________________
२३२ पाइअसद्दमण्णवो
कल्लवत्त-कवि (ठा ३, ३ दे ८; ६५) । ७ वि. दक्ष, चतुर कल्लुग पुं [कल्लुक] द्वीन्द्रिय जीव-विशेष, | कवड्डिया स्त्री [कपर्दिका] कौड़ी, वराटिका (दे ८, ६५)। फीट की एक जाति (जीव ३)।
(सुपा १४, ५४५)। कल्वत्त पुं [कल्यवर्त] कलेवा, प्रातर्भोजन, कल्लुय '[कल्लुक द्वीन्द्रिय जन्तु की एक | कवण वि [किम् ] कौन ? (पउम ७२, ८ जल-पान (स्वप्न ६०; नाट)। जाति (पएण १-पत्र ४४)।
कुमा)। कल्लवाल j [कल्यपाल] कलवार, शराब
कल्लुरिया [दे] देखो कुल्लरिया (राज)। कवय पुन [कवच] वर्म, बख्तर (विपा १, बेचनेवाला (मोह ६२)।
कल्लेउय पुंन [दे] कलेवा, प्रातराश (प्रोष २. पउम २४, ३१, पान)।
४६४ टी)। कल्लविअ वि [दे] १ तीमित, आदित । २ |
कवय न [दे] वनस्पति-विशेष, भूमिच्छत्र कल्लोडय पुं[दे] दमनीय बैल, साँड़ (प्राचा (दे २, ३) । विस्तारित, फैलाया हुआ (दे २, १८)। २, ४, २)।
कवरी स्त्री [कवरी] केश-पाश, धम्मिल्ल (कुमाः कल्ला स्त्री [दे] मद्य, दारू (दे २, २)।
कल्लोडिआ [दे] देखो कल्होडी (नाट)। वेणी १८३)। कल्लाकल्लिं) अ [कल्याकल्य] १ प्रतिदिन, | कल्लोल पुं[कल्लोल] तरंग, ऊमि (प्रौपः कवल सक [कवलय ] ग्रसना, हड़प करना। कल्ला कल्लिहर रोज (विपा १, ३, रणाया १, प्रासू १२७)।
कवलेइ (गउड)। कर्म. कवलिज्जइ (गउड)। १८)। २ प्रति-प्रभात, रोज सुबह (उवाः
कल्लोल वि [दे, कल्लोल] शत्रु, दुश्मन (दे कवकृ. कवलिज्जत (सुपा ७०)। संकृ. कवप्राप)।
लिऊण (गउड)। कल्लाण न [कल्याण] सुवर्ण (सिरि ३७३)। कल्लोलिणी स्त्री [कल्लोलिनी] नदी (कप्पू)।
कवल पुं [कवल] कवल, ग्रास (पब ४; कल्लाण पुंन [कल्याण] १ सुख, मंगल, क्षेमः
कल्हार न [कह लार] सफेह कमल (परण औप)। 'गुणट्ठाणपरिणामे संते जीवाण सयलकल्लाणा' १ दे २, ७६)।
कवलण न [कवलन] ग्रसन, भक्षण (काप (उप ६००महा प्रासू १४६) । २ निर्वाण, मोक्ष (विसे ३४४०)। ३ विवाह, लग्न
१७०; सुपा ४७४)। कल्हि देखो कल्लिं (गा ८०२)।
कवलिअ वि [कवलित] ग्रसित, भक्षित (वसु)। ४ जिन भगवान् का पूर्व भव से
कल्होड ' [दे] वत्सतर, बछड़ा (दे २, ६)। | कल्होडी स्त्री [दे] वत्सतरी, बछिया (दे
(पानः सुर २, १४६; सुपा १२१; ३१९) । ध्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल-ज्ञान तथा मोक्षप्राप्ति रूप अवसर पंच महाकल्लारणा २, ६)।
कवलिआ स्त्री [दे] ज्ञान का एक उपकरण सवेसि जिणाण होति णिप्रमेण' (पंचा )|| कव अक [कु] अावाज करना, शब्द करना। (आप ८)। ५ समृद्धि, वैभव (कप्प)। ६ वृक्ष-विशेष कवइ (हे ४, २३३)।
कवल्ल पुं[दे] लोहे का कड़ाह (सून १, ५, (पएण १)। ७ तप विशेष (पव) । ८ देश- कवइय वि [कवचित] बख्तरवाला, वर्मित विशेष। ६ नगर विशेषः 'कल्लाणदेसे (पउम ७०,७१; प्रौप)।
कवल्लि , स्त्री [दे] पात्र-विशेष, गुड़ वगैरह कल्लाणनयरे संकरो रणाम राया जिरणकबंध देखो कमंध (पण्ह १, ३, महा: गउड)।
कवल्ली) पकाने का भाजन, कड़ाह, कराहा भत्तो हुत्था' (ती ५१) । १० पुण्य,
'डझतेण य गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूयाएं' कवग्ग पुं[कवर्ग] 'क' से 'हु' तक के पाँच शुभ-कर्म (आचा)। ११ वि. हित-कारक,
(संथा १२०; विपा १, ३)। अक्षर (धर्मवि १४)। सुख-कारक (जीव ३: उत्त ३)। कडय न कवचिअ देखो कवइय (सिरि १३१६)।
कवाल । पुन [कपाट] किवाड़, किवाड़ी [कृतक] नगर-विशेष (ती)। कारि वि | कवचिया स्त्री [कवचिका ] कलाचिका,
कवाड (गउड मोपः गा ६२०) । [कारिन] सुखावह, मंगल-कारक (गाया प्रकोष्ठ (राज)।
कवाल न [कपाल] १ खोपड़ी, सिर की हड्डी कवट्टिअ वि [कदर्थित पीड़ित, हैरान किया
'करकलिप्रकवालों (सुपा १५२)। २ घटकल्लाणि वि [कल्याणिन] कल्याण-प्राप्त | हुमा (हे १, १२४)।
कर्पर, भिक्षा-पात्र (प्राचाः हे १, २३१) । (राज)।
कवड न [कपट] माया, छम, शाठ्य (पामः कवास पुं[दे] एक प्रकार का जूता, अर्धजङ्घा कल्लाणी स्त्री [कल्याणी] १ कल्याण करने
सुर ४, १६१)। वाली स्त्री (गउड)। २ दो वर्ष की बछिया
कवडि देखो कवडि, 'तो भरणइ कवडिजक्खो कवि देखो इक = कपि (सर १, २४६) । (उत्तर १०३)।
प्रज्जवि तं पुच्छसे एयं' (सुपा ५४२)। कवि पुं[कवि] १ कविता करनेवाला (सुर कल्लाल पुं[कल्यपाल] कलाल, दारू बेचने- | कबड्डु [कपर्द] बड़ी कौड़ी, वराटिका (दे १, १८ सुपा ५६२, प्रासू ६३)। २ शुक्र, वाला (अणु; प्राव ६)। ११०; जी १५)।
ग्रह-विशेष (सुपा ५६२)। 'त्त न [व] कल्लि [कल्ये ] कल दिन, कल को (गा | कवड्डि पुं [कपर्दिन] १ यक्ष-विशेष (सुपा कविता, कवित्त (सुर १,४२) । देखो कई = ५०२)।
५१२) । २ महादेव, शिव (कुमा)। कवि ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org