुं [दे] १ कतवार, कूड़ा, मैला (गाया १, १ सुपा ३८० ८७ स २६४' भत्त ८६ पात्रः सरः पुप्फ ३१; निचू ७ ) । २ (१)। कवि श्री [दे. कचरोकिका] कूड़ा साफ करनेवाली दासी (गाया १, ७. पत्र ११७) |
कवाड [का] कुकुट, कुकड़ा, मुर्गा (ड) |
कयवाय पुं [कृकवाक] कुक्कुट, कुकड़ा, मुर्गा ( पात्र ) । यमन [कदशन] खराव भोजन (विवे (१३६) ।
कसेहर पुं [दे] कुकड़ा, मुर्गा ' कयमेहराण सुम्मइ आलावो भत्ति गोसम्मि' ( वजा ७२) । कया अ [कदा] कज, किस समय ? (ठा ३, ४ प्रासू १६९ ) ।
[कया [कदापि ] कभी भी किसी समय भी (उवा ।
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कयाई
कयाइ
कयाई
२
कथं-कर
[ कदाचित् ] कभी (उवा व
किसी समय, 'यह पता कथाई' (सुपा ५०६; पि ७३ ) ! काति
(भव १५) ।
कवान [याणक] बेचने योग्य वस्तु करिया (१२० ) ।
कयाणग पुंन. देखो कयाण 'देव निश्रवाहणारण कयागे किं न विक्केह' (सिरि ४७८) ।
कयार [दे] कलवार, कूड़ा, मैला २, (दे ११। भनि ।
कयावि देखो कयाइ = कदापि (प्रासू १३१) । योग [कयोग] नट-विशेष बहुरूपिया
(बृह ४) ।
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कर सक [] करना, बनाना । करइ (हे ४, २३४) । भूका. कासी, काही, काहीघ्र, करिसु करें मासिकासी ( ४,१६२: कुमा भग; कप्प ) । भवि. काहिs, काही, करिस्सइ, करिहि का, काहिमि (हे १४ प ५२३ कुमा) कर्म कज, करो करिज (भग हे ४, २५०) वह करंत करित करेंत, करेमाण ( प ५०६ रयण ७२ से २, १५; सुर २, २४०; उवा) । कवकृ. कज्जमाण, किरंत, कोरमाण ( ि५४७; कुमाः गा २७२ रयण ८९ ) । संकृ. करिता, करित्ताणं, करिदूण, काउं, काऊ, काऊणं, कट्टु, करिअ, किश्वा, कियाणं (कप्पः दस ३ षड् कुमाः भगः श्रभि ४१: सूत्र १,१, १; प्रौप) । हेक. काउं, करेत्तए (कुमा, भग ८, २) । कृ. कणिज्ज, करणीअ, करिअव्य, करेअव्व, कायव्य (दस १०; षड् ; स २१ प्रासू १४८ कुमा) । प्रयो. करावेइ, करा (३५५२) ।
कर
[कर] एक महामह (गुन २० ) ।
[क] १ हस्त, हाथ (सुर १, ५४ ५७) २ महसूल, चुंगी (७६८ सुर १, ५४ फिर अंशु (उप ७६८ कुमा) हाथी की (कुम
करका शिलाष्टि पक्खिले ( पउम १६, १५) । 'ग्गह [ग्रह] १ हाथ से ग्रहण करना 'द
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