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दखा कर% कृ।
करिसिय-कलकल पाइअसद्दमण्णवो
२२६ करिसिय वि [कृशित] दुर्बल किया हुआ करोडिया। स्त्री [करोटिका, टी] १ कुंडा, कलंकलीभागि वि [कलङ्कलीभागिन् दुःख(सूत्र १, ३)।
करोडी बड़े मुँह का एक पात्र, कांस्य- व्याकुल (सूत्र २, २, ८१, ८३)।
पात्र-विशेष (अए; दे ७, १५; पान) । २ कलंकलीभाव पं करीर पुं[करीर] वृक्ष-विशेष, करीर, करील
कलकुलीभाव] १ दुःख (उप ७२८ टीः श्रा १६ प्रासू ६२) ।
स्थगिका, पानदान (णाया १,१ टी-पत्र से व्याकुलता। २ संसार-परिभ्रमण (आचा
४३) । ३ मिट्टी का एक तरह का पात्र करीस पुं[करोष] जलाने के लिए सुखाया
२,१६,१२)। (ोप)। ४ कपाल, भिक्षा-पात्र (गाया १, कलंकवई स्त्री दे] वृति, बाड़ काटे आदि से हुअा गोबर, कंडा, गोइठा (हे १, १०१)। करुण देखो कलुण (स्वप्न ५३; सुपा २१६);
८)।५ परोसने का एक उपकरण (दे, २, परिच्छन्न स्थान-परिधि (दे २, २४)। 'उज्झद उयारभावं दक्खिणं करुणयं च
कलंकिअघि [कलङ्कित] कलंकित, दागी (हे आमुयई' (गउड)।
करोडी स्त्री [दे] एक प्रकार की चींटी, क्षुद्र
द्र- ४, ४३८)। करुणा स्त्री [करुगा] दया, दूसरे के दुःख को जन्तु-विशेष (दे २, ३)।
- कलंकिल्ल वि [कलङ्किन] कलंकवाला, दागी दूर करने की इच्छा (गउड; कुमा)। करोडी स्त्री [दे] मुरदा, शव (कुप्र १०२)। (कालः पि ५६५)। करुणाइय विकरुणायित] जिसपर करुणा कल सक [कलय] १ संख्या करना । २ कलंतर न किलान्तर ] व्याज, सूद (कुप्र की गई हो वह (गउड)।
आवाज करना । ३ जानना । ४ पहिचानना। ३५५)। करुणि वि [करुणिन्] करुणा करनेवाला,
५ संबन्ध करना । कलइ (हे ४, २५६ कलंद पं कलन्द] १कुण्ड, कुण्डा, रंगदयालु (सरग)।
षड)। कलयंति (विसे २०२६)। भवि. पात्र (उवा)। २ जाति से प्रार्य एक प्रकार करे सक [ कारय ] कराना । करेइ (प्राकृ
कलइस्सं (पि ५३३) । कर्म. कलिजए (विसे । के मनष्य ठा -पत्र ३५८) । २०२६) । वकृ. कलयंत (सुपा ४) । कवकृ.
कलंय पं कदम्ब १ वृक्ष-विशेष, नीप, कलिज्जत (सुपा ६४)। संकृ. कलिऊण,
कदम का गाछ (हें १, ३०, २२२: गा ३७; कलिअ (महा अभि १८२)। कृ. कलणिज,
कप्पू)। चीर न [चीर] शस्त्र-विशेष करेड [दे] कृकलास, गिरगिट, सरट (दे कल गीअ (सुपा ६२२; पि ६१)।
(विपा १, ६–पत्र ६६)। चीरिया स्त्री २,५)।
कल वि किल]१ मधुर, मनोहर (पास)।२। [चीरिका] तृण-विशेष, जिसका अग्र भाग करेणु पं [करेणु] १ हस्ती, हाथी । २ कनेर प. अव्यक्त मधुर शब्द (गाया १, १६) । ३ अति तीक्ष्ण होता है (जीव ३)। वालुया
का गाछ; 'एसो करेगू (हे २,११६) । ३ कोलाहल, कलकल (चंद १६)। ४ कदम, स्त्री [ वालुका] १ कदम्ब के पुष्प के ग्राकारस्त्री. हस्तिनी हथिनी (हे २, ११६; रणाया १, कीचड, कांदो (भत १३०)। ५ धान्य-विशेष, वाली धूली। २ नरक की नदी; 'कलंबवा१, सुर ८, १३६) । दत्ता स्त्री [°दत्ता] गोल चना, मटर (ठा ५, ३)। "कंठी स्त्री लुयाए दहपुवो अणंतसो' (उत्त १६)। ब्रह्मदत्त चक्रवती की एक स्त्री (उत्त १३) । किण्ठी] कोकिला, कोयल (दे २, ३० कब स्वी21 वल्ली-विशेष. नालिका /दे °सेणा स्त्री [°सेना] देखो पूर्वोत अर्थ कप्पू) । मंजुल वि [ मजुलशब्द
। २, ३)। (उत्त १३)।
से मधुर (पान)। यंठ पुंकण्ठ काकिल, कलंबअन [कदम्बका कदम्ब-वृक्ष का पुष्प, करेणुआ नो [करेणु] हस्तिनी, हथिनी कोयल (कुमा)। यंठी देखो कण्ठी (सुर
'धाराहयकलंबुझं पिव समुस्ससियरोमकूवें (पान) महा)।
४, ४८)। "हंस पुं [हंस] एक पक्षी, राज-हंस (कप्प; गउड)।
कलंबुआ [दे] देखो कलंबु (पएण १; करेअव्व
कलंक पुंकलङ्क] १ दाग, दोष (प्रासू ६४)। सुज ४)। करेवाहिय वि [करबाधित राज-कर से : २ लाञ्छन. चिह्न (कुमा; गउड)।
कलंबुआ स्त्री [कलम्बुका] १ कदम्ब पुष्प पीड़ित, महसूल से हैरान (औप)।
कलंक सक [कलंय ] कलंकित करना। । के समान मांस-गोलक । २ एक गाँव का नाम, करोडपं दे] १ नारिकेल, नारियल । २ । कलंकइ (भवि)। कृ.कलंकियव्व (सुपा ४४८ जहाँ पर भगवान महावीर को कालहस्तो काक, कौपा । ३ वृषभ, बैल (दे २, ५४)। ५८१)।
ने सताया था (राज)। करोडग पु[दे] पात्र-विशेष, कटोरा (निचू कलंक पुं. [दे] १ बाँस, वंश (दे २, ८)। कलंबुगा स्त्री [कलम्बुका] जल में होनेवाली
२ बाँस की बनाई हुई बाड़ (णाया १,१८)। वनस्पति की एक जाति (सूम २, ३, १८)। करोडि स्त्री [करोटि] सिर की हड्डी (सुख, कलंकण न [कलङ्कन] कलंकित करना कलंबुय पुं[कदम्बक ] कदम्ब-वृक्ष (सुज २, २९)।
(पव ८)। करोडिय पु[करोटिक] कापालिक, भिक्षुक- कलंकल वि [कलकल] असमंजस, अशुभ कलकल पुं [कल कल] १ कोलाहल, कलविशेष (णाया १,८-पत्र १५०)। (ौपः संथा)।
कलरव (श्रा १४)। २ व्यक्त शब्द, स्पष्ट
करेमाण
देखो कर % कृ।
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